हुकूमत की योजनाएं

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत के उद्देश्यों से परिचित होने के बाद अब हम उस हुकूमत की योजनाओं और कारनामों के बारे में उल्लेख करते हैं, ताकि ज़हूर के ज़माने में होने वाले कामों को पहचान कर, ज़हूर से पहले के ज़माने के लिए एक आदर्श विधान तैयार किया जाये ताकि इंसानियत को निजात व मुक्ति दिलाने वाले उस महान इमाम के इंतेज़ार में रहने वाले लोग हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की कार्य शैली और योजनाओं से परिचित हो कर ख़ुद को और समाज को उस रास्ते पर चलने के लिए तैयार करें।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के बारे में वर्णित अनेकों रिवायतों में उनकी हुकूमत के निम्न लिखित तीन आधारभूत स्तंभों का वर्णन मिलता हैं :

1- सांस्कृतिक योजना

2- आर्थिक योजना

3- सामाजिक योजना

दूसरे शब्दों में यह कहा जाये की इंसानी समाज कुरआन और अहले बैत (अ. स.) की शिक्षाओं से दूरी के कारण सासंकृतिक मैदान में भटकाव का शिकार हो गया है, अतः उसको एक महान सांस्कृतिक इंकेलाब के द्वारा कुरआन व इतरत की तरफ़ पलटना ज़रुरी है।

इसी तरह एक विस्तृत समाजिक योजना का होना भी ज़रूरी है क्योंकि आज इंसानी समाज में विभिन्न प्रकार के ज़ख्म मौजूद हैं। अतः अत्याचार व ज़ुल्म पर आधारित यह शैली जिसने समाज में अफरा तफ़री फैला रखी हैं और अनगिनत बुराइयों को जन्म दे दिया है, जिनके चलते कमज़ोर और गरीब लोगों के अधिकारों को कुचला जा रहा हैं, इसके स्थान पर एक ऐसी सही योजना के लागू होने की ज़रुरत है जो समाज के सच्चे व वास्तविक जीवन की ज़ामिन हो और जिसमें सबके इंसानी और इलाही अधिकारों का ख्याल रखा जाये।

सांस्कृतिक तरक़्क़ी और सामाजिक विकास का रास्ता हमवार करने के लिए आर्थिक योजना का होना बहुत ज़रूरी है, ताकि ज़मीन पर मौजूद भौतिक साधनों से सभी लोग न्यायपूर्वक लाभान्वित हो सकें और हर जगह व हर तबके के लोगों के लिए अपनी जीविका प्राप्त करना संभव हो।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की योजनाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने के बाद अब हम इस बारे में अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) की रिवायतों के आधार विस्तार पूर्वक वर्णन करते हैं और हर पहलु से संबंधित योजनाओं का उल्लेख करते हैं।

अ- सांस्कृतिक योजना

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की विश्वव्यापी हुकूमत में समस्त सासंस्कृतिक गतीविधियाँ लोगों के शैक्षिक व व्यवहारिक विकास के लिए होंगी और अज्ञानता का हर प्रकार से मुकाबला किया जायेगा।

इस सच्ची हुकूमत में जिन महत्वपूर्ण सासंस्कृतिक स्तंभों पर काम किया जायेगा वह निम्न लिखित हैं।
किताब व सुन्नत को ज़िन्दा करना

कुरआने करीम हर ज़माने में मज़लूम रहा है, इसको ताक़ की ज़ीनत बनाकर रखा गया है और इंसानी ज़िन्दगी में उसको भुला दिया गया है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के दौरान कुरआने करीम की जीवन प्रदान करने वाली शिक्षाओं पर अमल होगा और मासूमीन (अ. स.) की सुन्नत, ज़िन्दगी के हर पहलु में इंसान के लिए नमूना ए अमल व आदर्श बनेगी। सभी के कामों को कुरआन व इतरत की पाक व पवित्र कसौटी पर परखा जायेंगे।

हज़रत अली (अ. स.) हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की कुरआनी हुकूमत की तारीफ़ करते हुए फरमाते हैं कि

