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शेख अबु जाफ़र तूसी अलैहिर्रहमा

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जन्म
महान विद्वान, फ़क़ीह, मुहद्दिस, मुफस्सिर, अबुजाफर मुहम्मद पुत्र हसन पुत्र अली तूसी का जन्म सन् 385 हिजरी क़मरी के रमज़ान मास मे तूस(ईरान) मे हुआ था।

 


शिक्षा
शेख तूसी ने प्रारम्भिक शिक्षा अपनी जन्म भूमी तूस मे ही प्राप्त की।उन्होंने सन् 408हिजरी क़मरी मे उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए बग़दाद की ओर प्रस्थान किया। उस समय बग़दाद इस्लामिक शिक्षा का मुख्य केन्द्र था। तथा यहाँ पर शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा शिया सम्प्रदाय का नेतृत्व कर रहे थे। अतः बग़दाद पहुँच कर शेख तूसी मुख्य रूप से शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा के शिष्य बन गये। और शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा के जीवन के अन्तिम चरण तक उन से ज्ञान लाभ प्राप्त करते रहे। साथ ही साथ वह हुसैन पुत्र अब्दुल्लाह ग़ज़ायरी,इब्ने जुनैद इस्काफ़ी,अबु सल्त अहवाज़ी जैसे अन्य महान विद्वानो से भी ज्ञान लाभ प्राप्त करते रहे।अपनी बुद्धिमत्ता लगन व परिश्रम के कारण वह शीघ्र ही अपने गुरू शेख मुफ़ीद के दृष्टि पात्र बन गये। तथा अपना अधिकतर समय अपने गुरू की सेवा मे व्यतीत करने लगे। सन् 413 हिजरी क़मरी मे शेख मुफ़ीद के स्वर्गवास के बाद इस महान शिक्षण केन्द्र व शिया सम्प्रदाय का नेतृत्व उस समय के महान विद्वान व शेख मुफ़ीद के मुख्य शिष्य सैय्यिद मुर्तज़ा इल्मुल हुदा की ओर हस्तान्तरित हुआ। अतः शेख तूसी शेख मुफ़ीद के बाद सैय्यिद मुर्तज़ा अलैहिर्रहमा के शिष्य बन गये और उन से ज्ञान लाभ प्राप्त करने लगे। सैय्यिद मुर्तज़ा अलैहिर्रहमा ने जब शेख तूसी मे विशेष योग्यताओं का अनुभव किया तो उन्होने शेख के ऊपर विशेष रूप से ध्यान देना शुरू किया। इस प्रकार शेख ने 23 वर्षों के लम्बे समय तक अपने द्वितीय गुरू सैय्यिद मुर्तज़ा अलैहिर्रहमा से ज्ञान लाभ प्राप्त किया। सैय्यिद मुर्तज़ा अलैहिर्रहमा ने शेख को मुख्य रूप से शिक्षण कार्य के लिए नियुक्त किया तथा उनके लिए 12 दीनार प्रति मास का वेतन भी निश्चित किया।

 


शेख तूसी अलैहिर्रहमा की मरजिअत

सन् 436 हिजरी क़मरी मे सैय्यिद मुर्तज़ा इल्मुल हुदा अलैहिर्रहमा के स्वर्गवास के बाद शिया सम्प्रदाय के नेतृत्व व मरजिअत के उत्तरदायित्व को शेख तूसी अलैहिर्रहमा ने संभाला। उस समय तक वह अपने ज्ञान व बुद्धिमत्ता के कारण शिया सम्प्रदाय मे अपनी साख बना चुके थे। अतः समस्त इस्लामी क्षेत्रों से ज्ञान के प्यासे व्यक्ति लम्बी लम्बी यात्राऐं करके बग़दाद आने लगें ताकि शेख तूसी से ज्ञान लाभ प्राप्त कर सकें। इस प्रकार शेख तूसी से 300 से अधिक शिया तथा कई सौ सुन्नी सम्प्रदाय के व्यक्तियों ने ज्ञान लाभ प्राप्त किया।

