बनी उमय्या के ज़माने में शिया

मुआविया इब्ने अबी सुफ़यान के हाथों सन 41 हिजरी में अमवी शासन की शुरूआत हुई और सन 132 हिजरी में मरवाने हेमार के शासन पर अमवी शासन का सम्पन्न हुआ। इस ज़माने में शियों को बहुत सख़्त और मुश्किल हालात में ज़िंदगी बितानी पड़ी अगरचे उतार व चढ़ाव आते रहे लेकिन इस ज़माने में ज़्यादातर अवसरों पर सख़्तियां और कठिनाइयाँ अपने चरम पर थीं।कुल मिलाकर अमवी युग को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। 1. कर्बला  से पहले। 2. कर्बला के बाद।

यह विभाजन इस हिसाब से किया गया है कि इमाम हुसैन अ.ह के आंदोलन ने मुसलमानों के विचारों, दृष्टिकोणों और भावनाओं को बदल के रख दिया जिसके नतीजे में अमवी शासन को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।संक्षेप में यहां दोनों युगों में शियों के हालात को बयान किया जा रहा है।   कर्बला की घटना से पहले अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ. की शहादत के बाद इमाम हसन मुज्तबा अ.ह ने इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली। मुआविया ने षड़यंत्र करके आपकी पत्नि जअदा बिन्ते अशअस बिन क़ैस द्वारा सन 50 हिजरी में आपको ज़हर दिलवा दिया जिससे आपकी शहादत हो गई इस तरह आपकी इमामत की अवधि दस साल थी लेकिन ख़िलाफ़त की बागडोर आपके मुबारक हाथों में कुछ महीनों से ज़्यादा नहीं रही।(याक़ूबी ने दो महीना और एक कथन के अनुसार चार महीने बयान किया है।

तारीख़े याक़ूबी भाग 2 पेज 121। लेकिन सिव्ती के कथनानुसार आपकी ख़िलाफ़त की ज़ाहिरी अवधि पाँच या छः महीनों पर आधारित थी। तारीख़ुल ख़ुल्फ़ा पेज 192।)मुआविया इब्ने अबी सुफ़यान ने पैग़म्बर के उत्तराधिकारी और मुसलमानों के इमाम की हैसियत से आपकी बैअत नहीं की बल्कि आपके विरूद्ध विद्रोह कर दिया, चूँकि लोग विभिन्न गुटों में बटे हुये थे और अक़ीदे, विश्वास व द़ष्टिकोणों के हिसाब से विभिन्न रुझान पाये जाते थे दूसरी ओर मुआविया ने भी अपनी मक्कारी व धूर्तता के सहारे आपकी बैअत करने वालों के बीच मतभेद पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसके नतीजे में हालत यहाँ तक पहुँच गई कि कपटाचार और मोह माया के कारण उन्हीं बैअत करने वालों में से बहुत से लोग स्वंय अपने हाथों इमाम हसन अ. को मुआविया को सौंपने का संकल्प कर बैठे। ऐसे हालात में इमाम हसन अ. ने मुसलमानों के हितों के मद्देनज़र यही उचित समझा कि मुआविया की ओर से सुलह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाए। इसलिए इमाम अ. ने सुलह को स्वीकार कर लिया मगर इस शर्त के साथ कि सुलह की शर्तें इमाम हसन अ. की ओर से तय की जाएंगी। शर्तों में यह बातें भी शामिल थीं कि मुआविया और उसके पिट्ठुओं की ओर से अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ. पर गाली गलौच का सिलसिला ख़त्म होगा, इमाम हसन अ. के साथियों और शियों को परेशान नहीं किया जाएगा और बैतुलमाल से उनके अधिकार उन्हें दिये जाएंगे।