“जिस ज़माने में इंसान पर, इंसान की इच्छाएं हुकूमत करेंगी, उस वक़्त हज़रत इमाम महदी अ. स. ज़हूर करेंगे और वह इच्छाओं की जगह हिदायत को स्थापित कर देंगे, और जिस ज़माने में इंसान अपनी राय को कुरआन पर प्रथमिक्ता देंगे, वह लोगों की फ़िक्र को कुरआन की तरफ़ खीँचेंगे और कुरआन को समाज पर हाकिम बनायेंगे।”[1]

एक दूसरी जगह पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के ज़माने में कुरआन पर अमल होने के बारे में यह ख़ुश ख़बरी सुनाते हैं कि

“ ऐसा है जैसे मैं इसी वक़्त अपने उन शियों को देख रहा हूँ कि जो मस्जिदे कूफ़ा में खेमा लगाये बैठे हैं और जिस तरह से क़ुरआन नाज़िल हुआ, बिल्कुल उसी तरह लोगों को उसकी तालीम दे रहे हैं।”[2]

कुरआन की तालीम हासिल करना और क़ुरआन की तालीम देना, कुरआन की संस्कृति के फैलने और इंसान की व्यक्तिगत व सामाजिक ज़िन्दगी में कुरआन व उसके अहकाम की हुकूमत के शुरू होने का आधार है।
अखलाक का विस्तार

कुरआने करीम और अहले बैत (अ. स.) की शिक्षाओं में इंसान के अख़लाक़ी व सदाचारिक विकास और आध्यात्म की तरफ़ बहुत ज़्यादा ध्यान दिया दिया गया है। क्योंकि इंसान के अपनी उत्पत्ती के महान लक्ष्य तक पहुंचने और उसके विकास के मार्ग में अच्छा अख़लाक़ बहुत महत्वपूर्ण और सहायक है। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपनी पैग़म्बरी का मक़सद अख़लाक़ को पूर्ण करना माना है।[3] कुरआने करीम ने भी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को मोमिनों के लिए बेहतरीन नमून ए अमल व आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है।[4] लेकिन अफसोस की बात यह है कि पूरे इंसानी समाज और विशेष रूप से इस्लामी समाज, कुरआन और अहलेबैत (अ. स.) की हिदायत से दूरी की वजह से बुराइयों के दलदल में फँसा हुआ है। अख़लाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं का त्याग इंसान की व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िन्दगी को बर्बाद करने का कारण बना है।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत जो कि अल्लाह के क़ानूनों व अल्लाह की सुन्नत पर आधारित होगी, उसमें अख़लाक़ी मर्यादाओं को जीवित कर समाज में लागू करने के लिए एक महत्वपूर्ण योजना बनाई जायेगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया

”اِذَا قَامَ قَائِمُنَا وَضَعَ یَدَہُ عَلٰی رُوٴُوْسِ الْعِبَادِ فَجَمَعَ بِہِ عُقُولُہُمْ وَ اَکْمَلَ بِہِ اٴَخْلاقُہُمْ[5]“

जब हमारा क़ाइम (अ. स.) क़ियाम करेगा तो वह मोमिनों के सरों पर अपना हाथ रखेंगे जिस से उनकी अक़्ल पूर्ण हो जायेगी और उनका अख़लाक़ पूरा हो जायेगा।

यह बेहतरीन जुमले इस बात पर तर्क करते हैं कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत, जो कि अख़लाक़ और आध्यात्म पर आधारित हुकूमत होगी, वह इंसान की अक़्ल और अख़लाक़ के पूर्ण रूप से विकसित होने का रास्ता हमवार करेगी। क्योंकि इंसान में जो बुराइयां पाई जाती हैं वह उसकी कम अक्ली की वजह से होती हैं, और जब इंसान की अक़्ल पूर्ण हो जायेगी तो फिर इंसान में अच्छा अख़लाक़ पैदा हो जायेगा।

