अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

अबू बक्र की ख़िलाफ़त के दौर में शियों के हालात।

1 सारे वोट 05.0 / 5

 शिया समुदाय के राजनीतिक और समाजिक इतिहास का पहला चरण रसूले इस्लाम स.अ. के देहांत से शुरू होकर अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.ह) की शहादत तक जारी रहा। इस चरण के शुरू से ही इमामत व ख़िलाफ़त का मुद्दा इस्लामी दुनिया के महत्वपूर्ण राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों के रूप में उभर कर सामने आया और इस बारे में जो मतभेद सामने आये उनके आधार पर शिया एक ऐसे इस्लामी समुदाय के रूप में उभर कर सामने आया जो इमामत के लिए पैग़म्बरे इस्लाम की नस (हदीस) और आपकी ओर से नियुक्त किए जाने को मानते थे। जब कि दूसरी ओर जो मुहाजेरीन व अंसार रसूले इस्लाम स.अ के उत्तराधिकारी के चयन के लिए सक़ीफ़ा बनी साएदा में जमा हुए थे उन लोगों ने आपसी मतभेद और विचार विमर्श के बाद अबू बक्र को रसूले इस्लाम का ख़लीफ़ा स्वीकार कर लिया और इस्लामी शासन के शासक की हैसियत से उनकी बैअत कर ली, इस तरह अबू बक्र ने मुसलमानों के मामलों की बागडोर अपने हाथों में ले ली यह सिलसिला दो साल सात महीने तक जारी रहा।इस चरण के आरम्भ में हज़रत अली और आपकी इमामत स्वीकार करने वालों ने अबू बक्र की बैअत से इंकार कर दिया और विभिन्न अवसरों पर अपने अक़ीदे को ज़ाहिर भी करते रहे। इब्ने क़तीबा के अनुसार अबू बक्र के आदेश से हज़रत अली (अ.ह) को बुलाया गया और आपसे अबू बक्र की बैअत करने की मांग की गई तो आपने अ. उनसे फ़रमायाः
)“انا احقّ بهذا الامر منكم، لا ابايعكم و انتم اولى بالبيعة لي”(
मैं इस ख़िलाफ़त के लिए तुमसे कहीं अधिक हक़दार हूं, मैं तुम्हारी बैअत नहीं कर सकता बल्कि तुम लोगों को मेरी बैअत करनी चाहिए।
 (अल-इमामः वस्सियासः 1/18)इस अवसर पर उमर और अबू उबैदा जर्राह ने हज़रत अली (अ.ह) से कुछ बातें कहीं और अबू बक्र की बैअत करने के लिए दबाव डाला लेकिन इमाम (अ.ह) ने दोबारा उनके सामने यही फ़रमाया कि वह और पैग़म्बरे इस्लाम स. के अहलेबैत अ. ही ख़िलाफ़त व इमामत के सबसे ज़्यादा हक़दार हैं, इसलिए आपने फ़रमायाः(فو اللّه يا معشر المهاجرين، لنحن احقّ الناس به، لأنّا اهل البيت و نحن أحقّ بهذا الأمر منكم ما كان فينا القارى ء لكتاب اللّه ، الفقيه في دين اللّه ، العالم بسنن رسول اللّه ، المضطلع بامر الرعية، المدافع عنهم الامور السيّئة، القاسم بينهم بالسويّة، و اللّه ، انه لفينا، فلا تتبعوا الهوى فتضلّوا عن سبيل اللّه ، فتزدا دوا من الحق بعدا)”अल्लाह की क़सम ऐ मुहाजेरीन! हम ख़िलाफ़त व इमामत के सबसे ज़्यादा हक़दार हैं, क्यूँकि हम रसूले इस्लाम स. के अहलेबैत हैं और हम इस चीज़ के लिए तुमसे ज़्यादा हक़दार हैं जब तक हमारे बीच अल्लाह की किताब का क़ारी, अल्लाह की दीन का फ़क़ीह (शास्त्रवेत्ता) रसूले इस्लाम स. की सुन्नतों का जानने वाला, लोगों के पथप्रदर्शन व नेतृत्व पर सक्षम और अनुचित हालात में उनका प्रतिरक्षक, उनके बीच बैतुलमाल को बराबर से बाटने वाला मौजूद हो। अल्लाह की क़सम हम अहलेबैत (अ.