मुआविया ने इन शर्तों को स्वीकार तो कर लिया मगर उन पर अमल नहीं किया। जिस समय मुआविया नुख़ैला (कूफ़ा के निकट एक जगह) पहुँचा तो उसने लोगों के बीच भाषण दिया जिसमें स्पष्ट शब्दों में ऐलान किया “तुम्हारे साथ मेरी जंग इस लिए नहीं थी कि तुम लोग नमाज़ पढ़ो, रोज़े रखो, हज करो, ज़कात अदा करो, यह काम तो तुम लोग ख़ुद ही अंजाम देते हो। तुम्हारे साथ मेरी जंग तुम पर हुकूमत करने के लिए है और तुम लोगों की इच्छा के विपरीत अल्लाह तआला ने मुझे हुकूमत दी है अच्छी तरह जान लो कि हसन इब्ने अली अ. के साथ मैंने जो शर्तें तय की थीं उन पर अमल नहीं करूँगा।(अल-इरशाद, शेख़ मुफ़ीद भाग 2 पेज 14)सुलह के समझौते के बाद इमाम हसन मुज्तबा अ. मदीने चले गए और आख़री उम्र तक वहीं ज़िंदगी गुज़ारी और उचित शैली में शियों को नसीहत और उनका नेतृत्व करते रहे। जिस हद तक राजनीतिक हालात इजाज़त देते आपके शिया ज्ञानात्मक व धार्मिक मुद्दों में आपके इल्म से फ़ायदा उठाते लेकिन राजनीतिक द्रष्टिकोण से इस्लामी दुनिया बहुत सख़्त और मुश्किल हालात से दोचार थी यहाँ तक कि हज़रत अली अ. के परिवार से किसी भी तरह के दोस्ताना सम्बंध को मुआविया और अमवी शासन की निगाह में क्षमा न होने वाला अपराध माना जाता था।इब्ने अबिल हदीद ने अबूल हसन मदाएनी के हवाले से “अलएहदास” नामक कताब से बयान किया है कि मुआविया ने मुसलमानों की हुकूमत की बागडोर हाथ में लेने के बाद इस्लामी राज्य के विभिन्न शहरों में मौजूद सरकारी अफ़सरों के नाम एक सरकारी आदेश जारी किया जिसमें उन्हें आदेश दिया गया था कि शियों के साथ सख़्ती से पेश आया जाए और उनके साथ सख़्त से सख़्त रवैया अपनाया जाये। रजिस्टर से उनके नाम निकाल दिये जायें और बैतुलमाल (राजकोष) से उनका भुगतान बन्द कर दिए जाये और जो इंसान भी अली इब्ने अबी तालिब अ. से मुहब्बत ज़ाहिर करे उसे सज़ा दी जाए। मुआविया के इस आदेश के बाद शियों विशेष कर कूफ़ा के शियों पर ज़िंदगी गुजारना बहुत मुश्किल हो गया था। मुआविया के जासूसों और नौकरों के डर से हर ओर बेचैनी, असंतोष और अशांति का माहौल था। यहाँ तक कि लोग अपने ग़ुलामों पर भी विश्वास नहीं करते थे।मुआविया ने अली के शियों पर सख़्ती और हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ. की प्रमुखता व श्रेष्ठता के बयान पर पाबंदी के साथ दूसरी ओर यह आदेश जारी किया कि उस्मान की प्रमुखता व श्रेष्ठता का ख़ूब प्रचार किया जाये और उस्मान के समर्थकों के साथ बहुत ज़्यादा प्यार व सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाए। इससे बढ़ कर मुआविया ने आदेश दिया कि हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ. की प्रमुखता व श्रेष्ठता के मुक़ाबले में दूसरे अस्हाब ख़ास कर तीनों ख़लीफ़ाओं की महानता में झूठी बातें गढ़ कर उनका प्रचार किया जाये ताकि अली अ. की महानता को कम किया जा सके। इस आदेश के नतीजे में इस्लामी समाज में झूठी रिवायतें का बहुत अधिक प्रचलन हो गया।