दूसरी तरफ़ कुरआन और अल्लाह की सुन्नत व हिदायत से सुसज्जित माहौल इंसान को नेकी और अच्छाई की तरफ़ ले जायेगा। अतः इस प्रकार ज़ाहिर और बातिन (प्रत्यक्ष व परोक्ष) दोनों रूपो में इंसान में अच्छे अख़लाक़ की तरफ़ क़दम बढ़ाने का शौक़ पैदा होगा और इस तरह पूरी दुनिया में इलाही व इंसानी मर्यादाएं लागू हो जायेंगी।
इल्म व ज्ञान की तरक़्क़ी

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के सांस्कृतिक प्रोग्राम का एक अंश इल्म को तरक़्क़ी देना और इंसान के ज्ञान को विस्तृत रूप में विकसित करना है। क्योंकि वह ख़ुद इल्म का स्रोत और अपने ज़माने के आलिमों में सबसे श्रेष्ठ हैं।[6]

जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के आने की ख़ुश ख़बरी दी थी, उसी वक़्त उन्होंने इमाम (अ. स.) के इस काम की तरफ़ भी इशारा किया था।

इमाम हुसैन (अ. स.) की नस्ल से नवें इमाम, हज़रत क़ाइम (अ. स.) हैं, ख़ुदा वन्दे आलम उनके मुबारक हाथों से इस दुनिया में रौशनी फैलवायेगा, जबकि उससे पहले वह अँधेरो से भरी चुकी होगी, और वह ज़मीन को न्याय व समानता से भर देगा, जबकि वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी। इसी तरह वह पूरी दुनिया को इल्म व ज्ञान की दौलत से माला माल कर देगा जबकि वह अज्ञानता व जिहालत से भरी होगी।[7]

इल्म और फिक्र का यह विकास समाज के हर तबक़े के लिए होगा। इस तरक़्क़ी में औरत और मर्द में कोई फर्क नहीं होगा, बल्कि औरतें भी इल्म और दीनी मालूमात के मैदान में बुलन्द दर्जों पर पहुँच जायेंगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :

इमाम महदी (अ. स.) के ज़माने में तुम्हें बुद्धी और इल्म प्रदान किया जायेगा, यहाँ तक कि औरतें अपने घरों में बैठ कर अल्लाह की किताब और रसूल (स.) की सुन्नत के अनुसार फैसले किया करेंगी।[8]
बिदअतों से मुकाबला

बिदअत का प्रयोग सुन्नत के मुकाबले में होता है और इसका अर्थ दीन में किसी नई चीज़ को दाखिल करना और अपनी व्यक्तिगत राय को दीन और दीनदार में शामिल करना हैं।

हज़रत अली (अ. स.) बिदअतें पैदा करने वालों के बारे में फरमाते हैं कि

वह लोग बिदअत पैदा करने वाले हैं जो अल्लाह के हुक्म, अल्लाह की किताब और अल्लाह के पैग़म्बर (स.) का विरोध करते हैं, और अपनी इच्छा के अनुसार काम करना चाहते हैं, चाहे उन लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा ही क्यों न हो...[9]

अतः बिदअत का अर्थ अल्लाह, उसकी किताब और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त कर के अपनी व्यक्तिगात राय को लागू करना और अपनी इच्छाओं के अनुसार काम करना हैं। वह चीज़ इससे अलग है जो अल्लाह के क़ानूनों के आधार पर कुरआन और सुन्नत से समझ कर तहक़ीक़ के रूप में पेश की जाती है। अतः बिदअत एक ऐसी चीज़ है जो अल्लाह व रसूल की सुन्नत को ख़त्म कर देती है, जबकि दीन के लिए उससे ज़्यादा खतरनाक कोई चीज़ नहीं है।

हज़रत अली (अ. स.) ने फरमाया :

”مَا ہَدَمَ الدِّیْنُ مِثْلُ الْبِدَعِ“۔[10]

बिदअत की तरह किसी भी चीज़ ने दीन को बर्बाद नहीं किया है।

इसी दलील की वजह से बिदअत पैदा करने वाले से मुकाबेला करने के लिए सुन्नत पर अमल करने वालों को क़ियाम करना चाहिए। उनकी साजिशों व मक्कारियों से पर्दा उठा कर उनके ग़लत रास्तों को लोगों के सामने स्पष्ट कर देना चाहिए और इस तरह से लोगों को गुमराही से बचा लेना चाहिए।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

