हज़रत आयशा का दोग़लापन

ख़िलाफ़ते उस्मानियां के इब्तिदाई छः बरसों में हज़रत आयशा उस्मान की सरगर्म हिमायती रहीं और क़दम क़दम पर उनकी इताअत करती रहीं। उसके बाद दोनों के दर्मियान इख़तिलाफ़ पैदा हो गया। इस इख़तिलाफ़ की वजह यह बताई जाती है कि, उमर ने तमाम अज़्वाजे पैग़म्बर (स.अ.व.व) का सालाना वज़ीफ़ा 10 हज़ार मुक़र्रर किया था और आयशा को बारह हज़ार देते थे। उस्मान ने दो दो हज़ार कम करे उनका वज़ीफ़ा भी दीगर अज़्वाज के मसावी कर दिया।

 

रफ़्ता रफ़्ता इसी मुख़ालिफ़त ने ख़तरनाक सूरत इख़तियार कर ली और आयशा खुल कर उस्मान से मुक़ाबले के लिये मैदान में उतर आयीं। उन्होंने मुसलमानों को वरग़लाया, भड़काया और आमादा ए पैकार किया और फ़तवा दिया कि उस्मान काफ़िर हो गया है इस नअसल को क़त्ल कर दो।

 

जब मुसलमान उस्मान के ख़िलाफ़ पूरी तरह मुशतइल और बरगश्ता हो गये और हालात इन्तिहाई नाज़ुक मोड़ पर आ गये तो आप मदीना छोड़ कर हज के बहाने से मक्के रवाना हो गयीं। आपके जाते ही आपके हिमायती तल्हा ज़ुबैर वग़ैरह की मदद से आम मुसलमानों को आमादा कर के हुकूमते उस्मान का तख़्ता पलट दिया और उस्मान बड़ी बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिये गये।

 

बलाज़री का कहना है किः-

हज़रत आयशा की वो पहली ज़ात है जिसने उस्मान की मुख़ालिफ़त में आवाज़ बलन्द की, उनके मुख़ालिफ़ीन के लिये जाए पनाह बनीं और उनसे आमादा ए पैकार लोगों की क़ियादत की। उस वक़्त पूरी ममलेकते इस्लामिया में हज़रत अबू बकर के ख़ानदान से बढ़ कर उस्मान का दुश्मन न था। (1)

 

हज़रत उस्मान से आयशा के इख़तिलाफ़ का सबब उनके वज़ीफ़े में तख़फ़ीफ़ के अलावा वो ज़ियादतियां मज़ालिम और तशद्दुद भी थे जिन्हें उस्मान और उनके आमिलों ने आम मुसलमानों पर रवा रखे थे और जिनकी वजह से मुसलमानों और असहाबे पैग़म्बर (स.अ.व.व) में ग़मों ग़ुस्सा और बरहमी की लहर पैदा हो चुकी थी। तल्हा और ज़ुबैर की वो मिली भगत भी थी जिसके ज़रिये वो लोग हुकूमतो अमारत के ख़्वाहां थे और जिसकी हक़ीक़ी तस्वीर जंगे जमल के मौक़े पर उभर कर सामने आयीं।


(1)    अल निसाबुल अशरफ़ः- जिल्द 5, पेज न. 68

 

उस्मान के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काने उकसाने और वरग़लाने में हज़रत आयशा का किरदार बहुत ही अहम है। वो इस अम्र से बख़ूबी वाक़िफ़ थीं कि रसूले अकरम (स.अ.व.व) से वालिहाना अक़ीदत की बिना पर मुसलमान हुज़ूरे (स.अ.व.व) के जिस्मे अतहर से मस होने वाले वाक़िआत और आसार की ज़ियारत को तरस रहे हैं लिहाज़ा इन्ही वाक़िआत का तवस्सुल उस्मानी हुकूमत का तख़ता पलट देने के लिये काफ़ी है। जब ये चीज़े मुसलमानों के सामने रखी जायेंगी तो वो जज़्बात से मग़लूब होकर बेक़ाबू हो जायेंगे और उनके दिलों में एक हैज़ानी कैफ़ियत पैदा हो जायेगी।

 

हज़रत आयशा का ये हर्बा, यक़ीनन असरदार तरीन हर्बा था। चुनान्चे उन्होंने सरकारे दो आलम की नअलैने मुबारक और पैराहने अक़दस का सहारा लिया और ये दोनों चीज़े मुसलमानों के सामने रख कर माइल ब फ़रयाद हुई कि अभी ये चीज़ें कोहना भी नहीं होने पायीं कि उस्मान ने आं हज़रत (स.अ.व.व) की शरीअत को एकदम बदल कर रख दिया। काश ! इस नअसल को कोई क़त्ल कर दे क्यों कि ये काफ़िर हो गया है।