मुआविया के बाद भी झूठी व मनगढ़त हदीसों का कारोबार चलता रहा। इब्ने अरफ़ा जो लफ़तवीया के नाम से मशहूर थे और जिनकी गिनती हदीसों के मुख्य विशेषज्ञों में होती है उनका कहना है कि सहाबा की प्रमुखता व श्रेष्ठता में अधिकतर झूठी हदीसें, बनी उमय्या के ज़माने में गढ़ी गई हैं। वास्तव में बनी उमय्या इस तरह बनी हाशिम  से बदला लेना चाहते थे।(इब्ने अबिल हदीद, शरहे नह्जुल बलाग़ा भाग 11 पेज) हज़रत अली अ. ने पहले ही इस दुर्घटना के बारे में सूचना दे दी थी, इसलिए आपने फ़रमाया थाःامّا انّه سيظهر عليكم بعدي رجل رَحْبُ البُلعوم، مُنْدَحِقُ البطن،... الا و انّه سيأمركم بسبّي والبراءة منّيजान लो कि बहुत जल्दी तुम पर एक इंसान सवार होगा जिसका गला फैला हुआ और पेट बड़ा होगा वह बहुत जल्दी तुम्हें मुझे गालियां देने का और मुझसे दूर रहने का आदेश देगा।
 (नह्जुल बलाग़ा  ख़ुत्बा 57 )इस बारे में मतभेद है कि इस से मुराद कौन है। कुछ लोगों का कहना है कि इस से मुराद ज़ियाद बिन अबीह है कुछ कहते हैं कि मुराद हज्जाज बिन यूसुफ़ सक़फ़ी है और कुछ लोग इन विशेषताओं को मुआविया के लिये बयान करते हैं।इब्ने अबिल हदीद की निगाह में यही कथन सही है इसलिए उन्होंने इस स्थान पर अली इब्ने तालिब अ. को बुरा भला कहने और आपसे दूर रहने के सम्बंधित मुआविया के आदेश को विस्तार से बयान किया है इसी संदर्भ में इब्ने अबिल हदीद ने इन हदीसों के विशेषज्ञों और रावियों का भी वर्णन किया है जिन्हें मुआविया ने हज़रत अली अ. की निन्दा में हदीसें गढ़ने के लिए मज़दूरी पर रखा था ऐसे ही बिके हुए रावियों में समरा बिन जुन्दब भी है। (शरह नह्जुल बलाग़ा भाग 1 पेज 355)मुआविया ने समरा बिन जुन्दब को एक लाख दिरहम दिये ताकि वह यह कह दे कि यह आयत (و من الناس من يعجبك قوله فى الحياة الدنيا) अमीरुल मोमिनीन अ.ह की शान में और आयत (و من الناس من يشرى نفسه ابتغاء مرضات اللّه) इब्ने मुलजिम मुरादी की शान में उतरी हुई है। (नऊज़ बिल्लाह)सारांश यह कि सन 60 हिजरी तक जारी रहने वाले मुआविया की हुकूमत के बीच अली के शिया बहुत ज़्यादा सख़्त हालात में ज़िंदगी बिता रहे थे और मुआविया के आदेश से उसके कर्मचारी शियों पर क्रूर अत्याचार का सिलसिला जारी रखे हुए थे, इसी ज़माने में शियों की हुज्र बिन अदी, अम्र बिन हुम्क़ उल ख़ेजाई, रशीद हिजरी, अब्दुल्लाह अलहज़रमी जैसी मशहूर हस्तियां मुआविया के आदेश से शहीद की गईं।(हयातुल इमाम हुसैन अ. भाग 2 पेज 167-175)इन हालात के बावजूद शियों ने हर तरह की सख़्तियों व कठिनाइयोँ का सामना किया लेकिन अली इब्ने अबी तालिब अ. की विलायत व इमामत और आपके परिवार के अधिकार के प्रतिरक्षा में कोई कमी नहीं की। और सच्चाई के रास्ते में जान देने में भी पीछे नहीं रहे बल्कि हर्ष व उल्लास के साथ शहीद होते रहे।