जब मेरी उम्मत में बिदअतें ज़ाहिर होने लगें तो आलिमों की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने इल्म के ज़रिये मैदान में आयें और उन बिदअतों का मुकाबला करें, और अगर कोई ऐसा न करे तो उस पर ख़ुदा की लअनत हो।[11]

लेकिन अफसोस की बात है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बाद इस्लाम में बहुत सी बिदअतें पैदा कर दी गईं!। दीन व ईमान के रास्ते में बहुत सी अड़चने डाली गईं और बहुत से लोगों को गुमराह कर दिया गया। इस तरह दीन का मुकद्दस व पवित्र चेहरा बिगाड़ दिया गया और दीन की खूबसूरत तस्वीर को अपनी इच्छाओं और व्यक्तिगत तौर तरीक़ो के बादलों से ढक दिया गया। जबकि अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) जो दीन के जानने वाले थे, उन्होंने इन सबको रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन बिदअत का रास्ता बंद नही हो सका और नबी की सुन्नत उसी तरह बर्बाद होती रही और अब ग़ैबत के ज़माने में उसमें और वृद्धी होती जा रही है।

अब दुनिया इस इन्तेज़ार में है कि इंसान को निजात व मुक्ति देने वाले, कुरआनी मऊद, हज़रत इमाम महदी (अ. स.) तशरीफ़ लायें और उनकी हुकूमत की छत्र छाया में नबी (स.) की सुन्नत दोबारा ज़िन्दा हो और बिदअतों का बिस्तर लिपट जाये। बेशक इमाम (अ. स.) की हुकूमत का एक महत्वपूर्म परोग्राम बिदअत और गुमराही से मुक़ाबला है ताकि इंसान की हिदायत और विकास व तरक़्क़ी का रास्ता हमवार हो जाये।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की तारीफ़ करते हुए एक विस्तृत हदीस के अन्तर्गत फरमाते हैं कि

[12] ”وَ لَایَتْرُکُ بِدْعَةً اِلاَّ اَزَالَہَا وَ لَا سُنَّةً اِلاَّ اَقَامَہَا

कोई भी बिदअत ऐसी नहीं होगी जिसको वह जड़ से उखाड़ न फेंकें और कोई भी सुन्नत ऐसी न होगी जिस को लागू न करें।

आ- आर्थिक योजना

एक पूर्ण व अच्छे समाज की पहचान, उसकी सुदृढ़ अर्थव्यवस्था है। अगर समाज में माल व दौलत से सही फायदा उठाया जाये और पैदावार व उसको लोगों तक पहुँचाने के साधन किसी एक खास गिरोह के क़ब्ज़े में न हो बल्कि हुकूमत समाज के हर तबक़े पर तवज्जोह दे और सबके लिए जीविका प्राप्त करने के साधन जुटाये और सबको सार्वजनिक समपत्ति से लाभान्वित होने का अवसर मिले तो ऐसे समाज में इंसान के लिए आध्यात्मिक विकास व तरक़्क़ी का रास्ता अधिक हमवार हो जाता है। कुरआने करीम की आयतों और मासूमीन (अ. स.) की रिवायतों में भी आर्थिक पहलु और लोगों की अर्थिक व्य्वस्था पर तवज्जह दी गई है। इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की कुरआन पर आधारित हुकूमत में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था और जनता के लिए खास योजना का निर्धारण होगा। इसके लिए खेती के मसले पर ध्यान दिया जायेगा और प्राकृतिक सम्पदा व अल्लाह द्वारा प्रदान की गई नेमतों से पूर्ण रूप से फायदा उठाया जायेगा और उससे प्रप्त होने वाली संपत्ति को न्यायपूर्वक समाज के हर तबक़े में विभाजित किया जायेगा।

उचित है कि हम इस संबंध में पाई जाने वाली रिवायतों का संक्षेप में एक जायेज़ा लें ताकि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की अर्थव्यवस्था की योजना को भली भाँति पहचान सकें।
प्राकृतिक संपदा का दोहन

