अहलेबैत (अलैहिमुस्सलाम) से तवस्सुल

 शेख़ सदूक़ हज़रत अली रज़ा (अ) से रिवायत करते हैं फिर आप ने फरमाया :

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जब हज़रत नूह (अ) डूब रहे थे तो उन्होनें ख़ुदा को हमारा वास्ता देकर पुकारा तो ख़ुदा ने उन्हें डूबने से बचा लिया। जब हज़रत इब्राहीम (अ) को आग में फेंका गया तो उन्होने ख़ुदा को हमारा वास्ता दिया तो ख़ुदा ने आग को गुलज़ार बना दिया और वह बच गये। हज़रत मुसा (अ) ने नदी में डंडा मारते समय ख़ुदा को हमारा वास्ता दे कर पुकारा तो ख़ुदा ने उसे सुखा दिया, जब हज़रत ईसा (अ) को यहूदियों के हाथों क़त्ल होने का ख़तरा महसूस हुआ तो उन्होनें ख़ुदा को हमारा वास्ता दिया और उसने उन्हें क़त्ल होने से बचा लिया, और ख़दा ने उन्हें अपनी तरफ़ ऊपर बुला लिया। (1)

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जिस प्रकार ख़ुदा के पैग़म्बर समस्याओं और परेशानियों में ख़ुदा के सामने अहलेबैत (अ) को अपना माध्यम बनाते थे और उनके नाम का वास्ता देकर पुकारते थे, उसी प्रकार हमको भी अपनी मुश्किलों और कठिनाइयों (कि जिस में हमारी सबसे बड़ी मुश्किल इमामे ज़माना (अ) की ग़ैबत है) मे इन मासूमों को ख़ुदा को वास्ता देकर पुकारें।

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एक दूसरी रिवायत में हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) फ़रमाते हैं:

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जब भी किसी बड़ी समस्या में पड़ जाओ ख़ुदा के सामने हमें माध्यम बना कर सहायता मागों क्योंकि ईश्वर का कथन है:

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وَلِلّهِ الأَسْمَاء الْحُسْنَى فَادْعُوهُ بِهَا (2)

और अल्लाह ही के लिए बेहतरीन नाम हैं इसलिए उसे उन्हीं नामों से पुकारो।

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हज़रत इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:

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ख़ुदा की क़सम! हम ख़ुदा के वह नेक नाम हैं कि ख़ुदा हमारी मारेफ़त और जानकारी के बिना किसी से कोई चीज़ स्वीकार नहीं करेगा।

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अगर इन मासूमों (अ) के मक़बरों मे इन से दुआ एवं प्रार्थना करें तो इस का प्रभाव बहुत अधिक होगा। जिस प्रकार मासूमों (अ) के मक़बरों में नमाज़ पढ़ने का सवाब भी बहुत अधिक होता है।

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(1)     जामेउल अहादीस अल शिया 19. 302
(2)     सुरा आराफ़ आयत 180