अहमद बन गया बादशाह 1

कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक बूढ़ी थी, जिसका एक बेटा था और उसका नाम अहमद था। बूढ़ी का काम सूत कातना था, जिससे उसकी इतनी आय होती थी कि बस गुज़र बसर हो सके। एक दिन बूढ़ी का लड़का उसके पास आया और उसने कहा कि वह काम करना चाहता है और आज से घर का ख़र्चा वह उठाएगा। मां ने जब यह सुना तो वह ख़ुश हो गई और लड़के से कहा कि कल वह राजा के महल में जाए और उससे काम देने के लिए अनुरोध करे।   लड़के ने मां की बात को स्वीकार कर लिया और रात को सो गया, सुबह जल्दी उठकर राजा के महल की ओर गया। महल में पहुंचते ही उसने राजा से कहा, हे महाराज उसे कोई काम सौंपा जाए ताकि वह अपने घर का ख़र्च उठा सके। राजा ने अपने वज़ीर की ओर देखकर कहा कि तुम इसे क्या काम दे सकते हो? वज़ीर ने कहा, यह वही लड़का है, जिसे आपने सपने में देखा था। राजा ने जैसे ही सुना, अहमद से कहा, तुझे बाग़े बहिश्त जाना होगा और वहां से एक ऐसा हिरन लाना होगा जिसके सींग सोने और चांदी के हैं।


अहमद घर वापस आया और रोने लगा। मां ने पूछा, क्या हो गया है, जो इस तरह आंसू बहा रहा है? अहमद ने बूढ़ी मां को बताया कि राजा ने उसे क्या आदेश दिया है। मां ने कहा, ईश्वर पर भरोसा कर। आज रात सो जाओ ताकि देखें कल क्या हो सकता है। अहमद रात को सो गया और जब वह गहरी नींद में था तो हज़रत ख़ेज़्र उसके सपने में आए और कहा, सुबह होने पर रोटी की पोटली और पानी की मश्क लेकर चल पड़ना। रास्ते में चूंटियों का एक बिल पड़ेगा। रोटी को चूंटियों के लिए डालकर वहां से चल पड़ना। रास्ते में जब हाथी नज़र आयें तो पानी की मश्क वहां डालकर अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाना। इस बार रास्ते में तीन लोगों से सामना होगा, एक दाहिनी तरफ़ खड़ा होगा और दूसरा बाएं तरफ़ तीसरा सामने। उन लोगों से बाग़े बहिश्त का रास्ता पूछना। दाहिने और बाएं तरफ़ खड़े व्यक्तियों की बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं देना। जो व्यक्ति सामने खड़ा हो उसकी बात सुनना और जिस रास्ते का वह पता बताए उसी ओर चल पड़ना। जब बाग़े बहिश्त पहुंचना तो यह पत्र बाग़बान को दे देना। वह सोने और चांदी वाला हिरन तुम्हें दे देगा।

 
अहमद जब सोकर उठा तो उसने अपने सिराहने एक पत्र रखा हुआ देखा। उसने पत्र, रोटी की पोटली और पानी की मश्क उठाई और शहर के पीछे वाले रास्ते पर चल पड़ा। वह चलता गया चलता गया, यहां तक कि रास्ते में चूंटियों के बिल के पास पहुंचा, वहां उसने रोटी की पोटली को ख़ाली कर दिया और आगे बढ़ गया। उसके बाद रास्ते में ऐसी जगह पहुंचा जहां हाथियों का झुंड रहता था। उसने वहां ज़मीन पर मश्क को रखा और आगे बढ़ गया। वह चलता गया चलता गया, यहां तक कि एक तिराहे पर पहुंचा। उसने देखा कि वहां हर एक रास्ते पर एक व्यक्ति खड़ा है। उसने उन लोगों से पूछा कि बाग़ तक पहुंचने के लिए कौन से रास्ते पर जाना चाहिए। बांयी ओर वाले ने कहा बांयी तरफ़ से दाहिनी ओर वाले ने कहा इस तरफ़ से और सामने वाले ने कहा उसके पीठ के पीछे जो रास्ता है उधर से। अहमद सीधे रास्ते पर चल पड़ा। वह रात दिन चलता रहा चलता रहा। नदियों पहाड़ों और जंगलों को तय किया यहां तक कि बाग़े बहिश्त पहुंच गया। उसने वहां एक बाग़बान को देखा जिसके बाल बड़े थे और दाढ़ी लम्बी। उसने बाग़बान को जैसे ही पत्र दिया, वह तुरंत गया और सोने चांदी के सींगों वाला हिरन ले आया।  