आर्थिक मुशकिलों में से एक बड़ी मुशकिल यह है कि अल्लाह द्वारा प्रदान की गई प्राकृतिक संपदा व नेमतों से सही फायदा नहीं उठाया जाता है। न तो ज़मीन से सही पूर्ण रूप से फायदा उठाया जाता है और न ही पानी से ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लिए सही फायदा उठाया जाता है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़माने में उनकी हक़ पर आधारित हुकूमत की बरकत से आसमान खुल कर पानी बरसायेगा और ज़मीन पूर्ण रूप से फसल उगायेगी।

जैसे कि हज़रत अली (अ. स.) ने फरमाया :

”۔۔۔ وَ لَو قَدْ قَامَ قَائِمُنَا لَاٴَنْزَلَتِ السَّمَاءُ قَطْرَہَا، وَ لَاٴَخْرَجَتِ الاٴرْضُ نَبَاتَہٰا۔۔۔[13]“

और जब क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) क]fयाम करेंगे तो आसमान से बारिश होगी और ज़मीन दाना उपजेगी।

अल्लाह की आखरी हुज्जत की हुकूमत के ज़माने में ज़मीन और उसके समस्त स्रोत हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ब्ज़े में होंगे, ताकि सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा क़ज़ाना जमा हो जाये।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :

[14] ”۔۔۔تطویٰ لہ الارض و تظھر لہ الکنوز۔۔۔“

ज़मीन उनके लिए घूम जाया करेगी और पल भर में एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जायेगी और उनके लिए तमाम ख़ज़ाने ज़ाहिर हो जायेंगे।
धन का न्यायपूर्वक वितरण

कमज़ोर अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण धन दौलत का एक खास गिरोह के कब्ज़े में चले जाना है। हमेशा यही हुआ है कि कुछ ख़ास लोगों या गिरोहों ने ख़ुद को समाज के अन्य लोगों से श्रेष्ठ मानते हुए सार्वजनिक माल व दौलत पर कब्ज़ा कर लिया और फ़िर उसको अपने व्यक्तिगत फ़ायदों या किसी खास गिरोह के लिए प्रयोग किया। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ऐसे लोगों से मुक़ाबला करेंगे और सार्वजनिक सम्पत्ति व धन दौलत को उनके हाथों से निकाल कर आम लोगों के क़ब्ज़े में देंगे और इस सबके सामने हज़रत अली (अ.स.) की अदालत का नमूना पेश करेंगे।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :

[15] ”اِذَا قَامَ قَائِمُنَا اَہْلَ الْبَیْتِ قَسَّمَ بِالسَّوِیَّةِ وَ عَدَلَ فِی الرَّعْیَةِ

जब हम अहलेबैत का क़ाइम क़ियाम करेगा तो माल व दौलत को सबमें बराबर तक्सीम करेगा और लोगों के बीच न्यायपूर्वक काम करेगा।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़माने में समानता व बराबरी के क़ानून को लागू किया जायेगा और सबको उनके इंसानी और इलाही अधिकार दिये जायेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया कि

“मैं तुम को महदी (अ. स.) की ख़ुश ख़बरी सुनाता हूँ जो मेरी उम्मत में क़ियाम करेगा...वह माल व दौलत का सही विभाजन करेगा। किसी ने सवाल किया कि इसका क्या मक़सद है ? तो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया : यानी लोगों के बीच समानता स्थापित करेगा...।”[16]

समाज में उस समानता का नतीजा यह होगा कि कोई भी फक़ीर या निर्धन नज़र नही आयेगा और वर्णव्यवस्था का समापन हो जायेगा।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :

तुम्हारे बीच इमाम महदी (अ. स.) ऐसी समानता स्थापित करेंगे कि कोई भी ज़कात का लेने वाला नहीं मिल पायेगा...।[17]
विरानों को आबाद करना

