शहादते इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम

जो कोई भी इस्लाम के इतिहास का न्याय के साथ अध्ययन करे तो उसे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों की केंद्रीय भूमिका के बारे मंन पता चल जाएगा। इन महान हस्तियों को उनके व्यक्तिगत गुणों तथा पैग़म्बर से निकटता के कारण सदैव ही लोगों के बीच विशेष लोकप्रियता प्राप्त रही है। मुसलमानों के हृदयों में उनके प्रेम का सागर उमड़ता रहता है और जब तक यह संसार बाक़ी है, लोगों के हृदयों में यह पवित्र प्रेम मौजूद रहेगा। ज़िलहिज्जा महीने की सातवीं तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में से एक अर्थात इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत की तिथी है। वर्ष ११४ हिजरी क़मरी में ज़िल्हिज्जा महीने की सातवीं तारीख़ को इस्लामी जगत इस महान इमाम की शहादत के दुख में डूब गया था। इस अवसर पर हम आप सभी की सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हुए, इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के जीवन के कुछ आयामों पर प्रकाश डाल रहे हैं, कृपया हमारे साथ रहिए।

पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों तथा धार्मिक नेताओं ने सदैव ही विचार व कर्म में उच्चतम स्थान प्राप्त करने का प्रयास किया तथा वे सदैव मुक्ति एवं कल्याण के मार्ग की ओर लोगों का मार्गदर्शन करने हेतु प्रयासरत रहे। इनमें से प्रत्येक हस्ती ने अपने समय, काल, स्थान तक राजनैतिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार भिन्न भिन्न शैली अपनाई। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की इमामत अर्थात नेतृत्व का काल १९ वर्षों का था और उस समय का वातावरण इस बात को आवश्यक बनाता था कि वे अपनी गतिविधियां अधिकतर ज्ञान व संस्कृति के क्षेत्र पर केंद्रित रखें। वे बाक़िरुल उलूम अर्थात ज्ञान को फाड़ने वाले के नाम से प्रख्यात थे क्योंकि उनका ज्ञान बहुत अधिक था और वे हर प्रकार के ज्ञान में दक्ष थे। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम बड़ी गहराई के साथ ज्ञान के विभिन्न विषयों की समीक्षा करते थे। इस्लामी इतिहासकारों के अनुसार इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ज्ञान संबंधी अपनी व्यापक गतिविधियों के माध्यम से इस्लामी ज्ञान के शरीर में नए प्राण फूंक दिए थे।

उन्होंने अपनी इमामत का काल ऐसे समय में आरंभ किया जब मुस्लिम समाज में अराजकता फैली हुई थी और उसे वैचारिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में अनेक जटिल चुनौतियों का सामना था। दूसरी ओर इस्लाम धर्म की शिक्षाओं की ओर रुझान, इस संबंध में होने वाले शास्त्रार्थों तथा अनेक मतों के अस्तित्व में आ जाने के कारण ज्ञान के क्षेत्र में विशेष गहमागहमी पाई जाती थी। इस काल में इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की मुख्य रणनीति बुद्धिजीवियों तथा लोगों के मन में पाई जाने वाली भ्रांतियों को दूर करने पर आधारित थी। उन्होंने मदीना नगर में ज्ञान संबंधी अपनी गतिविधियों के माध्यम से बाहर से आने वाले ग़लत विचारों और अंधविश्वासों से संघर्ष किया तथा क़ुरआने मजीद की आयतों तथा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के कथनों के अनुसार पर इस्लामी शिक्षाओं के आधारों को सुदृढ़ बनाया। उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार एवं विकास के लिए एक महान आंदोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप मदीना नगर में ज्ञान का एक महान केंद्र अस्तित्व में आ गया। यह केंद्र उनके पुत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में बहुत अधिक विकसित हुआ। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस्लामी ज्ञानों के विभिन्न क्षेत्रों में कई विख्यात शिष्यों का प्रशिक्षण किया। उनके शिष्यों में से एक कूफ़े के रहने वाले जाबिर इब्ने यज़ीदे जोअफ़ी हैं। वे इमाम से अपनी प्रथम भेंट के बारे में इस प्रकार बयान करते हैं।

"मैं युवाकाल में इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा। इमाम ने मुझसे पूछा कि तुम कहां से और किस काम के लिए आए हो? मैंने कहा कि कूफ़े का रहने वाला हूं और ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य से आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूं। इमाम ने बड़े स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया और मुझे एक पुस्तक दी।" इस प्रकार जाबिर इमाम के शिष्यों में शामिल हो गए। इस अवधि में उन्होंने बहुत अधिक ज्ञान अर्जित किया। यद्यपि जाबिर स्वयं विभिन्न ज्ञानों में दक्ष हो चुके थे किंतु जब भी वे ज्ञान संबंधी किसी गोष्ठी में अपने विचार प्रकट करना चाहते तो सबसे पहले यह कहते कि यह बातें मैंने पैग़म्बरों के ज्ञान के उत्तराधिकारी हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से सुनी हैं। जाबिर के बारे में कहा जाता है कि उन्हें पैग़म्बर तथा उनके परिजनों की ७० हज़ार हदीसे कंठस्थ थीं।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के अनुसार समाज के सुधार तथा स्वास्थ्य के लिए भले कर्मों का आदेश देना तथा बुराइयों से रोकना सबसे अधिक आवश्यक है। उनका कहना था कि सामाजिक बुराइयों से संघर्ष लोगों के विभिन्न वर्गों के बीच वैचारिक व सांस्कृतिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण था कि उमवी शासकों के नैतिक पतन को देखते हुए उन्होंने विभिन्न अवसरों पर लोगों को राजनैतिक व सामाजिक वास्तविकताओं से अवगत कराना आरंभ किया। उनकी शैली यह थी कि वे सही शासन व्यवस्था तथा सच्चे शासक की विशेषताओं तथा गुणों का उल्लेख करते थे जिससे लोगों को पता चल जाता था कि इस्लामी समाज का शासक कैसा होना चाहिए इसी के साथ वे उमवी शासकों की वास्तविक प्रवृत्ति से भी, जो इन माप दण्डों से कोसों दूर थे, अवगत हो जाते थे। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते थे। निश्चित रूप से लोगों पर शासन करने के लिए केवल वही व्यक्ति उपयुक्त है जिसमें ये तीन विशेषताएं पाई जाती हों। प्रथम तो यह कि वह ईश्वर से डरता हो और कभी भी उसके प्रति उद्दण्डता न दिखाए, दूसरे यह कि विनम्र हो और अपने क्रोध को पी जाता हो और तीसरे यह कि अपने अधीन लोगों के साथ एक दयालु पिता की भांति भलाई का व्यवहार करता हो।

