इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अहादीस
उस काम से दूर रहो जिसे करने के बाद क्षमा मांगनी पड़े क्योंकि धर्म पर आस्था रखने वाला न बुराई करता है और लोगों से क्षमा मांगता है।
सर्वोत्म बात कहना और वार्ता के संस्कारों को पहचानना बुद्धिमान के चिन्हों में से हैं।
संकीर्ण विचार वाले लोगों से बहस करना, अज्ञानता का चिन्ह है।
मैं मृत्यु को सौभाग्य और अत्याचारियों के साथ जीवन को यातना व दुखदायी समझता हूँ।
लोगों को तुम्हारी आवश्यकता उन नेमतों के कारण है जो तुमको प्रदान की गई हैं, अत: लोगों से परेशान न हो और मुंह न मोड़ो।
सैयम , सज्जा है और अपने वचन के प्रति कटिबद्ध रहना, पवि त्रता।
आधिक अनुभव प्राप्त करना, बुद्धि के बढ़ने का कारण है।
ज्ञान संबंधी वार्तालाप, बोध का उर्वरण है।
सन्तोष शरीर के सुख का कारण है।