 


तदरीसे कलाम की कुर्सी पर शेख की नियुक्ति
शेख तूसी अलैहिर्रहमा के ज्ञान व तक़वे के चर्चे केवल इराक़ वासीयों के मुख तक ही सीमित नही रहे अपितु उनका तक़वा व ज्ञान समस्त इस्लामी क्षेत्रों मे चर्चा का विषय बन गया।अतः उनके ज्ञान व तक़वे के कारण अल क़ाइम बे अमरिल्लाह नामक अब्बासी शासक के समय मे तदरीसे कलाम की कुर्सी पर उनकी नियुक्ति की गई। उस समय यह पद बहुत महत्ता का प्रतीक था तथा देश के सबसे बड़े विद्वान को इस पद पर नियुक्त किया जाता था। इस से यह प्रतीत होता है कि उस समय पूरे इस्लामी क्षेत्र मे शिया व सुन्नी दोनों सम्प्रदायों मे शेख तूसी से बड़ा कोई विद्वान नही था।

 


नजफ़े अशरफ़ के होज़े इल्मिया की स्थापना
सन् 447 हिजरी क़मरी मे तुर्काने सलजूक़ी ने बग़दाद पर आक्रमण किया तथा वहाँ के शासको को परिजित कर अपने शासन की स्थापना की। इस शासन की स्थापना के बाद से शिया सम्प्रदाय पर होने वाले अत्याचारो मे वृद्धि हो गई। उन के घरों को आग लगा दी गई उनकी सम्पत्ति को लूट लिया गया तथा प्रत्यक्ष रूप से उनकी हत्याऐं की गईं।वह सुन्नी विद्वान जो शेख की तदरीसे कलाम की कुर्सी पर नियुक्ति के कारण शेख से ईर्श्या रखते थे उन्होने अवसर से लाभ उठाया तथा शेख के घर व पुस्तकालय को आग लगा दी। इससे शिया सम्प्रदाय को बहुत हानी हुई शिया विचार धारा की बहुतसी महत्व पूर्ण किताबे इस दुर्घटना के बाद लुप्त हो गईँ। यह अत्याचार दिन प्रति दिन बढ़ता गया। इब्ने असीर नामक इतिहास कार ने सन् 499 हिजरी क़मरी की घटनाओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “इस वर्ष बग़दाद मे श्ख अबू जाफ़र तूसी जो शिया सम्प्रदाय के फ़क़ीह थे उनके घर को आग लगा कर विध्वंस कर दिया गया।”

इस घटना के बाद शेख तूसी अलैहिर्रहमा ने बग़दाद से नजफ़े अशरफ़ की ओर प्रस्थान किया। नजफ़े अशरफ़ उस समय एक छोटा सा गाँव था। जिसमे केवल आदरनीय इमाम अली अलैहिस्सलाम के कुछ प्रेमी ही जीवन यापन करते थे। यहाँ पहुचने पर शेख तूसी अलैहिर्रहमा ने होज़े इल्मिया (शिया सम्प्रदाय मे इस्लामिक शिक्षण केन्द्र को कहते हैं) की स्थापना की। जो आगे चलकर शिया सम्प्रदाय का विश्व विख्यात शिक्षण केन्द्र बना।


