अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

हज़रत आयशा का दूसरा निकाह

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हक़ीक़त यह है कि वफ़ाते हज़रते ख़दीजा (स.अ.) के तीन बरस बाद 13 नब्वी में हिजरत से कुछ पहले सरकारे दो आलम (स.अ.व.व) ने आयशा से अक़्द किया जैसा कि अल्लामा शिबली नोमानी के शागिर्दे रशीद मौलवी सुलैमान नदवी ने बुख़ारी और मसनद के हवालों से अपनी किताब सीरते आयशा में तहरीर फ़रमाया है किः-


बुख़ारी और मसनद में ख़ुद उन (आयशा) से दो रवायते हैं, एक में है कि हज़रत ख़दीजा की वफ़ात के तीन बरस बाद निकाह हुआ।


इस अक़्द के बाद 10 हिजरी में रूख़सती अमल में आयी। इस हिसाब से बवक़्ते रूख़सती मोहतर्मा की उम्र तक़रीबन बीस साल की बनती है।


अब्बास महमूद उक़ाद का ये कहना बजा है कि रसूलल्लाह (स.अ.व.व) के अक़्द में आने से पहले आयशा ज़बीर इब्ने मुतअम से मनसूब हो चुकी थी। इस पूरे वाक़िए का निचोड़ हम क़दीम तरीन मुवर्रिख़ इब्ने सअदे वाक़िदी (मतूफ़ी 230 हिजरी) की ज़बाने क़लम से सुनाते हैं। जिस के बारे में अल्लामा शिबली नोमानी का कहना है कि मोहम्मद बिन सअद, कातिबे वाक़िदी निहायत सक़ह और मोतमिद मुवर्रिख़ हैः-


आयशा के लिए हज़रत रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व) ने हज़रत अबू बकर को पैग़ाम दिया तो उन्होंने कहा या रसूलल्लाह (स.अ.व.व) उस को तो मैं जबीर इब्ने मुतअम के हवाले कर चुका हूं मुझे ज़रा मोहलत दीजिए ताकि मैं उन लोगों से आयशा को दोबारह हासिल करूं। (चुनान्चे) अबू बकर ख़ामोशी से आयशा को वहां से ले आये (फिर) ज़बीर ने तलाक़ दी और वो रसूलल्लाह (स.अ.व.व) के साथ ब्याही गयीं(1)


आयशा के लिए रसूल ने ख़ुद पैग़ाम दिया, किसी से दिलवाया या आयशा के वालिदैन ने ख़ुद उन्हें रसूलल्लाह (स.अ.व.व) की गोद में डाल दिया, ये अलग मसअला है बहरहाल....... वाक़िदी की इस रवायत से ये मुकम्मल तौर पर वाज़ेह है कि हज़रत आयशा न ये कि सिर्फ़ ज़बीर इब्ने मुतअम से मनसूब थीं बल्कि मोहतर्मा अक़्द और रूख़सती की मन्ज़िलों से गुज़रकर ज़फ़ाफ़ का सख़्त तरीन मरहला भी तय कर चुकी थीं।


हज़रत आयशा जबीर बिन मुतअम को कब ब्याही गयीं, और कितनी मुद्दत तक आप उसके पास रहीं? इसके जवाब में तारीख़े ख़ामोश हैं, और तलाश के बावजूद मुझे कोई ऐसी रवायत नहीं मिली जिस से कुछ मालूम होता। लेकिन वाक़िदी के इस बयान की रौशनी में बिल ऐलान में यह कह सकता हूं कि हज़रत आयशा रसूल (स.अ.व.व) के अक़्द में आते वक़्त हर्गिज़ कुआंरी नहीं थी बल्कि एक मुतलक़ा की हैसियत से वो उम्महातुल मोमिनीन की सफ़ में शामिल हुई थी।


इस मौक़े पर यह वज़ाहत भी ज़रूरी है कि पैग़म्बर (स.अ.व.व) के अक़्द में आने से पहले भी आप औलाद से महरूम रहीं और जबीर बिन मुतअम की काफ़िराना कोशिश आप के बांझपन को कोई सौग़ात न दे सकी, और पैग़म्बर (स.अ.व.व) के अक़्द में आने के बाद भी आप की मुरादों, तम्न्नाओं और आरज़ूओं का काशकोल नेअमते औलाद से ख़ाली रहा। रसूले अकरम (स.अ.व.व) से आपकी औलाद क्यों नहीं हुई, इसका क्या सबब था? अब्बास महमूद उक़ाद की ज़बानी सुनियेः-


इसका सबब जहां तक हमारी समझ में आ सका है वो यह है कि रसूलल्लाह (स.अ.व.व) ने औलाद की ख़ातिर अपनी अज़्वाज से निकाह नहीं किया। हुज़ूर के निकाह बिल उमूम दो अग़राज के तहत होते थे,

1 .बाज़ औरतें अपने ख़ावन्द की वफ़ात के बाद बिल्कुल बे सहारा हो जाती थीं, हुज़ूर उनकी बेबसी और बेकसी का मदावा करने के लिए उन से निकाह कर लेते थे।

2. बाज़ अज़्वाज से निकाह करने में ये ग़रज़ पिन्हा थी कि हुज़ूर उन के क़बीलों को इस्लाम की तरफ़ माएल करने के लिए उनसे ताल्लुक़ क़ायम करना चाहते थे। (1)


1. आयशा (उक़ाद) तरजुमा अहमद पानीपतीः- पेज न. 118

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