 

हज़रत आयशा की ये सियासी तदबीर किसी तरह सऊदी पेट्रोल से कम न थी। इसने उस्मान के ख़िलाफ़ सुलगती हुई चिंगारी को शोला बना दिया। आवाम में ग़मों ग़ुस्से की आग भड़क उठी, और मुख़ालेफ़ीन के बिखरे हुए सैलाब ने क़सरे ख़िलाफ़त को चारों तरफ़ से घेर लिया। जब आपने देखा कि मुख़ालिफ़ीनो मोहासेरीन की गिरफ़्त मज़बूत हो चुकी है तो ज़ैद इब्ने साबित, मरवान बिन हकम और अब्दुर रहमान बिन उताब की मिन्नत समाजत के बवजूद उस्मान को मुहासरे में छोड़ कर हज के बहाने से मक्के रवाना हो गयीं। सफ़र के दौरान भी उस्मान के ख़िलाफ़ आपका तब्लीग़ी अमल जारी रहा। चुनान्चे मदीने से कुछ दूर निकल कर सलसल के मक़ाम पर जब आपकी मुलाक़ात इब्ने अब्बास से हुई जो अमीरे हज की हैसियत से मक्के जा रहे थे तो आपने उनसे भी फ़रमायाः-

 

ऐ इब्ने अब्बास ! ख़ुदा ने तुम्हे क़ुव्वते गोयाई अता की है तो लोगों को उस्मान की मदद से रोको और उनके बारे में उन्हें शको शुबहे में मुब्तिला करो रास्ता हमवार हो चुका है, मुख़ालिफ़ शहरों से लोग फ़ैसलाकुन अम्र के लिए मदीने में जमा हो चुके हैं। तल्हा ने बैतुल माल की कुंजियों पर क़ब्ज़ा कर लिया है अगर वो ख़लीफ़ा हो गये तो अपने इब्ने अम अबूबकर की सीरत पर अमल करेंगें। (1)

 

हज़रत आयशा की इस गुफ़्तुगू से ये अम्र पोशीदा नहीं रह जाता कि वो उस्मान के बाद तल्हा की ख़िलाफ़त का ख़्वाब देख रहीं थी और उनके ज़रिये इक़तिदार का रूख़ भी अपने ख़ानदान की तरफ़ मोड़ना चाहती थीं।

 

उस्मानी अहदे हुकूमत के इब्तिदाई छः सालों में हज़रत आयशा उस्मान की ख़ैरख़्वाह, हमनवा, तरफ़दार और मोईनों मददगार रहीं मगर उसके बाद मुख़ालिफ़ हो गयीं मुख़ालिफ़त की वजह ये बयान की जाती है कि हज़रत उमर ने अपने दौरे हुकूमत में अज़्वाजे रसूल का वज़ीफ़ा दस हज़ार मुक़र्रर किया था, लेकिन आयशा को तरजीही बुनियाद पर बारह हज़ार मिलता था।

 

उस्मान ने दो हज़ार कम करे उनका वज़ीफ़ा भी दीगर अज़्वाज के बराबर कर दिया था। जैसा कि याक़ूबी का कहना है किः-

 

हज़रत उस्मान और आयशा के दर्मियान मुख़ालिफ़त की वजह ये थी कि उस्मान ने उनका वज़ीफ़ा जो हज़रत उमर उन्हें दिया करते थे कम कर दिया। (2)

 

हज़रत उस्मान और उनके उम्माल की आमिराना रविश की वजह से सहाबा का एक गिरोह पहले ही से उस्मान का मुख़ालिफ़ था। मुस्तजाद ये कि

 

आयशा की इश्तेआल अंगेज़ी ने उसे और हवा दी यहां तक कि उस मुख़ालिफ़त ने ज़ोर पकड़ लिया और लोग उस्मान के ख़िलाफ़ सरगर्मे अमल हो गये ख़ुसूसन तल्हा इब्ने उबैदुल्लाह और उनका क़बीला बनी तैम इस मुख़ालिफ़त में पेश पेश रहा जिसकी क़ाएद हज़रत आयशा थीं। उन लोगों ने क़त्ले उस्मान के असबाब फ़राहम करने में कोई कसर उठा नहीं रखी। बलाज़री रक़म तराज़ है किः-

 

