हज़रत फ़ातेमा ज़हरा(अ) की शहादत

आज पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की तिथि है। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा वह हस्ती हैं जिन्होंने महानता व परिपूर्णता का मार्ग अत्यधिक उचित ढंग से तय किया और संसार वासियों के लिए मूल्यवान संस्कार छोड़े। आज उनकी शहादत की तिथि पर इस्लामी जगत और मानवता से प्रेम रखने वाले शोक मना रहे हैं हम भी इस अवसर पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और इतिहास की इस महान महिला मार्गदशक के जीवन के कुछ क्षणों से आपको परिचित करवा रहे हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह अपने नेक दासों के मार्ग पर चलने में हमारी सहायता करे।


पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के स्वर्गवास को तीन महीना बीत चुका था। पिता के वियोग का दुख हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का चैन छीन चुका था और इसके साथ ही वे अपने पिता के स्वर्गवास के बाद की घटनाओं से भी अत्यन्त दुखी थीं। पिता से दूरी और दुखदायी घटनाओं से भरे कुछ दिन बीते थे कि हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा बिस्तर पर अपने जीवन की अंतिम घड़ियां गिनने लगीं। इस दशा में केवल एक ही विषय हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के मन को शांति देता था और वह वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का वह वचन था जो उन्होंने स्वर्गवास से पूर्व हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा को दिया था। उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री से कहा था कि मेरी बेटी मेरे बाद तुम सबसे पहले मुझ से भेंट करने वाली हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम और उनकी चारों संतानें हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के सिरहाने बैठी थीं , एक एक पल पहाड़ लग रहा था और अली व फ़ातेमा के घर पर विचित्र प्रकार का शोकाकुल वातावरण व्याप्त था। ऐसा लगता था कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपनी पत्नी से हज़ारों अनकही बातें कहनी हैं। उन्हें वह दिन याद आ रहे थे जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम जीवित थे और हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा उनकी लाडली बेटी के रूप में उनके घर में रहती थीं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा ने अचानक आंखें खोलीं अपने पति और संतानों पर एक दृष्टि डाली और सदैव की भांति अपनी स्नेहपूर्ण आवाज़ से वातावरण पर व्याप्त भारी मौन को तोड़ दिया। उन्होंने कहाः हे अली यह जान लें कि मेरे जीवन के कुछ ही क्षण बचे हैं विदा का समय आ पहुंचा है मेरी बातें सुनें कि इसके बाद फ़ातेमा की आवाज़ कभी नहीं सुनाई देगी। मैं वसीयत करती हूं कि आप मेरे मरने के बाद मुझे नहलाएं मेरी नमाज़ पढ़ें और रात के समय मुझे दफ़्न करें उसके बाद मेरी क़ब्र पर मेरे चेहरे के सामने बैठें और क़ुरआन तथा दुआ पढ़ें। आप को ईश्वर के हवाले करती हूं और अपनी संतान पर प्रलय के दिन तक सलाम भेजती हूं।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम का गला रुंध गया था। वे अपनी उस पत्नी को खो रहे थे जिसका जीवन आरंभ से अंत तक ज्ञान, ईमान , शिष्टाचार व संयम से परिपूर्ण था। वे अपनी उस पत्नी को खो रहे थे जिसके चेहरे पर जब भी उनकी दृष्टि पड़ती थी वह संसार के दुख दर्द भूल जाते थे। अब उनके ह्रदय में वह दुख बस रहा था जो अंतिम सांसों तक उनके साथ रहने वाला था क्योंकि अब हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा जैसी सहायक जीवनसाथी इस संसार से जा रही थी।


हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के गुण और विशेषताएं केवल यही नहीं हैं कि वे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम की पुत्री थीं। जिस वस्तु ने उन्हें अत्याद्यिक सम्मानीय व महान बनाया था वह उनकी ईश्वरीय भावनाएं और उच्च संस्कार था। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के गुणों की सदा ही पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने सराहना की। वे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के लिए सब से अधिक प्रिय थीं और यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की महानता से लोगों को अवगत कराने के लिए कहा करते थे कि फातेमा मेरे जिगर का टुकड़ा है। वह मानव रूपी फ़रिश्ता है,जबभी मुझे स्वर्ग के सुगंध का आभास करना होता है अपनी बेटी फातेमा की सुंगध लेता हूं।


एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी बेटी हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा से कहाः बेटी ईश्वर ने तुझे चुन लिया है, तुझे ज्ञान व पहचान से पूर्ण रूप से सुसज्जित किया और संसार की महिलाओं पर वरीयता प्रदान की है।


हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का बचपन, पैग़म्बरे इस्लाम के अभियान के आंरभ के कठिन वर्षों में बीता और सब से अधिक कठिनाइयां उस समय उठायीं जब वे तीन वर्षों तक शेबे अबूतालिब में आर्थिक बहिष्कार के दौरान रहीं। भाग्य में यही लिखा था कि बहिष्कार व घेराव के उन्हीं कठिन दिनों में उनकी माता हज़रत ख़दीजा का स्वर्गवास हो जाए। माता के स्वर्गवास के बाद पिता के प्रति हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का कर्तव्य बढ़ गया था। वे लोगों के मन व मस्तिष्क से अज्ञानता पर आधारित धारणाओं और अत्याचार व अन्याय को समाप्त करने हेतु अपने पिता के दुख भरे संघर्ष को देख रही थीं। पिता के दुख और समस्याएं हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा को दुखी करती थीं और वे कम आयु होने के बावजूद अपने पिता को दिलासा देने का प्रयास करती थीं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा मदीने में और हज़रत अली अलैहिस्स्लाम के साथ अपने संयुक्त जीवन के आरंभ में एक अन्य रूप में प्रकट हुईं। वे उन कठिन वर्षों में जब मुसलमानों पर हर ओर से आक्रमण हो रहे थे और युद्ध जारी था हज़रत अली के दुख बांटतीं और उनके साथ पूरा सहयोग करती थीं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा अपने पति हज़रत अली की अनुस्पथिति में घर गृहस्थी संभालती और इस प्रकार से उन्होंने ऐसी संतानों का प्रशिक्षण किया जिनमें हर एक किसी सितारे की भांति इतिहास के पन्नों पर चमक रहा है। उन्होंने संयम व स्नेह के साथ प्रयास किया कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम और हज़रत अली अलैहिस्स्लाम की उनके अभियान में सहायता करें ताकि मदीने में इस्लाम का पौधा फले फूले और शक्तिशाली हो।


हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व का पूर्ण आदर्श हैं जिन्हें अपने सशक्त विचारों के कारण, अपने आस पास के वातावरण की गहरी समझ थी। चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम के बाद समाज मतभेदों का शिकार हो गया था और उसके पतन का ख़तरा पैदा हो चुका था, हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा बुद्धिमत्ता के साथ समाज की परिस्थितियों का विश्लेषण करतीं और उसकी अच्छाइयों और बुराईयों का वर्णन करतीं। उन्हें समाज के भविष्य की चिंता थी और इसी लिए वे लोगों को पथभ्रष्टता के कारकों से अवगत कराती थीं।


हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा ने पैग़म्बरे इस्लाम सलामुल्लाह अलैहा के स्वर्गवास के बाद अपने इतिहासिक भाषण में मानवता के कल्याण का मार्ग धर्म परायणता और ईश्वरीय आदेशों का पालन बताया। उन्होंने अपने इस भाषण में एक ईश्वरीय तत्वज्ञानी के रूप में ईश्वर के प्रति अपने शुद्ध प्रेम को स्पष्ट किया है।


हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा क़ुरान को उस दीपक की भांति समझती हैं जिस का प्रकाश वास्तविकता के मार्ग की ओर समाज का मार्गदशन करता है। वे कहती हैं


क़ुरआन तुम्हारे लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित उचित अभिभावक है। क़ुरआन वह प्रतिज्ञा और वचन है जिसे ईश्वर ने तुम्हें प्रदान किया है।


हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की दृष्टि में क़ुरआन ईश्वर और उसके दासों के मध्य एक प्रतिज्ञा व वचन है यदि लोग उस का पालन करें तो लोक परलोक की सफलता उन्हें प्राप्त हो जाएगी अन्यथा लोक व परलोक का दुर्भाग्य उन्हें अपनी लपेट में ले लेगा। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा यहां तक के क़ुरआन की तिलावत को सुनने को भी मोक्षदायक मानती हैं क्योंकि कुरआन की मनमोहक आयतें मनुष्य को सोचने व विचार करने पर प्रोत्साहित करती हैं। दूसरे शब्दों में यह चिंतन व विचार मनुष्य को सफलता व कल्याण के मार्ग पर अग्रसर कर देता है। इसी लिए हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा ने कहा हैः क़ुरआन की तिलावत सुनने से राष्ट कल्याण के तट पर पहुंच जाएंगे।

 

हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा ने अपने व्यक्तित्व की व्यापकता से यह सिद्ध कर दिया है परिपूर्णता की चोटियों पर पहुंचने में महिला या पुरुष होने का कोई महत्व नहीं है। बल्कि यह वह उपहार है जिसे ईश्वर ने हर मनुष्य के भीतर रखा है ताकि वह अपनी आंतरिक योग्यताओं को बढ़ा सके। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की एक भूमिका समाज और लोगों की संस्कृति में विकास था। वे धार्मिक शिक्षाओं और विचारों में दक्षता के कारण किसी मशाल की भांति अपने समाज को प्रकाश से भरती थीं और मानव ज्ञान, विज्ञान , पहचान व बोध के क्षेत्र में उन्होंने एक महिला के विकास की चरमसीमा का प्रदर्शन किया। एक दिन एक महिला उनकी सेवा में पहुंची और उनसे विभिन्न प्रश्न किये। उसके प्रश्नों की संख्या दस तक पहुंच गयी। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा ने बड़े धैर्य से उसके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया यह देख कर उस महिला को इतने अधिक प्रश्न करने पर लज्जा का आभास हुआ और उसने कहाः हे पैग़म्बरे इस्लाम की पुत्री! अब मैं इससे अधिक आप को कष्ट नहीं दूंगी आप थक गयी होंगी। किंतु हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा ने उसके उत्तर में कहा लज्जा न करो जो भी प्रश्न है पूछो मैं उसका उत्तर दूंगी। मैं तुम्हारे प्रश्नों से थकती नहीं क्योंकि ईश्वर तुम्हारे हर प्रश्न के उत्तर में मुझे प्रतिफल देगा कि जिसकी मात्रा का अनुमान लगाना भी संभव नहीं है


इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैं।

शुक्रवार से पूर्व की रात को मैंने अपनी माता को देखा कि वह उपासना के लिए खड़ी हुईं और सुबह तक सजदे और रूकुअ करती रहीं और भोर के समय मैंने सुना कि वह ईश्वर पर ईमान रखने वालों के लिए अत्यधिक दुआ कर रही हैं किंतु स्वंय के लिए कोई दुआ नहीं की मैंने पूछ कि माता आपने जिस तरह से दूसरों के लिए दुआ की उसी तरह अपने लिए भी दुआ क्यों नहीं की? उन्होंने कहाः बेटे पहले पड़ोसी फिर अपना घर।

 

हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का घर निर्धनों और वंचितों व दुखियों के लिए आशा का सोत था जब भी उन्हें सहायता के प्रति हर ओर से निराशा होती वे हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के द्वार पर चले जाते। जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी का कथन हैः हमने दोपहर की नमाज़ पैगम्बरे इस्लाम के साथ पढ़ी वे अपनी उपासना स्थल में ही थे कि मके से पलायन करने आने वालों में से एक वृद्ध फटे पुराने कपड़ों में वहां आया और जब पैग़म्बरे इस्लाम ने उससे हाल चाल पूछा तो उसने कहाः हे ईश्वर के दूत मैं भूखा हूं मेरा पेट भर दें। निर्वस्त्र हंध मुझे वस्त्र दे दें। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने उससे कहाः अभी तो मेरे पास तुझे देने के लिए कुछ नहीं है किंतु मैं तुझे उसके घर के द्वार पर भेज रहा हूं जिसे ईश्वर और उसके पैग़म्बरे प्रिय रखते हैं । तू फ़ातेमा के घर चला जा।


उसके बाद आप ने हज़रत बेलाल से कहा कि उसे फ़ातेमा के घर पहुंचा दे । बेलाल उस निर्धन को लेकर हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के घर पहुंचे और जब हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा को उसकी दशा का ज्ञान हुआ तो उन्होंने उपहार में मिले अपने हार को उसे देते हुए कहाः इसे ले जाकर बेच लो आशा है कि इसके बदले में ईश्वर जो कुछ तुम्हें देगा वह इस हार से अच्छा होगा। बूढ़े ने हार लिया और उसे बेच कर अपनी ज़रूरत पूरी की।


हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा उस समय बहुत प्रसन्न होती थीं जब वे सत्य की सेवा की दिशा में कोई काम करती थीं वे कहा करती थीं।


सत्य की सेवा करके मुझे जो सुख मिलता है वह मुझे हर इच्छा से रोके रखता है और मेरी इच्छा इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है कि सदैव ईश्वरीय सौन्दर्य को देखती रहूं।


हम एक बार फिर हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के दिवस पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और उनके एक स्वर्ण कथन से अपनी आज की चर्चा समाप्त करते हैं। उन्होंने कहा हैः तुम्हारे संसार की तीन चीज़ें मुझे पसन्द हैं ईश्वर की राह में दान , पैग़म्बरे इस्लाम के मुख को देखना, और कुरआन की तिलावत करना।