क़ुसई बिन कलाब

पांचवीं सदी इसवी में एक बुज़ुर्ग फ़हर की नस्ल से गुज़रे हैं जिनका नाम क़ुसई था।

 

शिबली नोमानी का कहना है कि उन्हीं क़ुसई को क़ुरैश कहते हैं लेकिन मेरे नज़दीक़ ये ग़लत है क़ुसई का असली नाम ज़ैद और कुन्नियत अबुल मुग़ैरा थी।

 

उनके बाप का नाम कलाब और मां का नाम फ़ात्मा बिन्ते असद और बीबी का नाम आतका बिन्दे ख़ालिख़ बिन लैक था।

 

यह निहायत ही नामवरबुलन्द हौसला जवा मर्द अज़ीमुश्शान बुज़ुर्ग थे।

 

उन्होंने ज़बरदस्त इज़्ज़त व इख़तेदार हासिल किया था यह नेक चलन बा मुरव्वतसख़ी व दिलेर थे।

 

इनके विचार पवित्र और बेलौस थे। इनके एख़लाक़ बुलन्दशाइस्ता और मोहज़्ज़ब थे। इनकी एक बीबी हबी बिन्ते ख़लील ख़ेज़ाईं थीं। यह ख़लील बनु ख़ज़आ का सरदार था।

 

इसने मरने के समय ख़ाना ए काबा की तौलीयत हबी के हवाले कर देना चाहीइसने अपनी कमज़ोरी के हवाले से इन्कार कर दिया फिर उसने अपने एक रिश्तेदार अबू ग़बशान ख़ेज़ाई के सुपुर्द की।

 

उसने इस अहम खि़दमत को क़ुसई के हाथो बेच दिया। इस तरह क़ुसई इब्ने क़लाब इस अज़ीम शरफ़ के भी मालिक बन गए। उन्होंने ख़ाना ए काबा की मरम्मत कराई और बरामदा बनवाया।

 

रिफ़ाहे आम के सिलसिले में अनगिनत खि़दमते कीं। मक्का में कुवां खुदवाया जिसका नाम अजूल था। क़ुसई का देहान्त 480 ई0 में हुआ।

 

मरने के बाद उन्हें मुक़ामे हजून में दफ़्न किया गया और उनकी क़ब्र ज़्यारत गाह बन गई।

 

क़ुसई अगरचे नबी या इमाम न थे लेकिन हामिले नूरे मोहम्मदी (स.अ.) थे। यही वजह है कि आसमाने फ़ज़ीलत के आफ़ताब बन गये।