अहमद जिस रास्ते से गया था उसी से वापस लौट आया। राजा के महल पहुंचकर उसने हिरन को राजा को सौंप दिया। राजा ने हिरन ले लिया और अहमद को बिना किसी इनाम के ख़ाली हाथ लौटा दिया। थका मांदा लड़का घर वापस लौटा और उसने अपनी मां से कहा, मां तुमने राजा के पास जाने को कहा था ताकि कुछ काम मिले और हमारा ख़र्चा पानी चले। मां को काफ़ी दुख हुआ लेकिन उसने कहा, ईश्वर महान है। कल देखते हैं क्या होता है। लड़का रात को सो गया और फिर उसने हज़रते ख़िज़्र को सपने में देखा जो कह रहे थे, कल राजा तुम्हें हाज़िर करेगा और कहेगा कि चालीस तोतों वाला पेड़ उसके लिए लेकर आओ। तू एक बाजरे की एक थैली और पीने की मश्क अपने साथ लेना और चल पड़ना। रास्ते में एक गढ़े के पास जब पहुंचना जिसका पानी सूख चुका है और मछलियां मर रही हैं तो पानी को उसमें डाल देना ताकि मछलियां जीवित रह सकें। जब गढ़े के उस पार जाओगे तो बाग़े बहिश्त पहुंच जाओेगे। वहां पहुंचकर बाग़बान को पत्र दे देना और उससे चालीस तोतों वाला पेड़ ले लेना। अहमद ने जब ऐसा सपना देखा तो तुरंत उसकी आंख खुल गई और उसने देखा इस बार भी एक पत्र उसके तकिए के पास रखा हुआ है। उसने पत्र उठाया और राजा के दासों की प्रतीक्षा करने लगा। जब सुबह हुई तो राजा के दास आए और उन्होंने कहा कि राजा ने तुझे तलब किया है। अहमद उनके साथ महल पहुंचा। राजा ने अहमद से कहा, जाओ और चालीस तोते वाला पेड़ लेकर आओ।


अहमद घर वापस लौटा और बाजरे का थैला और पानी लिया और चल पड़ा। रास्ते में उसे चिड़ियों और कबूतरों का एक समूह मिला। उसने बाजरे के दाने उनके लिए डाले और उन्होंने जल्दी जल्दी उन्हें चुनना शुरू कर दिया। उसके बाद आगे चलकर रास्ते में उसने पानी का एक गढ़ा देखा जिसके तल में कुछ मछलियां तड़प रही थीं। उसने मश्क का पानी उसमें डाला और मछलियां उसमें तैरने लगीं।


अहमद का भार अब हलका हो चुका था, इसलिए वह जल्दी जल्दी चलने लगा। वह नदियों, पहाड़ों और जंगलों से गुज़र कर तिराहे पर पहुंचा जहां तीन व्यक्ति गधों पर बैठे तीन अलग अलग रास्तों की ओर जा रहे थे।


उसने बाग़े बहिश्त का पता पूछा, एक ने कहा दाहिनी ओर चले जाओ दूसरे ने कहा बांयी ओर लेकिन तीसरे ने कहा क़िबले की ओर जाओ। अहमद क़िबले की ओर चल पड़ा, यहां तक कि बाग़े बहिश्त पहुंच गया। उसने बाग़बान को पत्र दिया। बाग़बान गया और चालीस तोतों वाला पेड़ लाकर अहमद को दे दिया। वह जिस रास्ते से गया उसी से वापस लौट गया। जब राजा के महल पहुंचा तो राजा ने वज़ीर और अन्य मंत्रियों को बुला भेजा। अहमद ने पेड़ राजा के हवाले किया तो राजा ने कोई इनाम देने के बजाए छः बार कहा, ईश्वर तुम पर कृपा करे। अहमद ख़ाली हाथ और दुखी दिल से घर लौट गया।