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अबूसब्र और अबूक़ीर की कथा-4

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हमने कहा कि इस्कन्दरिया शहर में अबूक़ीर और अबू सब्र नाम के दो व्यक्ति थे और दोनों एक दूसरे के दोस्त थे। उनमें से एक रंग करने का काम करता था जबकि दूसरा नाइ था। अबूक़ीर झूठा और पाखंडी इंसान था परंतु अबू सब्र सही इंसान था। बाज़ार में काम मंद पड़ जाने के कारण दोनों दूसरे शहर में चले गये। रास्ते भर अबूक़ीर खाता-पीता और सोता रहा जबकि अबू सब्र काम करता था। काम अधिक होने के कारण अबू सब्र बीमार पड़ गया और अबूक़ीर जो झूठा व पाखंडी इंसान था उसे बीमारी में छोड़ कर काम की तलाश में चला गया। जिस नगर में वह पहुंचा वहां के रंग करने वाले काले रंग के अलावा कोई दूसरा रंग जानते ही नहीं थे इसलिए उसने उस क्षेत्र के राजा की सहायता से अच्छा काम आरंभ कर लिया। सारांश यह कि अबूक़ीर इस मार्ग से धनवान हो गया और कपड़ा रंगने वाली उसकी दुकान “रंग खानये पादशाह” के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।

 

उधर सराय के सेवक की देखभाल से अबूसब्र की हालत अच्छी हो गयी जिसे अबूक़ीर बीमारी की हालत में छोड़कर चला गया था। एक दिन जब अबूसब्र बाहर गया था तो उसने अबूक़ीर और उसकी दुकान को देखा। वह उसकी दुकान के अंदर गया। अबूक़ीर ने जैसे ही अबूसब्र को देखा ज़ोर से चिल्लाया है हे निर्लज्ज चोर फिर मेरी दुकान में आ गया? उसके बाद उसने अपने दासों को आदेश दिया कि उसे दुकान से बाहर कर दें। अबूसब्र घायल शरीर और टूटे दिल के साथ सराय वापस आ गया। कई दिन के बाद जब उसने हम्माम जाना चाहा तो उसे ज्ञात हुआ कि इस नगर में हम्माम ही नहीं है। उसके दिमाग़ में एक विचार आया। वह नगर के राजा के पास गया और मुलाक़ात की अनुमति मांगी।

 

उसे राजा के पास ले जाया गया। जब अबूसब्र राजा के पास पहुंच गया तो उसने राजा से कहा हे महाराज मैं इस शहर में अजनबी हूं, मुझे इस शहर में आये हुए अधिक दिन नहीं हुए हैं। आज मैंने हम्माम जाना चाहा तो पता चला कि इस शहर में हम्माम ही नहीं है मुझे बड़ा आश्चर्य व खेद हुआ कि इतने सुन्दर शहर में हम्माम नहीं है। राजा ने बड़े आश्चर्य से कहा कि हम्माम क्या है? अबू सब्र ने राजा को हम्माम के बारे में बताया कि वह क्या होता है और उससे किस तरह लाभ उठाया जाता है। उसके बाद उसने कहा आपका सुन्दर शहर हम्माम के बिना पूरा नहीं है अगर आप अनुमति दें तो मैं इस नगर में सुन्दर हम्माम का निर्माण कर दूं ताकि इस नगर के लोग दुनिया की इस बड़ी नेअमत से वंचित न रहें। राजा ने सहमति जता दी। उसने अबू सब्र को सुन्दर वस्त्र, ज़ीन लगा हुआ घोड़ा, कुछ सोना, 6 दास और बड़ा घर दिया। उसके बाद उसने शहर के राजगीरों को बुलाया और उनसे कहा कि अबूसब्र के साथ जायें और शहर में घुमें तथा अबूसब्र की पसंद की जगह खरीदें और वहां पर बड़े हम्माम का निर्माण करें। अबू सब्र राजगीरों के साथ नगर में घूमा और एक जगह को उसने हम्माम के निर्माण के लिए चुना। उस जगह को खरीद लिया गया और वहां पर बड़ा और सुन्दर हम्माम का निर्माण कर दिया गया।

 