शेख तूसी के सम्बन्ध मे विभिन्न विद्वानो के कथन


आयतुल्लाह मुतह्हरी”
शेख अबु जाफ़र तूसी जो शेखुत्ताएफ़ा की उपाधि से प्रसिद्ध हैं वह इस्लामिक संसार के एक चमकते हुए सितारे है।उन्होने इल्मे उसूल, तफ़सीर, कलाम, रिजाल व हदीस मे बहुतसी किताबें लिखी हैँ वह खुरासान के रहने वाले थे।वह सन्385 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए व 23 वर्ष की आयु मे उन्होने सन् 408 हिजरी क़मरी मे बग़दाद की यात्रा की तथा अपने जीवन के अन्तिम चरण तक इराक़ ही मे रहे। सैय्यिद मुर्तज़ा इल्मुल हुदा के स्वर्गवास के बाद उन्होने मरजिअत के उत्तर दायित्व को संभाला। उन्होने पाँच वर्षों तक शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा से भी ज्ञान लाभ प्राप्त किया। वह अपने गुरू सैय्यिद मुर्तज़ा के स्वर्गवास के बाद 12 वर्षों तक बग़दाद मे रहे।जब दुर्घटनों की एक श्रृंखला मे उनके घर को जला कर ध्वंस कर दिया गया तो उन्होने नजफ़ की ओर प्रस्थान किया तथा वहाँ पर होज़े इल्मिया की स्थापना की।वह सन् 460 हिजरी क़मरी मे वहीँ पर स्वर्गवासी हुए।”

 


नजाशी
“ अबु जाफ़र मुहम्मद पुत्र हसन पुत्र अली तूसी हमारे बुज़ुर्गों मे से एक हैं वह एक विश्वसनीय विद्वान थे तथा शेख मुफ़ीद के शिष्य थे। उन्होने तहज़ीबुल अहकाम, इस्तबसार,अन्निहायाह,अलमफ़्साह, फ़हरिस्त, अल मबसूत, अल इहाज़,मा योलल वमा लायोलल, अल जुमल वल अक़ूद, अत्तिबयान जैसी महान किताबें लिखी हैं।”

 


बहरूल उलूम
अल्लामा सैय्यिद महदी बहरूल उलूम शेख तूसी अलैहिर्रहमा के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “मुहम्मद पुत्र हसन तूसी एक महान विद्वान थे। उन्होंने आइम्मा-ए- मासूमीन अलैहिमुस्सलाम के बाद शिया इमामिया सम्प्रदाय का नेतृत्व किया।वह उसूल व फ़रू के मुहक़्क़िक़ हैं।तथा उन्होने नक़ली व अक़ली (उल्लेखित व बुद्धि पर आधारित) ज्ञान को व्यवस्थित किया। उन्होने धर्म व मज़हब से सम्बन्धित जो भी मत प्रकट किये वह हमारे लिए विश्वसनीय है।”

 


शेख तूसी की रचनाऐं
शेख तूसी ने अपने जीवन काल मे बहुत सी किताबें लिखी हैं इन्मे से मुख्य किताबें इस प्रकार हैं---

1-इस्तबसार

2-तहज़ीबुल अहकाम

3-अन्निहाया

4-अलमफ़्साह

5-अल फ़हरिस्त

6-अल मबसूत

7-अल इहाज़ा

8-अल जुमल वल उक़ूद

9-अत्तिबयान

10-रिसाला-ए-तहरीमे फ़ुक़ा

11- मसाइले दमिशक़ियाह

12- मसाइले हलबियाह

13- मसाइले हाइरियाह

14- मसाइलुल यासिया

15- मसाइले जीलानियाह

16- मसाइल दर फ़र्क़ मयाने नबी व इमाम

17- रिसालाह नक़्ज़ बर इब्ने शाज़ान

18- मिस्बाहुल मुजतहिद

19-उनसुत्तौहीद

20-मुखतःसरूल मिस्बाह, इत्यादि

 


शेख तूसी का स्वर्गवास
शेख तूसी अलैहिर्रहमा सन् 460 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 22वी तिथि को नजफ़े अशरफ़ मे स्वर्गवासी हुए। उनको उनके निवास स्थान पर ही दफ़्न किया गया। बाद मे उनका निवास स्थान मस्जिद के रूप मे परिवर्तित होगया।
वह एक महान व पवित्र आत्मा वाले विद्वान थे अल्लाह उन पर रहमत करे।

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