हज़रत इमाम नक़ी (अ.स.) की इमामत
मामून रशीद के इन्तेक़ाल के बाद जब मोतासिम बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी अपने अबाई किरदार को सराहा और ख़ानदानी रवये का इत्तेबा किया। उसके दिल में भी आले मौहम्मद की तरफ़ से वही जज़बात उभरे जो उसके आबाओ अजदाद के दिलों में उभर चुके थे।
उसने भी चाहा कि आले मौहम्मद स. की कोई फ़र्द ज़मीन पर बाक़ी न रहे। चुनाचे उसने तख़्त नशीं हाते ही हज़रत इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स.) को मदीने से बग़दाद तलब कर के नज़र बन्द कर दिया।
इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स.) जो अपने आबाओ अजदाद की तरह क़यामत तक के हालात से वाकि़फ़ थे। मदीने से चलते वक़्त अपने फ़रज़न्द को अपना जां नशीन मुक़र्रर कर दिया और वह तमाम तबर्रूकात जो इमाम के पास हुआ करते हैं आपने इमाम नक़ी (अ.स.) के सिपुर्द कर दिए।
मदीने मुनव्वरा से रवाना हो कर आप 9 मोहर्रमुल हराम 220 हिजरी को वारिदे बग़दाद हुए। बग़दाद मे आपको एक साल भी न गुज़रा था कि मोतसिम अब्बासी ने आपको ब तारीख़ 29 जि़क़ाद 220 हिजरी मे ज़हर से शहीद कर दिया।
(नूरूल अबसार सफ़ा 147)
उसूले काफ़ी में है कि जब इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स.) को पहली बार मदीने से बग़दाद तलब किया गया तो रावीये ख़बर इस्माइल बिन महरान ने आपकी खि़दमत में हाजि़र हो कर कहाः मौला। आपको बुलाने वाला दुश्मने आले मौहम्मद है। कहीं ऐसा न हो कि हम बे इमाम हों जायें। आपने फ़रमाया कि हमको इल्म है तुम घबराओ नहीं इस सफ़र में ऐसा न होगा।
इस्माईल का बयान है कि जब दोबारा आपको मोतसिम ने बुलाया तो फिर मैं हाजि़र हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ कि मौला यह सफ़र कैसा रहेगा? इस सवाल का जवाब आपने आसुओें के तार से दिया और ब चश्में नम कहा कि ऐ इस्माईल मेरे बाद अली नक़ी को अपना इमाम जानना और सब्र ज़ब्त से काम लेना।
(तज़किरातुल मासूमीन सफ़ा 217)