अबू सब्र के आदेश से नगर के चित्रकारों को बुलाया गया और उन्होंने हम्माम के दरवाज़े और दीवार पर सुन्दर चित्रकारी कर दी। उसके बाद अबू सब्र राजा के पास गया और कहा कि हम्माम बनकर तैयार हो गया है। राजा ने दस हज़ार सिक्के उसे दिये ताकि हम्माम के लिए आवश्यक चीज़ों की ख़रीदारी कर सके। अबू सब्र ने उन सिक्कों से ज़रूरी चीज़ें ख़रीदी और उसे हम्माम ले गया। हम्माम के गर्म पानी के भंडार को गर्म पानी और हम्माम में बने हौज़ को ठंडे पानी से भरा। उसने हौज़ के फव्वारों को भी चला दिया। इसके बाद उसने राजा को संदेश भेजा कि हम्माम के कार्यों को अंजाम देने के लिए 10 जवानों की ज़रूरत है। राजा ने 10 जवान दासों को भेज दिया। अबूसब्र ने दासों को बदन मलना सिखाया। बाद में उसने कई लोगों को यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे नगर में घूमें और लोगों को बतायें कि नहाने के लिए हम्माम बनकर तैयार हो गया है और लोग नहाने के लिए वहां आ सकते हैं। लोगों को हम्माम के तैयार होने की सूचना मिली। लोग गिरोह- गिरोह करके हम्माम आने लगे। अबू सब्र ने हम्माम में काम करने वालों को आने वालों की बदन मलकर नहलाने का आदेश दिया। तीन दिनों तक हम्माम का प्रयोग लोगों के लिए निःशुल्क था। लोग आते और नहाते थे और किसी प्रकार का पैसा दिये बिना चले जाते थे। चौथे दिन अबू सब्र ने राजा से हम्माम आने का अनुरोध किया। राजा भी सरकार के कुछ गणमान्य लोगों के साथ घोड़े पर सवार होकर हम्माम आया। अबू सब्र लुंगी पहन कर स्वयं हम्माम गया और उसने राजा के शरीर को मला। उसके बाद हम्माम के गर्म पानी में गुलाब जल डाल दिया और राजा से कहा कि वह स्वयं को गर्म पानी से धोये। राजा स्वच्छ और सुगंधित शरीर के साथ हम्माम से बाहर निकला। अबू सब्र के आदेश से राजा के लिए शर्बत और मिठाई लायी गयी। राजा अपने शरीर के पवित्र व स्वच्छ होने से बहुत प्रसन्न था। उसने अबू सब्र से कहा हे उस्ताद ईश्वर की सौगन्ध मेरा शहर इस हम्माम के बिना पूरा नहीं था। अब यह बताओ कि हर आदमी से कितना पैसा लेते हो? अबू सब्र ने कहा जितना आप आदेश दें। राजा ने थोड़ा सोचा और कहा हर आदमी से एक हज़ार सिक्का लो। अबू सब्र ने कहा हर आदमी के पास इतना अधिक पैसा देने की क्षमता नहीं है। लोगों की आर्थिक क्षमता समान नहीं है। समाज में कुछ निर्धन तो कुछ धनी हैं।

 

अगर सबसे एक समान पैसा लेना आरंभ कर दूं तो हम्माम की चहल- पहल बंद हो जायेगी। राजा ने अबू सब्र से पूछा तुम्हारे विचार में कितना लेना चाहिये।? अबू सब्र ने कहा मेरे विचार में हर आदमी से उतना ही लिया जाना चाहिये जितनी उसकी क्षमता है। राजा ने अपने साथ वालों को संबोधित करते हुए कहा इस आदमी की बात तर्कसंगत और बुद्धिमत्ता पूर्ण है परंतु वह हमारे शहर में नया है और उसे सहायता की आवश्यकता है। तो तुममें से हर एक 100 सिक्का और दो दास अबू सब्र को दे। राजा के साथ व्यक्तियों की संख्या 400 थी। इस प्रकार चालिस हज़ार सिक्का और आठ सौ दास अबू सब्र को मिल गये। स्वयं राजा ने उसे दस हज़ार सिक्के और बीस दास दिये। अबू सब्र ने राजा की ओर देखा और कहा मैं आपका और आपके साथ लोगों का बहुत आभारी हूं किन्तु मैं इतने सारे दासों को कहां रखूंगा और उनके खाने- पीने और कपड़े का प्रबंध कैसे करूंगा? अगर दासों के बजाये मुझे दे दिया जाये तो अधिक बेहतर था। राजा ने थोड़ा सोचा और कहा सही कर रहे हो। इतने सारे दासों का खर्च सेना की एक टुकड़ी के बराबर है और तुम्हें अपना सारा पैसा इन दासों की देखभाल पर खर्च करना पड़ेगा। इस आधार पर मैं हर दास को तुमसे 100 सिक्के में ख़रीद सकता हूं।

 

इस प्रकार राजा ने दासों को अबू सब्र से ख़रीद लिया और दोबारा उन सबको अपने साथ गणमान्य लोगों को दे दिया। अबू सब्र को जो सिक्के मिले थे उन्हें वह घर लाया और उस रात को वह बड़े आराम से सोया। अगले दिन जब वह सुबह उठा तो ढ़िंढ़ोरा पीटने वालों से कहा कि वे पूरे नगर के लोगों को ख़बर कर दें कि जो भी हम्माम आना चाहता है आये और जितनी उसकी क्षमता है उतना ही पैसा दे। इसके बाद उसने हम्माम का दरवाज़ा खोला और कैशियर बनकर आने वालों की प्रतीक्षा में बैठ गया।

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