सिन्दबाद की कथा

फार्स में सिन्दबाद नाम का एक राजा रहता था। उसके पास प्रशिक्षित बाज़ एक बाज़ था जिसे वह बहुत चाहता था और उसे अपने से अलग नहीं करता था। सिन्दबाद के आदेश से बाज़ की गर्दन में सोने का बना एक छोटा प्याला बांध दिया गया था ताकि जब भी उसे प्यास लगे उससे पानी पी ले। एक दिन राजा सिन्दबाद और उसके मंत्री व दास शिकार करने गये। वह सदैव की भांति अपने साथ बाज़ को भी ले गया था। उनकी जाल में एक हिरन फंस गया था। राजा के साथ में जो लोग थे उन्होंने हिरन को चारों ओर से घेर लिया। हिरन ने जाल को फाड़ दिया और वह बाहर निकल कर भागना चाह रहा था। राजा सिन्दबाद ने चिल्ला कर कहा भागने न पाये।

 

जिसके सामने से हिरन भाग जायेगा मैं उसकी हत्या का आदेश दे दूंगा। अभी राजा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि हिरन ने उसकी ओर छलांग लगायी और उसके ऊपर से कूद कर भाग गया। राजा के दासों ने मंत्री को देखा और चुप रहे। मंत्री ने धीरे से राजा के कान में कहा कि हिरन आपके सिर के ऊपर से भागा है। अब क्या करना चाहिये? राजा सिन्दबाद मंत्री के कहने का तात्पर्य समझ गया। वह घोड़े पर सवार हुआ और चिल्ला कर कहा हिरन के पीछे जा रहा हूं और जब तक उसे पकड़ नहीं लूंगा वापस नहीं आऊंगा। यह कहकर उसने हिरन का पीछा किया। बाज़ राजा के कंधे पर बैठा हुआ था। उसने अपने परों को फैलाया और तेज़ी से उड़ा। वह हिरन तक पहुंच गया और अपनी तेज़ चोंच से हिरन की आंखों को फोड़ दिया। हिरन अंधा हो गया अब वह भाग न सका। कुछ ही क्षणों में राजा सिन्दबाद वहां पहुंच गया। उसने हिरन को पकड़ा और उसे ज़िबह कर दिया। उसके बाद उसने हिरन को घोड़े पर रख लिया। इसके बाद वह एक पेड़ की छांव में बैठ गया ताकि थोड़ा विश्राम करे। पेड़ की एक डाल से बूंद-2 करके पानी ज़मीन पर टपक रहा था । राजा सिन्दबाद प्यासा था। वह पानी देखकर प्रसन्न हो गया। सोने का छोटा प्याला उसने बाज़ की गर्दन से खोला और जहां पानी टपक रहा था वहां उसे रख दिया।

 

प्याला पानी से भर गया। राजा सिन्दबाद उसे पीने के लिए अपने मुंह के निकट ले गया अचानक बाज़ उड़कर आया और उसे अपने पंख से धक्का मार कर गिरा दिया। प्याला ज़मीन पर गिर गया और उसमें का सारा पानी बह गया। राजा सिन्दबाद ने बाज़ को एक नज़र देखा और प्रेम से कहा तू भी प्यासा है? थोड़ा धैर्य कर। उसके बाद उसने दोबारा प्याले को वहां रख दिया जहां पानी टपक रहा था। दोबारा प्याला भर गया। इस बार उसने प्याले को बाज़ की चोंच के सामने कर दिया और कहा कि पहले तू पी ले उसके बाद मैं किन्तु इस बार भी बाज़ ने अपने पंखों से पानी को ज़मीन पर गिरा दिया। राजा सिन्दबाद ने स्वयं से कहा निश्चित रूप से यह चाहता है कि सबसे पहले मैं अपने घोड़े को पानी पिलाऊं। यह सोचकर उसने दोबारा प्याले को पानी से भरा। इस बार वह उसे घोड़े के समक्ष ले गया। अभी घोड़े ने पानी को मुंह तक नहीं लगाया था कि बाज़ ने उड़कर उसे अपने पंखों से गिरा दिया। अब राजा को क्रोध आ गया। उसने बाज़ की ओर देखा और कहा दुष्ट बाज़ न खुद पानी पी रहा है और न किसी दूसरे को पीने दे रहा है। इसके बाद क्रोध में उसने म्यान से तलवार निकाली और उसने उससे बाज़ के पंख काट दिये। बाज़ खून से रंगीन हो गया। घायल पक्षी की नज़रों से दुःख झलक रहा था। उसने राजा सिन्दबाद को अपनी नज़रों से देखा उसके बाद उसने अपने सिर से पेड़ की डाल की ओर संकेत किया। राजा बाज़ के इशारे को समझ गया।

 

उसे सिर उठाकर ऊपर देखा तो उसने विश्वास न करने वाला दृश्य दिखाई दिया। मरा हुआ बड़ा व डरावना सांप जो डाल में लिपटा हुआ था और उसके मुंह से बूंद -2 कर उसका विष टपक रहा था। राजा सिन्दबाद यह दृश्य देखकर हतप्रभ रह गया। इसके बाद वह अपने किये पर बहुत शर्मीन्दा हुआ और चीख मारी। घायल बाज़ को हाथ में लिया और उसके खून से रंगीन पंखों को चूमा और कहा मेरे दयालु पक्षी तूने मुझे बचा लिया और मैंने तेरे साथ क्या किया। उसके बाद उसने बाज़ को अपनी छाती से लगा लिया और घोड़े पर बैठा और तेज़ी से महल की ओर आया। वह थका और दुःखी महल पहुंचा। हिरन को महल के रसोइघर में दिया और सिंहासन पर बैठ गया जबकि उसकी बग़ल में बाज़ भी था। बाज़ अंतिम सांसें ले रहा था। राजा सिन्दबाद क्रोध और पछतावे के साथ उसे देख रहा था और उसके पंखों को प्यार कर रहा था और सहला रहा था। अंततः बाज़ ने अंतिम सांस ली और राजा सिन्दबाद के हाथ में दम तोड़ दिया। राजा रह गया परंतु जीवन भर पछताता रहा।