आज कल की हुकूमतों में सिर्फ़ उन्हीं लोगों की ज़िन्दगी ख़ुशहाल होती है जो हुक्काम के इर्द गिर्द घूमते रहते हैं, उन के हम फिक्र होते हैं या फिर मालदार होते हैं, हुकूमत समाज के अन्य लोगों को भुला देती, लेकिन हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत में चूँकि पैदावार और विभाजन का मसला हल हो जायेगा इस लिए हर जगह सबके पास नेमतें मौजूद रहेंगी और चारो ओर ख़ुशहाली होगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.), हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत के ज़माने की तारीफ़ करते हुए फरमाते हैं कि

[18] ”۔۔۔ فلا یبقیٰ فی الارض خزاب الا عمَّر

पूरी ज़मीन में कोई विराना नहीं मिलेगा मगर यह कि उसको आबाद कर दिया जायेगा।

इ- सामाजिक योजना

इंसानी समाज के सुधार का एक पहलु समाज में एक सही योजना का लागू होना है। दुनिया के सबसे बड़े न्याय प्रियः शासक की हुकूमत में समाज को सही डगर पर लगाने के लिए कुरआन और अहले बैत (अ. स.) की सुन्नत व शिक्षाओं के आधार पर पलानिग की जायेगी। उसके लागू होने से इंसानी ज़िन्दगी में विकास होगा और इंसान के बुलन्द मुक़ाम तक पहुँचने का रास्ता हमवार हो जायेगा। उस इलाही हुकूमत की छत्र छाया में इस दुनिया में नेकियों को फैलाया जायेगा और बुराइयों को रोका जायेगा। बुरे लोगों के साथ के साथ क़ानूनी काररवाई की जायेगी। समाज के समस्त लोगों को समान रूप से सामाजिक अधिकार दिये जायेंगे और पूर्ण रूप से न्याय व समानता स्थापित की जायेगी।

प्रियः पाठकों ! हम उचित समझते हैं कि यहाँ पर एक नज़र कुछ रिवायतों पर ड़ालें जिससे उस हसीन दुनिया के जलवों का अच्छी तरह नज़ारा हो सके।

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[1] नहजुल बलागह, खुत्बा न. 138
[2] . ग़ैबते नोमानी, बाब न. 21, हदीस न. 3, पेज न. 333
[3] . पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फऱमाया : انما بعثت لاتمم مکارم الاخلاق बेशक, मैं अखलाक़ को पूर्ण करने के लिए नबी बनाया गया है। (मिज़ानुल हिकमत, मोतरजिम जिल्द न. 4, पेज न. 1530)
[4] . कुरआने करीम के सूरः अहज़ाब की आयत न. 21 की तरफ़ इशारा हैः لقد کان لکم فی رسول الله اسوة حسنة बेशक रसूले खुदा (स.) तुम्हारे लिये बेहतरीन नमूना हैं। (सूरः ए अहज़ाब, 21)
[5] बिहार उल अनवार, जिल्द न. 52, पेज न. 336
[6] हज़रत अली (अ. स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की तारीफ़ में फ़रमाया कि उनका इल्म व ज्ञान तुम सब से ज़ियादा होगा। (ग़ैबते नोमानी, बाब न. 13, हदीस न. 1)
[7] .बिहार उल अनवार, जिल्द न. 36, पेज न. 253 तथा कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब न. 24, पेज न. 478
[8] .ग़ैबते नोमानी, पेज न. 239 तथा बिहार उल अनवार जिल्द न. 52, पेज न. 352
[9] . मज़ानुल हिक्मत, जिल्द न. 1623
[10] बिहार उल अनवार, जिल्द न. 87, पेज न.91
[11] . मिज़ानुल हिक्मत, हदीस 1649
[12] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 58, हदीस 11, पेज न. 11 ।
[13] बिहार उल अनवार, जिल्द न. 10, पेज न. 104 तथा ख़िसाले शेख सदूक, पेज न. 626
[14] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब न. 32, हदीस न. 16 पेज न. 603
[15] . नोमानी, बाब 13, हदीस 26, पेज न. 243 ।
[16] . बिहार उल अनवार, जिल्द 51, पेज 81 ।
[17] . बिहार उल अनवार, जिल्द 51, पेज 390 ।
[18] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब न. 32, हदीस न. 16, पेज न. 603