हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत

8 रबीउल अव्वल को हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है। उन्होंने अपनी 28 साल की ज़िन्दगी में दुश्मनों की ओर से बहुत से दुख उठाए और तत्कालीन अब्बासी शासक ‘मोतमद’ के किराए के टट्टुओं के हाथों इराक़ के सामर्रा इलाक़े में ज़हर से आठ दिन तक पीड़ा सहने के बाद इस दुनिया से चल बसे। हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को उनके महान पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के निकट दफ़्न किया गया। इस अवसर पर हर साल इस्लामी जगत में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से श्रद्धा रखने वाले, हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का शोक मनाते हैं।

 

ग्यारहवें इमाम का नाम हसन, कुन्नियत अबू मोहम्मद और प्रसिद्ध उपाधि अस्करी है। उन्हें अस्करी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तत्तकालीन अब्बासी शासक ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को असकरिया नामक एक सैन्य क्षेत्र में रहने पर मजबूर किया था ताकि अब्बासी शासक उन पर नज़र रख सके। यही कारण है कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम अस्करीयैन के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की हदीसों अनुसार यह जानते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से बारहवें इमाम दुनिया को अत्याचार से मुक्त कर देंगे और सत्य व एकेश्वरवाद का झंडा फहराएंगे तथा नास्तिकता व अधर्मिकता को जड़ से उखाड़ फेकेंगे इसलिए वे हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के इस बेटे के जन्म लेने का इंतेज़ार कर रहे थे। दूसरी ओर ईश्वरीय धर्म के दुश्मन व सांसारिक मोहमाया में खोए हुए लोग इस घटना की कल्पना से ही कांप जाते थे। यही कारण था कि इन लोगों को हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को निरंतर अपनी निगरानी में रखा ताकि संसार के मुक्तिदाता को जन्म लेने से रोक दें या उन्हें पैदा होते की क़त्ल कर दें। किन्तु पवित्र क़ुरआन की आयतों के अनुसार,  ईश्वर का इरादा पीड़ितों को मुक्ति दिलाना और दुनिया में न्याय व सत्य का ध्वज लहराना है और हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के वंश से हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ जो धर्म की सत्ता के ईश्वर के आदेश को पूरी दुनिया लागू करेंगे।

 

हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन में कुल 28 बसंत देखे किन्तु इस छोटी सी ज़िन्दगी में भी उन्हों ने पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या और धर्मशास्त्र पर आधारित अपनी यादगार रचना छोड़ी है। मुसलमानों के वैज्ञानिक अभियान में उनका प्रभाव पूरी तरह स्पष्ट है। ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने बहुत सी रुकावटों के बावजूद, अपने श्रद्धालुओं का इस तरह वैचारिक प्रशिक्षण किया कि वे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की लंबी अनुपस्थिति के लिए तय्यार हो जाएं और ख़ुद को उनके प्रकट होने के लिए तय्यार करें।

 

ग्यारहवें इमाम की इमामत के काल अर्थात तीसरी शताबदी हिजरी के पहले अर्ध में विभिन्न मत इस्लामी समाज में अस्तित्व में आए थे। इन मतों के अनुयायी अपने ग़लत विचारों के विस्तार की कोशिश में लगे हुए थे। हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम इन भ्रष्ट मतों की त्रुटियों को बयान करते थे और शीयों को इन मतों से दूर रखने की कोशिश करते थे। इसी प्रकार वह अपने प्रतिनिधियों के ज़रिए मोमिनों के मामले को हल करते थे। इन भ्रष्ट मतों में ग़ाली, सूफ़ी, मोफ़व्वेज़ा, वाक़ेफ़िया, सनविया और हदीस गढ़ने वाले उल्लेखनीय हैं।

 

ग़ाली मत के अनुयायी पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को ईश्वर के दर्जे तक पहुंचा देते थे। उनके संबंध में हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कहते थे, “ यह हमारे धर्म की बात नहीं है। इन बातों से दूर रहो।” इसी प्रकार हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने एक कथन में सूफ़ियों के भ्रष्ट विचारों का उल्लेख किया और शीयों को उनके साथ मेल-जोल रखने से रोका।

 

मोफ़व्वेज़ा एक और भ्रष्ट मत था। जिसका यह मानना था कि ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को पैदा करने के बाद सृष्टि के सारे मामले उनके और उनके पवित्र परिजनों के हवाले कर दिए। ऐसे लोगों के संबंध में उन्होंने कहा, “ वे झूठ कहते हैं। हमारे हृदय ईश्वर के इरादे के अधीन हैं। जो ईश्वर चाहता है वही हम भी चाहते हैं।”

 

हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम वाक़ेफ़िया मत से भी विरक्तता दर्शाते थे। वाक़ेफ़िया बारह इमामों को नहीं मानते थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का कथन है, “ अगर किसी ने हमारे अंतिम की इमामत का इंकार किया मानो उसने हमारे पहले की इमामत का इन्कार किया है।”
 