ईश्वर के प्रिय बंदों की उपासना, स्वतंत्र लोगों की उपासना होती है। वे अनन्य ईश्वर की उपासना, स्वर्ग के लोभ में या नरक के भय से नहीं बल्कि उससे प्रेम तथा उसकी महानता के कारण करते हैं। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम भी अन्य इमामों की भांति ईश्वर की महानता, उसकी युक्तियों तथा तत्वदर्शिता से भली भांति अवगत होने के कारण ईश्वर के प्रेम में डूबे हुए थे और सदैव उसकी याद में लीन रहते थे। वे कहते थे कि जीवन का सौंदर्य ईश्वर से प्रेम में निहित है और अपनी विशेष पद्धतियों से वे इस विचार को लोगों में बल प्रदान करते थे। इमाम का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जनता के विभिन्न वर्गों के लोग, विद्वान तथा बुद्धिजीवी उनकी ओर आकृष्ट हो जाते थे। वे कहते थे। हंसमुख व्यवहार तथा प्रसन्नचित्त मुद्रा में लोगों से मिलना, लोगों से मित्रता तथा ईश्वर से निकटता का कारण है।

प्रायः लोग धन व संपत्ति को आवश्यकतामुक्त होने का मापदण्ड समझते हैं किंतु इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने जाबिर को दी गई अपनी शिक्षाओं में वास्तविक पूंजीपतियों का इस प्रकार परिचय कराया है। हे जाबिर! ईश्वर से डरने वाले ही वास्तविक पूंजीपति और आवश्यकतामुक्त हैं। संसार के बहुत थोड़े से धन ने ही उन्हें आवश्यकतामुक्त बना दिया है। यदि तुम भलाई को भूल जाओ तो वे तुम्हें याद दिलाते हैं और यदि तुम भलाई करो तो वे तुम्हारी सहायता करते हैं। वे ईश्वर के आज्ञापालन को ही अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य मानते हैं। इस हदीस में इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से भय को वास्तविक पूंजी बताया है क्योंकि पवित्र लोग इस संपत्ति के माध्यम से अपमान, निर्भरता तथा लोभ से दूर रहते हैं।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम लोगों के बीच अत्यंत विनम्रे थे किंतु इसी के साथ वे अत्याचारियों के मुक़ाबले में अत्यंत बहादुरी और साहस से डट जाते थे तथा सत्य का बचाव करते थे। हेशाम इब्ने अब्दुल मलिक सहित उमवी शासकों का विरोध करने के कारण, इमाम को अत्यधिक यातनाएं सहन करनी पड़ीं, यहां तक कि उनके शिष्य भी हेशाम के कारिंदों की ओर से सुरक्षित नहीं रहते थे। एक बार हेशाम ने आदेश दिया कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को बलपूर्वक सीरिया ले जाया जाए। जब वे सीरिया पहुंचे तो हेशाम ने एक बैठक बुलाई और उसमें इमाम को भी आमंत्रित किया। उस बैठक में हेशाम के दरबारी तथा बनी उमैया के प्रतिष्ठित लोग मौजूद थे। इमाम ने इस अवसर को उचित समझा और हेशाम तथा उसके दरबारियों को संबोधित करते हुए कहा। हे लोगो! तुम कहां जा रहे हो? यदि नश्वर सरकार तुम्हारे हाथ में है तो यह जान लो कि अनंत एवं अमर शासन हमारे पास है क्योंकि अच्छा अंत हमारे पास है और ईश्वर ने कहा है कि अच्छा अंत, ईश्वर से डरने वालों के लिए ही है। इमाम का यह कथन सुन कर हेशाम क्रोधित हो गया और उसने उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया। कुछ समय के बाद इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम तथा उनके साथियों को मदीने वापस पहुंचा दिया गया। चूंकि इमाम का अस्तित्व एक प्रकाशमान दिये की भांति लोगों के विचारों का मार्गदर्शन कर रहा था, अतः हेशाम उनके अस्तित्व को सहन नहीं कर सका। उसने एक षड्यंत्र के माध्यम से उन्हें विष दिलाकर शहीद करवा दिया।



हम एक बार फिर आप सबकी सेवा में उसे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और उनके दो स्वर्ण कथन आपकी सेवा में प्रस्तुत करते हैं। वे कहते हैं। भलाई, दरिद्रता को समाप्त तथा मनुष्य की आयु में वृद्धि करती है।

एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं। सबसे अच्छे गुण ये हैं, धर्म की पहचान, कठिनाइयां सहन करना तथा जीवन के मामलों को सुव्यवस्थित करना।