ह) के बीच ही ऐसा इंसान मौजूद है, इसलिए अपनी इच्छाओं का अनुसरण न करना वरना अल्लाह के रास्ता से भटक जाओगे तो हक़ से दूर हो जाओगे।“(अल-इमामः वस्सियासः 1/19)हज़रत अली (अ.ह) के मानने वालों ने भी विभिन्न अवसरो पर अबू बक्र से बातचीत के बीच साफ़ शब्दों में हज़रत अली (अ.ह) की बिला फ़स्ल इमामत व ख़िलाफ़त के बारे में अपने विचारों को स्पष्ट किया है। शेख़ सदूक़ (र.ह) ने ऐसे बारह लोगों के नाम बयान किए हैं जिन लोगों ने अबू बक्र के सामने हज़रत अली (अ.ह) की इमामत के बारे में सबूत पेश किए।(उनके नाम यह हैं :ख़ालिद बिन सईद बिन आस, मिक़दाद बिन असवद, अम्मार यासिर, अबूज़र ग़फ़्फ़ारी, सलमान फ़ारसी, अब्दुल्लाह  बिन  मसऊद, बुरैदा बिन अस्लमी (मुहाजेरीन) ख़ुज़ैमा बिन साबित, सह्ल बिन हुनैफ़, अबू अय्यूब  अन्सारी, अबुल हैसम बिन तैहान और ज़ैद बिन वहब (अंसार))शेख़ सदूक़ ने बारह लोगों के बाद ग़ैरुहुम (و غيرهم) अर्थात बारह के अतिरिक्त की कैद लगाई है जिससे यह अनुमान भी होता है कि प्रमाण व सबूत प्रस्तुत करने वालों की संख्या केवल बारह नहीं थी। अंत में ज़ैद बिन वहब के भाषण की ओर इशारा करने के बाद फ़रमाते हैं(فقام جماعة بعده فتكلّموا بنحو هذا)उसके बाद एक जमाअत खड़ी हुई और उन लोगों ने भी इसी शैली में बात की। उन लोगों ने पहले आपस में सलाह, मशविरा किया, कुछ का ख़्याल यह था कि जब अबू बक्र मिम्बर पर जाएं तो उन्हें मिम्बर से नीचे उतार लिया जाए, लेकिन कुछ लोगों को यह राय पसंद नहीं आई और अनंततः उन्होंने यह तय किया कि इस सिलसिले में अमीरुल मोमिनीन (अ.ह) से सलाह ली जाए, आपने उन लोगों को ख़लीफ़ा के साथ किसी सख़्त कार्यवाही से मना किया कि इस समय ऐसा काम इस्लाम के हित में नहीं है। जैसा कि स्वंय आप से भी ज़बरदस्ती बैअत लेने की कोशिश की गई थी। इसलिए आपने उन लोगों से यही फ़रमाया कि सब्र व सहनशीलता से काम लें लेकिन इस बारे में जो कुछ पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. से सुना है मस्जिद में जाकर उससे लोगों को अवगत कराते रहें ताकि उनकी ज़िम्मेदारी पूरी हो जाए।उन लोगों ने इमाम (अ.ह) की सलाह पर अमल किया और मस्जिद में गए और एक के बाद दूसरे ने अबू बक्र से वाद-विवाद किया, चूँकि यहां उनकी विस्तार पूर्वक वार्ता को बयान करना सम्भव नहीं है इसलिए केवल महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत किया जा रहा है:
1.    ख़ालिद बिन सईद: पैग़म्बरे इस्लाम स.अ ने फ़रमाया हैः(انّ عليّا اميركم من بعدي و خليفتي فيكم. انّ اهل بيتي هم الوارثون امري و القائمون بأمر امتي.)बेशक अली (अ.) मेरे बाद तुम्हारे अमीर और तुम्हारे बीच मेरे ख़लीफ़ा हैं केवल मेरे अहलेबैत (अ.ह) ही मेरे उत्तराधिकारी हैं और यही लोग उम्मत के मामलात को लागू करने वाले हैं।

