जवानी का मज़ा

उम्र, शारीरिक व आत्मिक उतार- चढ़ाव और प्रगति की बहार है। जवानी वह समय है जब शक्ति, भावना और एहसास और आकांक्षा आदि इंसान पर हावी होते हैं और ऐसे समय में जो चीज़ इंसान को सही रास्ता दिखा सकती है वे ईश्वरीय क़ानून हैं यानी पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथन। आज के कार्यक्रम में हम इस बात की समीक्षा करेंगे कि अगर किसी जवान का दिल ईश्वरीय ग्रंथ पवित्र कुरआन से लग जाये तो उसके क्या लाभ हैं। पवित्र कुरआन वह आसमानी किताब है जो जवान को परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचा देती है।

 

 

युवा के अंदर धार्मिक रुझान पाया जाता है। धर्म, आध्यात्म और परिज्ञान के बारे में जवानों के पास बहुत प्रश्न होते हैं। इस आधार पर जवानों के धर्म से परिचित होने का अधिक महत्व है। क्योंकि धार्मिक रुझान के साथ ही जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचना संभव है।

 

 

 

युवा के मार्गदर्शन में जिस तरह उसके रुझानों व रुचियों पर ध्यान देना आवश्यक है उसी तरह ईश्वर की पहचान के संबंध में उसकी आत्मिक प्यास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये। क्योंकि युवाओं का पवित्र हृदय वास्तविकताओं को स्वीकार करने के लिए तैयार होता है इसलिए जवानों का सही मार्गदर्शन आवश्यक होता है। जवानों के अंदर धर्म की प्यास उस समय बुझेगी जब वे जीवन के समृद्ध व वास्तविक स्रोतों से अवगत होंगे।

 

 

पवित्र कुरआन जीवन और वास्तविकताओं को स्पष्ट करने वाला वह स्रोत है जिसे महान ईश्वर ने पैग़म्गबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम पर उतारा है। पवित्र कुरआन की आयतें इंसान की पवित्र और अच्छी प्रवृत्ति को अपनी ओर आकर्षित करती हैं और वे सोच -विचार, चिंतन- मनन करने और वर्तमान एवं अतीत की घटनाओं से पाठ लेने के लिए इंसान का आह्वान करता है। पवित्र कुरआन मार्गदर्शन की किताब है और इंसान ऐसा प्राणी है जिसके पास सोच- विचार की शक्ति है और उसे मार्गदर्शक की आवश्यकता है।

 

 

पवित्र कुरआन महान ईश्वर का बहुत बड़ा चमत्कार है। वह चमकते सूरज की भांति है जो भी उसके प्रकाश से लाभ उठायेगा वह हरा- भरा व प्रफुल्लित हो जायेगा। इसी आधार पर धर्म पर आस्था रखने वाला इंसान पवित्र कुरआन का अध्ययन करके नयी वास्तविकताओं को प्राप्त करता है और वह अपनी सोच व बुद्धि का प्रयोग करके सही गलत में अंतर करता है।

 

 

पवित्र कुरआन जीवनदायक अपनी शिक्षाओं के माध्यम से इंसानों के दिलों को अपनी ओर आकर्षित करता है और इंसानों का मार्गदर्शन जीवन की सही शैली की ओर करता है। पवित्र कुरआन का उद्देश्य यह है कि मानव समाज में ईमान, न्याय, शांति, प्रेम, दोस्ती और भाई- चारा आदि प्रचलित हो। इसी परिप्रेक्ष्य में पवित्र कुरआन इंसानों का आह्वान करता है कि वे दूसरों पर अन्याय करने से दूरी करें और न्याय और एकेश्वरवाद को अपने जीवन का आदर्श करार दें। पवित्र कुरआन को याद करने का बेहतरीन समय जवानी एवं नौजवानी है जो चीज़ इस उम्र में याद कर ली जाती है वह सदैव बाक़ी रहती है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं जो जवानी में ज्ञान अर्जित करता है उसका उदाहरण पत्थर पर लिखी लकीर की भांति है और जो बुढ़ापे में ज्ञान अर्जित करता है वह पानी पर लिखने की भांति है।“