तल्हा से बढ़ कर हज़रत उस्मान पर सख़्तगीर कोई नहीं था। (3)

 

तल्हा ने अपनी हिकमते अमली से मुहासेरीन में जोशो ख़रोश पैदा कर के उस्मान पर मुहासरे को मज़ीद तंग किया। उन पर पानी बन्द किया। रात के अन्धेरे में क़सरे ख़िलाफ़त पर तीरों की बारिश की और अब्दुर रहमान बिन अदबस को इस अम्र पर मजबूर किया कि वो उनके घर आने जाने वालों पर पाबन्दी आएद कर दें। चुनान्चे उस्मान को इन बातों का इल्म हुआ तो उन्होंने कहाः-

 

परवर दिगार मुझे तल्हा के शर से महफ़ूज़ रखे इसी ने लोगों को मेरे ख़िलाफ़ भड़काया है और मेरे गिर्द घेरा डलवा दिया। (4)

 

उस्मान के क़त्ल हो जाने के बाद तल्हा के रवय्ये में फ़र्क़ न आया। उनकी लाश पर पत्थर बरसाये और उन्हें जन्नतुल बक़ी में दफ़्न न होने दिया और यही हालत ज़ुबैर की भी थी कि वो मुहासेरीन के दर्मियान आयशा की इस बात को दोहराते रहते थे किः-

 

उस्मान को क़त्ल कर दो उसने तो तुम्हारे दीन ही को बदल दिया। (5)

 

यही वो लोग थे जिन्होंने क़त्ले उस्मान की बुनियाद रखी, और उनके ख़िलाफ़ ऐसी फ़ज़ा पैदा कर दी कि जिसके नतीजे में वो क़त्ल कर दिये गये। अगर उस्मान का क़त्ल वाक़ई जुर्म था तो ये लोग उस जुर्म से बरी हरग़िज़ नहीं क्यों कि क़ातिलों और मुजरिमों की मदद और पुश्त पनाही भी जुर्म है।

 

हज़रत आयशा को अपनी कामयाबी का यक़ीन था उनका बोया हुआ बीज फल ज़रूर देगा इस लिये वो क़त्ले उस्मान से बीस दिन पहले ही इस ख़्याल के तहत मदीने से खिसक लीं कि दुनिया उनको तमाम हंगामा आराइयों से बेताल्लुक़ तसव्वुर करे और जब उस्मान का काम तमाम हो जाये तो वो तल्हा या ज़ुबैर को बरसरे इक़्तिदार लाकर उस माली नुक़्सान की तलाफ़ी कर सके जो मौजूदा हुकूमत से उन्हें पहुंचा है। मगर वो अपने इस मक़सद में कामयाब न हो सकीं और उनकी अहम मौजूदगी में ही मुसलमानों ने हज़रत अली की ख़िलाफ़त का फ़ैसला कर लिया।

 

हज़रते उस्मान ने जो शूरा क़ायम किया था उसके रूक्न तल्हा और ज़ुबैर भी थे इस लिये उनका ज़हन भी ख़िलाफ़त के तसव्वुर से ख़ाली नहीं था, चुनान्चे क़त्ले उस्मान के सिलसिले की तमाम तर कोशिशें इसी मक़सद के हुसूल का नतीजा थीं मगर उन लोगों ने जब ये देखा कि लोग हज़रत अली की ख़िलाफ़त पर बज़िद हैं और उनके अलावा किसी की बैअत पर रज़ामन्द नहीं हैं तो उन लोगों ने भी राय आम्मा का रूख़ देख कर पेश क़दमी की और हज़रत अली की बैअत कर ली और दूसरे ही दिन ये मुतालिबा किया कि उन्हें कूफ़ा और बसरा की अमारत दे दी जाये। लेकिन हज़रत आली ने ये गवारा न किया कि उन इलाक़ों को जो हुकूमत के मुहासिल का सरचश्मा हैं उनकी बढ़ती हुई हिर्सो हवस की आमाजगाह बनने दें। चुनान्चे आपने ये कह कर इन्कार कर दिया की मैं तुम्हारे मामलात में जो बेहतर होगा वो करूगां, फ़िलहाल तुम दोनों का मेरे पास ही मरकज़ में रहना ज़्यादा बेहतर है।

 