हमारे लिए पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का सामिप्य हासिल करने का बेहतरीन तरीक़ा उनके कथनों का अध्ययन और उनके आचरण का अनुसरण है। इसी संदर्भ में हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का मूल्यवान कथन आपकी सेवा में पेश कर रहे हैं, “  मैं तुम्हें ईश्वर से डरने, धर्म में नैतिकता, सच्चाई के लिए कोशिश करने, जिसने तुम्हे अमानत सौंपी है चाहे वह भला व्यक्ति हो या बुरा, उसकी अमानत की रक्षा करना, देर तक सजदा करने, और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की अनुशंसा करता हूं। मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इसी लिए आए भें। दूसरे मुसलमानों की जमाअत में अर्थात सामूहिक रूप से अदा की जाने वाली नमाज़ में शामिल हो। उनके मृतकों की शव यात्रा में शामिल हो और उनके मरीज़ों का कुशलक्षेम पूछो। उनके अधिकारों को अदा करो क्योंकि तुममे जो भी धर्मपरायण, बात में सच्चा, अमानतदार, अच्छे स्वाभाव का होगा उसके बारे में कहा जाएगा कि शीया है और इस बात से हमें ख़ुशी होगी। ईश्वर से डरो। हमारे लिए शोभा बनो न कि शर्म का कारण। अच्छी बातों से हमें याद करो और हर प्रकार की बुरी बातों को हमसे दूर करो। क्योंकि हम हर अच्छाई के पात्र और हर बुरायी से दूर हैं। ईश्वर की किताब में हमारे अधिकार और पैग़म्बरे इस्लाम से हमारे संबंध का उल्लेख है। ईश्वर ने हमे पवित्र क़रार दिया है। हमारे अलावा कोई भी इस स्थान का दावा नहीं कर सकता, अगर ऐसा करता है तो झूठा है। ईश्वर को ज़्यादा से ज़्यादा याद करो। मौत को हमेशा याद रखो। पवित्र क़ुरआन की ज़्यादा तिलावत करो और पैग़म्बरे इस्लाम पर बहुत ज़्यादा दुरूद भेजो।”

 

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों से श्रद्धा रखने वाले के मन में हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके महान पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के रौज़े का दर्शन करने के लिए सामर्रा जाने की इच्छा अंगड़ाई ले रहा होगा ताकि उनके रौज़ों का दर्शन करके, ख़ुद को ईश्वर की कृपा का पात्र बनाए। किन्तु इस साल भी पिछले कुछ साल की तरह, इन दोनों महान हस्तियों का रौज़ा, दुश्मनों के निशाने पर है। उन लोगों के निशाने पर है जो अपने हाथ में ला इलाहा इल्लल लाह का ध्वज लिए हुए, पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों का जनसंहार कर रहे हैं और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के रौज़े के सम्मान को धूमिल कर रहे हैं। यह बात विचार करने योग्य है कि ईश्वरीय धर्म के इन दुश्मनों को किस चीज़ ने इतना डरा दिया है कि सदियों के बाद भी पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के रौज़ों से इतने भयभीत हैं। इससे भी अहम विचार योग्य बात यह है कि वह कौन सी चीज़ है जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के श्रद्धालुओं को इस बात के लिए प्रेरित कर रही है कि वह जान या बंदी बनाए जाने की परवाह किए बिना उनके रौज़े का दर्शन करने जाते हैं। अगर सृष्टि की इन अनमोल हस्तियों के अस्तित्व में शहीद होने के बाद भी असर न होता तो सृष्टि के किस नियम के तहत इस श्रद्धा का औचित्य पेश किया जा सकता है? यह वही श्रद्धा है जिसके तहत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के दिन दो करोड़ से ज़्यादा लोग जान की परवाह किए बिना कर्बला दर्शन के लिए गए।             

 

इस समय सामर्रा की अशांत स्थिति और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के दुश्मनों की ओर से ख़तरों के मद्देनज़र उनके श्रद्धालुओं को इस बात का कम अवसर मिल रहा है कि वे सामर्रा में हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के रौज़े का दर्शन करें। कार्यक्रम का अंत हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के एक टुकड़े से अंत कर रहे हैं। ईश्वर हमें उनके रौज़े के दर्शन करने का अवसर दे और उसकी रक्षा करने वालों में क़रार दे। हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कहते हैं, “ हे प्रभु! हमारे सरदार मोहम्मद और उनके पवित्र परिजनों पर अपनी कृपा कर और हसन अस्करी को भी अपनी कृपा का पात्र बना जो तेरे धर्म की ओर मार्गदर्शन करने वाला, मार्गदर्शन का ध्वजवाहक, तुझसे भय रखने वाली मशाल, बुद्धि का ख़ज़ाना, लोगों पर कृपा की वर्षा है। जिसे तूने अपनी किताब का ज्ञान दिया, सत्य और असत्य को अलग करना और फ़ैसला करने का ज्ञान दिया और जिसकी मित्रता को अपने सारी सृष्टि पर अनिवार्य किया।