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन समस्त लोगों विशेषकर युवाओं का पवित्र कुरआन को पढ़ने और उसे समझने का आह्वान करते थे ताकि वे इस किताब की जीवनदायक शिक्षाओं से लाभान्वित हो सकें। जवान जितना अधिक पवित्र कुरआन से लाभ उठायेगा उतनी ही उसके  आध्यात्म में वृद्धि होगी और पापों से दूरी करता चलता जायेगा।

 

 

जवानों को चाहिये कि वे पवित्र कुरआन को महत्व दें और उसे अपना बेहतरीन साथी करार दें। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जवानों के बेहतरीन साथी के बारे में फरमाते हैं” अगर दुनिया के पूरब और पश्चिम के समस्त लोग चले जायें तो भी मैं अकेलेपन से कदापि नहीं डरूंगा जब कुरआन हमारे साथ हो।“

 

 

 

पवित्र कुरआन अपनी आयतों में जवानों के लिए योग्य व भले जवानों का उदाहरण पेश करता है ताकि वे अपने जीवन में पवित्र कुरआन की शिक्षाओं को व्यवहारिक बनायें और परिपूर्णता की ओर क़दम बढायें। पवित्र कुरआन में जवानों के एक उदाहरण हज़रत युसुफ पैग़म्बर हैं। जब वह युवा हो गये तो उन्होंने अपने जीवन की एक कड़ी परीक्षा दी और उसमें वह सफल हो गये। वह परीक्षा उनकी पवित्रता व पाकदामनी की थी। हज़रत युसुफ अपने पालनहार से दुआ करते हुए कहते हैं हे पालनहार! मेरी नज़र में कारावास उस चीज़ से बेहतर है जिसकी ओर ये महिलाएं मुझे बुला रही हैं और अगर तू इनकी चालों को उनकी ओर नहीं लौटायेगा तो मेरा दिल उनकी ओर झुक हो जायेगा और मैं अज्ञानी लोंगों में से हो जाऊंगा।“

 

 

महान ईश्वर ने भी हज़रत युसुफ को अकेला नहीं छोड़ा और महिलाओं की चाल को उनकी ओर पलटा दिया परिणाम स्वरूप हज़रत युसुफ की पवित्रता और मिस्र के राजा की पत्नी की धूर्तता सिद्ध हो गयी। हज़रत यूसुफ़ की कहानी से हमारे जवानों को पाठ मिलता है कि जवानों को चाहिये कि वे पूरी तरह और सही अर्थों में महान ईश्वर पर भरोसा करें न कि अपनी शक्ति और अपने ईमान पर।

 

 

 

समाज में शिक्षा -प्रशिक्षा के ज़िम्मेदारों का दायित्व है कि वे जवानों एवं नौजवानों को पवित्र कुरआन से परिचित करायें और उनकी सोच- विचार को पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के अनुरुप बनायें और इस प्रकार वे पवित्र कुरआन को अलग- थलग की स्थिति से बाहर निकालें। अगर जवान पवित्र कुरआन से प्रेम करने लगें और उसकी आयतों की तिलावत करें और उसमें चिंतन- मनन करें तो उनके हृदय प्रकाशमयी हो जायेंगे।

 

 

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं जो ईमानदार जवान पवित्र कुरआन की तिलावत करे तो कुरआन उसके मांस और खून में मिश्रित हो जायेगा।“

 

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ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई जवानों के मध्य पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार पर विशेष ध्यान देते हैं। वरिष्ठ नेता जवानों को संबोधित करते हुए कहते हैं मेरे प्रिय जवानो! कुरआन की तिलावत एक बहुत बड़ी विशेषता है और वह एक पुण्य है परंतु यह तिलावत ज्ञान तक पहुंचने का साधन है। यह कुरआन एक महासागर है। जितना आगे बढ़ोगे उतना अधिक प्यासे होते जाओगे कुरआन के प्रति आपका प्रेम बढ़ता जायेगा और आपका दिल प्रकाशमयी होता जायेगा। कुरआन में चिंतन- मनन करना चाहिये। मैं फिर आप जवानों का आह्वान करता हूं कि कुरआन के अर्थों से रूचि पैदा करो और कुरआन के अनुवाद को समझो। मैंने बारम्बार इस चीज़ का आह्वान जवानों से किया है और बहुत से जवानों ने इस दिशा में क़दम भी बढाया है। जिस कुरआन की प्रतिदिन तिलावत करते हो, जितना तिलावत किया है। उसके अनुवाद को भी देखो। इन अर्थों को जवानों के ज़ेहनों में बैठ जाने दो उस समय वह चिंतन- मनन का अवसर प्राप्त कर लेगा।“