तल्हा और ज़ुबैर समझ रहे थे कि कूफ़ा और बसरा में उनके असरात हैं और उन्हीं की आवाज़ पर वहां के लोग उस्मानी हुकूमत में इन्क़िलाब बरपा करने की ग़रज़ से जमा हुए थे इस लिये अमीरूल मोमिनीन उन असरो रूसूख़ से मुतास्सिर हो कर उन्हें कूफ़े और बसरे की हुकूमत का परवाना लिख देंगे। मगर मायूसी के अलावा उन्हें और कुछ हासिल न हुआ और उन्होंने समझ लिया कि अली (अ.स) के होते हुए उन्हें न तो मनमानी करने का मौक़ा फ़राहम होगा और न ही वो ख़ुसूसी मुराआत हासिल होंगी जो सबका हुकूमतों में हासिल थीं लिहाज़ा उन्होंने अपने मक़ासिद की तकमील के लिए ग़ैर आईनी ख़ुतूत पर सोचना शुरू किया और अपनी तवज्जो का रूख़ आयशा की नक़्लों हर्कत की तरफ़ मोड़ दिया ताकि उनके अज़ाइम की रौशनी में मुस्तक़बिल का प्रोगाम तरतीब दें।

 

हज़रत आयशा ये चाहती थीं कि उस्मान के क़त्ल के बाद, तल्हा को बरसरे इक़तिदार लायें और इस तरह ख़िलाफ़त को मुस्तक़िलन अपने क़बीले बनी तैम में मुन्तक़िल कर दें इस लिये की मक्के में क़याम के दौरान बलवाइयों की यूरिश का नतीजा मालूम करने के लिये बेचैन रहती थीं और हर आने जाने वाले से मदीने के हालात और उस्मान के अंजाम के बारे में मालूम करती रहती थीं। इसी अस्ना में मदीने से अख़ज़र नामी एक शख़्स मक्के आया। हज़रत आयशा ने उसे बुलवाकर पूछा कि मदीने की शोरिश अंगेज़ी का क्या नतीजा हुआ? उसने कहा कि हज़रत उस्मान ने मिस्र के बलवाइयों को मौत के घाट उतार दिया है और शोरिशो हंगामें पर क़ाबू पा लिया है। इस ख़बर ने उनके सारे ख़्यालात का शीराज़ा दरहम बरहम कर दिया, उन्होंने तास्सुफ़ आमेज़ लहजे में कहाः-

 

इन्ना लिल्लाहे व इन्ना एलैहे राजेऊन ! क्या उन लोगों को उस्मान ने क़त्ल कर दिया जो अपना हक़ मांगने और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बलन्द करने की ग़रज़ से गये थे? ख़ुदा की क़सम हम इस पर राज़ी नहीं हैं। (6)

 

अभी आयशा अफ़सुर्दगी की हालत में थी कि एक दूसरे शख़्स ने आकर ये इत्तिला दी कि अख़ज़र की बातें ग़लत हैं मिस्रियों में से कोई क़त्ल नहीं हुआ, वो खुले बन्दो मदीने में दनदनाते हुए फिर रहे हैं, अलबत्ता हज़रत उस्मान उन लोगों के हाथों मारे गये हैं। ये सुन कर उम्मुल मोमिनीन पर मसर्रतो शादमानी तारी हो गयी और उन्होंने मुस्कुराते हुए फ़रमायाः-

 

ख़ुदा उसे अपनी रहमत से दूर रखे, वो अपने करतूतों को पहुंच गया। (7)

 

इस ख़बर के बाद हज़रत आयशा के लिए मदीने जाना ज़रूरी हो गया ताकि तल्हा की ख़िलाफ़त का रास्ता हमवार करें और फ़िज़ा को उनके लिए अपने असरात से साज़गार बनायें।

 

चुनान्चे उन्होंने फ़ौरन सामाने सफ़र बांधा और मदीने की तरफ़ चल पड़ीं। लेकिन अभी मक्के से तक़रीबन 10 किलोमीटर का फ़ासला तय किया होगा कि सर्फ़ के मक़ाम पर उबैदुल्लाह इब्ने अबी सलमा से मुलाक़ात हुई। आपने उस्मान और मदीने के सियासी हालात के बारे में उस से दर्याफ़्त किया। उसने कहा हज़रत उस्मान क़त्ल कर दिये गये हैं पूछा, फिर क्या हुआ? कहा ! मुसलमानों ने हज़रत अली की बैअत कर ली है। ये सुनते ही ज़मीन पैरो तले से ख़िसकने लगी और आसमान धुंवा बन कर उड़ता नज़र आने लगा। कानों को यक़ीन न आया तो फिर पूछा कि क्या वाक़ई अली की बैअत हो गयी है। भला उनसे ज़्यादा मसनदे ख़िलाफ़त का मुस्तहक़ और सज़ावार कौन था? अब आयशा के लिये अपने जज़्बात पर क़ाबू रखना मुशकिल हो गया। तेवराकर गिरने ही वाली थीं कि बेसाख्ता उनकी ज़बान से निकलाः-