2.    अबूज़र  ग़फ़्फ़ारी: पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है  (الامر لعلي بعدي ثم الحسن و الحسين ثم فى اهل بيتي من ولد الحسين.)यह इमामत मेरे बाद अली (अ.ह) के लिए है फिर हसन (अ.) और फिर हुसैन (अ.) के लिए और फिर हुसैन (अ.) की संतान से मेरे अहलेबैत (अ.ह) में बाक़ी रहेगी।“

3.    सलमान फ़ारसीः(تركتم امر النبي صلى الله عليه و آله و تناسيتم وصيّته، فعمّا قليل يصفوا اليكم الامر حين تزوروا القبور...)तुम लोगों ने रसूलुल्लाह स. के आदेश को छोड़ दिया और उनकी वसीयत को भुला बैठे बहुत जल्द ही तुम्हारे  सामने  यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी जब तुम क़ब्रों का दर्शन करोगे।

4.    मिक़दाद बिन असवद:(قد علمت ان هذا الامر لعلي عليه السلام و هو صاحبه بعد رسول اللّه صلى الله عليه و آله .)तुम्हें अच्छी तरह से मालूम है कि यह ख़िलाफ़त व इमामत अली (अ.) का हक़ है और रसूले इस्लाम स.अ के बाद वही उसके योग्य हैं।

5.    बुरैदा बिन अस्लमीः (يا ابابكر! اما تذكر اذا امرنا رسول اللّه صلى الله عليه و آله و سلّمنا على علي عليه السلام بإمرة المؤمنين.)ऐ अबू बक्र क्या तुम्हें वह अवसर याद नहीं कि रसूल ने हमें आदेश दिया था और हम ने अली (अ.) को अमीरुल मोमिनीन कह कर सलाम किया था।“

6.    अब्दुल्लाह  बन  मसऊदः(علي بن ابيطالب عليه السلام صاحب هذا الامر بعد نبيّكم فاعطوه ما جعله اللّه له و لا ترتدوا على اعقابكم فتنقلبوا خاسرين.)”नबी के बाद इस ख़िलाफ़त के योग्य अली इब्ने अबी तालिब अ. हैं इसलिए अली (अ.) को वह हक़ दे दो जिसे अल्लाह ने अली (अ.) के लिए निर्धारित किया है और पलट कर मुरतद न हो जाओ कि इस तरह तुम नुक़सान उठाने वालों में से हो जाओगे।

7.    अम्मार यासिरः(يا ابابكر لاتجعل لنفسك حقا، جعل اللّه عزّوجلّ لغيرك.)”ऐ अबू बक्र ख़िलाफ़त को अपना हक़ न समझो यह हक़ अल्लाह ने तुम्हारे अतिरिक्त किसी और को दिया है।“

8.    ख़ुज़ैमा बिन साबितः(انّي سمعت رسول اللّه يقول اهل بيتي يفرّقون بين الحق و الباطل و هم الأئمة الذين يقتدى بهم.)मेंने पैग़म्बर को कहते सुना है कि मेरे अहलेबैत (अ.ह) सत्य व असत्य (हक़ व बातिल) का आधार हैं अहलेबैत अ. ही वह इमाम हैं जिनका अनुसरण किया जाना चाहिए।

9.    अबुल हैसम बिन तीहानः(قال النبي صلى الله عليه و آله : اعلموا انّ اهل بيتي نجوم اهل الأرض فقدّموهم و لا تقدّموهم.)नबी ने फ़रमाया मेरे अहलेबैत ज़मीन वालों के लिए तारे हैं इसलिये उन्हें प्राथमिकता दो और स्वंय को उन पर वरीयता न दो।“

10.    सह्ल बिन हुनैफ़ः(اني سمعت رسول اللّه صلى الله عليه و آله قال: امامكم من بعدي على بن ابيطالب و هو انصح الناس لأمّتي.)मैंने रसूले ख़ुदा स.अ. से सुना है कि आपने फ़रमायाः मेरे बाद तुम्हारे इमाम, अली इब्ने अबी तालिब हैं और वह मेरी उम्मत के सबसे अच्छे नसीहत करने वाले इंसान हैं।

11.    अबू अय्यूब अंसारीः(قد سمعتم كما سمعنا في مقام بعد مقام من نبياللّه صلى الله عليه و آله انه (على) عليه السلام اولى به منكم)विभिन्न अवसरों पर तुमने भी नबी से वही सुना है जो हम ने सुना कि वह (अली अ.) इस अम्र (ख़िलाफ़त) के लिए तुम से बेहतर हैं।

12.    ज़ैद बिन वहब और दूसरे लोगों ने भी इसी तरह की बातें कहीं।(शेख़ सदूक़ की किताब अल-ख़ेसाल अबवाब इसना अशर हदीस 4)

आपका कमेंन्टस

यूज़र कमेंन्टस

कमेन्ट्स नही है
*
*

अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क