 

 

पवित्र कुरआन व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्त मामलों में जवानों का मार्गदर्शक है। आत्म निर्माण, परिवार के साथ व्यवहार, कार्य और सरकार चलाने आदि के नियम पवित्र कुरआन में मौजूद हैं। दूसरे शब्दों में व्यक्ति एवं सामाजिक जीवन के समस्त क़ानून इस आसमानी किताब में मौजूद हैं।

 

 

KEVIN  COMBES  नामक युवा ने ईश्वरीय धर्म इस्लाम की अच्छाईयां समझ जाने के बाद इस धर्म को स्वीकार कर लिया और उसने अपना नाम अब्दुल्लाह इस्लाम रख लिया। वह अमेरिकी जवान है। वह पवित्र कुरआन को मार्गदर्शक पुस्तक समझता है और वह जीवन शैली को पवित्र कुरआन से सीखता है। वह इस किताब की सुन्दरता को इस प्रकार बयान करता है “जब मैं कुरआन से परिचित हुआ तो देखा कि दुनिया में मैंने जितनी भी बातें सुनी हैं वह उन सबमें सबसे सुन्दर है मैं कुरआन के अर्थों को नहीं समझता था केवल इतना समझता था कि वह बहुत सुन्दर वाणी है। जब मैंने कुरआन का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ कर जो महसूस करता हूं उसे शब्दों में नहीं बयान कर सकता। कुरआन में कोई विरोधाभास दिखाई नहीं पड़ता। यह आसमानी किताब जिन्दगी की किताब है।“

 

 

पवित्र कुरआन सदैव बाक़ी  रहने वाली पूंजी है और वह कभी भी समाप्त नहीं होगी। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं जो भी जवानी के समय में कुरआन पढ़े और बा ईमान हो तो कुरआन उसके मांस और खून में मिश्रित हो जायेगा। ईश्वर उसके साथ संदेश ले जाने वाले फरिश्तों जैसा अच्छा व्यवहार करेगा और प्रलय के दिन कुरआन नरक की आग के समक्ष बाधा बन जायेगा और कहेगा पालनहार! मेरे श्रमिक के अलावा हर श्रमिक को उसकी मज़दूरी मिल गयी। तो तू अपनी बेहतरीन पारितोषिक को उसे प्रदान कर। तो ईश्वर स्वर्ग से उसे दो वस्त्र पहनायेगा और उसके सिर पर प्रतिष्ठा का मुकुट रखेगा। उसके बाद कुरआन से कहा जायेगा क्या हमने इस व्यक्ति के बारे में तुम्हें प्रसन्न कर दिया? कुरआन कहेगा पालनहार! मैं उसके बारे में इससे बेहतर चाहता था तो उसके बाद नरक की आग से सुरक्षा का पत्र उसके दाहिने हाथ में दिया जायेगा और सदैव स्वर्ग में रहने का पत्र उसके बायें हाथ में दिया जायेगा और वह स्वर्ग में दाखिल हो जायेगा। उसके बाद उससे कहा जायेगा कुरआन पढ़ो और एक दर्जा ऊपर जाओ। उस समय कुरआन से कहा जायेगा क्या तुम जो चाहते थे उस तक मैंने तुम्हें पहुंचा दिया और तुम्हें प्रसन्न कर दिया? वह व्यक्ति कहेगा हां तो इमाम ने फरमाया जो कुरआन को बहुत अधिक पढ़ेगा इसके बावजूद कि उसका याद करना उसके लिए कठिन हो वह उसे अपने ज़ेहन में सुरक्षित और याद कर ले तो ईश्वर उसे दोबारा इसका बदला देगा।