 

काश ये आसमान मुझ पर फट पड़े और मैं उसमें समा जांऊ। (8)

 

ग़रज़ कि मुअज़्ज़मा उल्टे पैरों मक्के की तरफ़ पलट पड़ी और रंजोग़म के स्टेज पर इन अलफ़ाज़ के साथ एक नया ड्रामा शुरू कर दियाः-

 

ख़ुदा की क़सम उस्मान मज़लूम मारे गये, मैं उनके ख़ून का इन्तिक़ाम ले कर रहूंगी। (9)

 

अब्दुल्लाह इब्ने अबी सलमा इस मुतज़ाद तर्ज़े अमल को देख कर हैरत और इस्तेजाब के दरिया में ग़र्क़ हो गया उसने आयशा से कहाः-

 

आप तो बार बार ये कहा करती थी कि इस नअस्ल को क़त्ल कर डालो ये काफ़िर हो गया है। (10)

 

अब ये तब्दीली कैसी? कहाः-

 

हां ! पहले मैं यही कहा करती थी लेकिन अब ये मेरी राय पहली राय से ज़्यादा बेहतर है। हज़रत आयशा की इस बात से उबैद मुतमइन न हो सके।

चुनान्चे उन्होंने कहा कि ऐ उम्मुल मोमिनीन ! ख़ुदा की क़सम ये इन्तिहाई बौदा उज़्र है। (11)

 

उसके बाद उबैद इब्ने अबी सल्मा ने हज़रत आयशा को मुख़ातिब कर के अरबी में कुछ शेर पढ़े, जिनका उर्दू तर्जमा हस्बे ज़ैल है।

1. आप ही ने पहल की आप ही ने मुख़ालिफ़त के तूफ़ान उठाये और अब आप अपना रंग बदल रही हैं।

2. आप ही ने ख़लीफ़ा के क़त्ल का हुक्म दिया और हम से कहा कि वो काफ़िर हो गया।

3. हमने माना की आपके हुक्म की तामील में ये क़त्ल हमारे हाथों से हुआ, मगर हमारे नज़्दीक अस्ल क़ातिल आप हैं जिस ने क़त्ल का हुक्म दिया।

4. (सब कुछ हो गया) मगर न आसमान हमारे ऊपर फट पड़ा और न चांद, सूरज को गहन लगा।

5. और लोगों ने उसकी बैअत कर ली जो क़ुव्वतों शिकोह से दुश्मनों को हकाने वाला है, तलवारों की धारों को क़रीब फ़टकने नहीं देता और गर्दन कशों के बल निकाल देता है।

 

उम्मुल मोमिनीन चूंकि जल्द अज़ जल्द मक्के पहुंच जाना चाहती थीं, इस लिये उन्होंने उबैद के अशआर पर कोई तवज्जो नहीं दी और आगे बढ़ गयीं। जब मक्के वापस पहुंची तो लोगों ने कहाः-

 

ऐ उम्मुल मोमिनीन ! अभी तो आप रवाना हुई थीं आख़िर पलट क्यों आयीं? बोलीः-

 

उस्मान बेगुनाह मारे गये, मैं उनका ख़ून राएगां नहीं जाने दूंगी और उस वक़्त तक वापस नहीं जाऊंगी जब तक उनके ख़ून का इन्तिक़ाम नहीं ले लूंगी।

 

लोग उनकी साबेक़ा और मौजूदा रविश के तज़ाद पर सख़्त हैरान हो गये मगर कुछ कहने के बजाय ख़ामोश रहे।


1. तबरीः- जिल्द 3 पेज न. 434
2. तारीख़े याक़ूबीः- जिल्द 2 पेज न. 132
3. अल निसाबुल अशरफ़ः- जिल्द 1 पेज न. 113
4. तबरीः- जिल्द 3 पेज न. 411
5. इब्ने अबिल हदीद मोअतज़ेलीः- जिल्द 2 पेज न. 404
6. तबरीः- जिल्द 3 पेज न. 468
7. शराह इब्ने अबिल हदीदः- जिल्द 2 पेज न. 77
8. तारीख़े कामिलः- जिल्द 3 पेज न. 105
9. तारीख़े कामिलः- जिल्द 3 पेज न. 105
10. कामिलः- जिल्द 3 पेज न.  105
11. अल इमामत वल सियासतः- जिल्द 1 पेज न. 52