मुआविया ने इमाम हसन (अ.ह) के साथ संधि प्रस्ताव में यह वादा करने के बावजूद कि वह किसी को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाएगा, अपने बेटे यज़ीद को अपना उत्तराधिकारी बना दिया और लोगों से उसके लिए बैअत भी ले ली। अगरचे शुरूआती दिनों में इस्लामी दुनिया के मशहूर विद्वानों व बुद्धिजीवियों की ओर से इस काम का विरोध भी हुआ लेकिन मुआविया ने ऐसे विरोधों की कोई परवाह नहीं की बल्कि डराने धमकाने और लालच द्वारा अपनी मुराद को हासिल कर लिया।सन 50 हिजरी में इमाम हसन अ. की शहादत के बाद इमामत की ज़िम्मेदारी इमाम हुसैन अ. के कांधों पर आ गई। चूँकि सुलह समझौते के अनुसार आप इमाम हसन अ. की कार्यशैली के पाबंद थे और इसीलिए आपने आंदोलन नहीं किया लेकिन उचित  अवसरों पर आप सच्चाई को बयान करते रहे तथा मुआविया और उसके नौकरों के अत्याचार और भ्रष्टाचार को भी लोगों से स्पष्ट तौर पर बयान करते रहते। मुआविया ने जब एक चिट्ठी लिख कर आपको अपने विरोध से दूर रहने को कहा तो आपने स्पष्ट व कड़े शब्दों में उत्तर दिया और निम्नलिखित बातों पर मुआविया की कड़े शब्दों में निंदा की।1. तुम हुज्र बिन अदी और उनके साथियों के हत्यारे हो जो सबके सब अल्लाह की इबादत करने वाले, संयासी और बिदअतों के विरोधी थे और अम्र बिल मअरूफ़ (अच्छाईयों की दावत) व नहि अनिल मुनकर (बुराईयों से रोकना) किया करते थे।2. तुमने ही अम्र बिन अलहुम्क़ को क़त्ल किया है जो महान सहाबी थे और बहुत ज़्यादा इबादत से जिनका बदन कमज़ोर हो गया था।3. तुमने यज़ीद इब्ने अबीह (जैसे हरामज़ादे) को अपना भाई बना कर उसे मुसलमानों की जान व सम्पत्ति पर थोप दिया।(ज़ियाद अबू सुफ़यान का अवैध लड़का था, उसकी माँ बनी अजलान की एक दासी थी जिससे अबू सुफ़यान के अवैध सम्पर्क के परिणाम में ज़ियाद का जन्म हुआ था। हालांकि इस्लामी का क़ानून यह है कि बेटा क़ानूनी बाप से ही जुड़ सकता है नाकि बलात्कारी से। इस बारे में तारीख़े याक़ूबी भाग 2 पेज 127 का अध्ययन करें।)4. अब्दुल्लाह इब्ने यहिया हज़रमी को केवल इस अपराध के आधार पर शहीद कर दिया कि वह अली इब्ने अबी तालिब अ. की विचारधारा व उनके दीन के मानने वाले थे। क्या अली इब्ने अबी तालिब अ. का दीन पैग़म्बरे इस्लाम स. के दीन से अलग कोई दीन है? वही पैग़म्बर जिसके नाम पर तुम लोगों पर हुकूमत कर रहे हो।5. तुमने अपने बेटे यज़ीद को जो शराबी और कुत्तों से खेलने वाला है मुसलमानों का ख़लीफ़ा निर्वाचित कर दिया है।6. मुझे मुसलमानों के बीच दंगा व फ़साद फैलाने से डरा रहा है मेरी निगाह में मुसलमानों के लिए तेरी हुकूमत से बुरा और कोई दंगा नहीं है और मेरी दृष्टि में तेरे विरूद्ध जेहाद से उत्तम कोई काम नहीं है।(अल-इमामः वस् सियासः भाग 1 पेज 155-157)