अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

आयतुल्लाह ख़ामेनेई कितना वेतन पाते हैं

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फारसी भाषा और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डाक्टर हद्दाद आदिल जिनकी लड़की आयतुल्लाह ख़ामेनेई की बहू है की शादी के बारे में बयान करते हुए कहते हैं: उस समय मेरी बेटी ने डिप्लोमा किया था और कम्पटीशन परीक्षा दी थी...

इमाम ख़ुमैनी और इस्लामी क्रांति के लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई के आफ़िस के एक पूर्व सदस्य हुज्जतुल इस्लाम रहीमीयान ने एक प्रोग्राम में बातचीत करते हुए इमाम ख़ुमैनी और आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बहुत ही सरल जीवन स्तर के बारे में बात करते हुए कहाः एक दिन मैं लोगों के सामने आधिकारियों के सरल जीवन स्तर के बारे में बात कर रहा था कि प्रोग्राम के अंत में एक व्यक्ति जो वहां उपस्थित था उसने मुझ से पूछा इस्लामी क्रांति के लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई ख़ुद कितना वेतन लेते हैं? मैंने उससे कहा कि वह लोगों द्वारा दिये गए उपहारों में से बहुत ही कम चीज़ पैसे को अपने जीवन यापन के लिये ख़र्च करते हैं।

उसके बाद एक दिन जब मैं आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मिला तो उनको सारी बात बताते हुए उनके ईरान के सुप्रीम लीडर होने के नाते उनके वेतन के बारे में पूछा तो उत्तर में उन्होंने जो कहा वह चकित कर देने वाले था आप कहते हैः क्या मैं कोई काम भी करता हूँ जिसके लिये वेतन लूँ?

आपने यह बात तब कही जबकि सभी जानते हैं कि आपके कांधों पर काम का कितना बोझ है और आपकी जिम्मेदारियों कितनी अधिक हैं।

इसी प्रकार सुप्रीम लीडर के दफ़्तर के एक अधिकारी हुज्जतुल इस्लाम अहमद मरवी, सुप्रीम लीडर के जीवन के ख़र्चों और उनके जीवन स्तर के बारे में कहते हैं

उनका जीवन यापन जहां तक मुझे पता है और जो बहुत हद तक सटीक है अधिकतर लोगों द्वारा आपकी नज़्र के लिये भेजे गए पैसे से होता है, इमाम ख़ुमैनी के लिये भी लोग नज़्र करके पैसे भेजा करते थे और आप के लिये भी भेजते हैं, इसी पैसे से आपके घरेलू और व्यक्तिगत ख़र्चे चलते हैं और आप राजकोष (बैतुलमाल) या फिर दफ़्तर के लिये आने वाले पैसों का उपयोग निजी कार्यों के लिये नहीं करते हैं विशेषकर वह धार्मिक पैसे (ख़ुम्स और ज़कात) को तो बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करते हैं।

फारसी भाषा और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डाक्टर हद्दाद आदिल जिनकी लड़की आयतुल्लाह ख़ामेनेई की बहू है की शादी के बारे में बयान करते हुए कहते हैं: उस समय मेरी बेटी ने डिप्लोमा किया था और कम्पटीशन परीक्षा दी थी, आरम्भिक सहमति के बाद एक दिन आपके बेटे और उनकी माँ मेरी बेटी के लिये एक चादर तोहफ़े के तौर पर लाई और शादी की बात चलाई, आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बेटे मुज्तबा के जाने के बाद मैंने अपनी बेटी की मर्ज़ी जाननी चाही तो उन्होंने हामी भर दी।

उसके कुछ दिनों के बाद मैं एक दिन आयतुल्लाह ख़ामेनेई की ख़िदमत में पहुँचा तो आपने फ़रमायाः जनाब अब हम रिश्तेदार होने वाले हैं, मैंने कहा कैसे? उन्होंने कहाः परिवार ने एक दूसरे को देखा और पसंद किया है अब आपका क्या फैसला है? मैंने कहाः हमारे फैसला भी आपके ही हाथ में है। उन्होंने फ़रमायाः नहीं आप डाक्टर है, युनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं आपकी पत्नी भी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं आपका जीवन स्तर अच्छा है लेकिन हमारा जीवन आपके स्तर का नहीं है, मैं अगर अपने जीवन की सारी कमाई को एक स्थान पर रखना चाहूँ तो मेरी किताबों के अतिरिक्त सारा सामान एक छोटी वानेट (पिकअप, छोटा ट्रक) पर आ जाएगा। इस घर में अंदर दो कमरे हैं एक कमरा बाहर है जिसमें इस देश के अधिकारी मुझ से मुलाक़ात करते हैं, मेरे पास घर ख़रीदे के पैसे नहीं है, हमने एक घर किराए पर लिया है जिसमें एक मंज़िल पर मुस्तफ़ा रहते हैं और एक पर मुज्तबा, आप अपनी बेटी से बात कर लें वह कहीं यह न सोचें कि अब जब कि वह सुप्रीम लीडर के घर की बहू होने वाली हैं तो उनके दिमाग़ में कुछ ख़ास चलने लगे, हमारा यही जीवन स्तर है, लेकिन आप एक अच्छा जीवन जी रहे हैं, इन सारी बातों के साथ अगर वह हमारे परिवार में शामिल होने के लिये हों तो शायद उनके लिये थोड़ा कठिन हो, उनको सारी बातें बता दें, कुछ भी न छिपाएं।

संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन के पूर्व मंत्री मोहम्मद हुसैन सफ़्फ़ार आयतुल्लाह ख़ामेनेई के जीवन और परिवार के ख़र्चों के बारे में कहते हैं: इस्लामी क्रांति के लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सन 70 (2001) में हाशमी रफ़सनजानी से बढ़ती महंगाई और लोगों के लिये सख़्त होते जीवन और सरकार की तरफ़ से जारी उन नीतियों की निंदा करते हुए जो लोगों को और ग़रीब कर रही थी अपना विरोध प्रकट किया और कहाः मैं इस चीज़ को स्वीकार नहीं कर सकता

रफ़सनजानी ने कहाः कुछ लोग केवल अफ़वाहें उड़ा रहे हैं और आप तक झूठी बातें पहुँचा रहे हैं, आप इनको सच न मानें, लोगों का जीवन स्तर अच्छा है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने फ़रमायाः यह जो मैं कह रहा हूँ कोई बाहर की बात नहीं है यह ख़ुद मेरे परिवार ने मुझ से कहा है वह लोग बाज़ार जाते हैं ख़ुद चीज़ें ख़रीदते हैं, रोटी लाते हैं, दही ख़रीदते हैं दूसरी चीज़ों को ख़रीदते हैं और देखते हैं कि चीज़ों की क़ीमतों में दो दिन में कितना फ़र्क़ आ गया है एक ही चीज़ कल किसी क़ीमत की थी और आज किसी और क़ीमत की।

कुछ अधिकारियों को पूरे साल क़ीमतों का पता ही नहीं होता है, और उसका कारण यह है कि वह कभी दुकान पर जाते ही नहीं है, लोगों के जीवन को क़रीब से देखते ही नहीं है और उनको पता ही नहीं होता है कि लोगों का जीवन कैसा चल रहा है, हद तो यह है कि जब कोई रिपोर्टर किसी चीज़ की क़ीमत के बारे में उनसे प्रश्न करता है तो उस अधिकारी को कुछ पता ही नहीं होता है।

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