अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

महदी अलैहिस्सलाम की विलादत

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मुवर्रेख़ों का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी विलादत बासआदत 15 शाबान, 255 हिजरी क़मरी में जुमे के दिन तुलू – ए- फ़जर के वक़्त वाक़े हुई है। जैसा कि दफ़यातुल अयान, रौज़तुल अहबाब. तारीख़ इब्नुल नरदी, यनाबि – उल- मवद्दता, तारीख़े कामिल, तबरी, कशफ़ुल ग़ुम्मा, जिला उल अयून, उसूले काफ़ी, नूर – उल- अबसार, इरशाद, जाम – ए- अब्बासी, आलामुल वरा और अनवार – उल- हुसैनिया वगैरा) में मौजूद है।



कुछ उलमा का कहना है कि विलादत का सन 256 हिजरी और माद्द – ए- तारीख़ नूर है। यानी आप शबे बराअत के इख़्तेताम पर सुबहे सादिक़ के वक़्त आलमे ज़हूर व शहूद में तशरीफ़ लाये।



हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की फुफी जनाबे हकीमा ख़ातून का बयान है कि एक रोज़, मै हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के पास गई, तो आपने फ़रमाया की ऐ फुफी आप आज हमारे ही घर में रहिये, क्योंकि ख़ुदा वन्दे आलम आज मुझे एक वारिस अता फ़रमायेगा। मैने कहा कि यह फ़रज़न्द किसके बतन से होगा ? आपने फ़रमाया कि नरजिस के बतन से मुतावल्लिद होगा। जनाबे हकीमा ने कहा ! बेटे मै तो नरजिस में हम्ल के कुछ भी आसार नही पाती हूँ ! इमाम ने फ़रमाया कि ऐ फुफी नरजिस की मिसाल मादरे मूसा जैसी है। जिस तरह हज़रत मूसा का हम्ल विलादत के वक़्त से पहले ज़ाहिर नही हुआ था, उसी रतह मेरे फ़रजन्द का हम्ल भी बर वक़्त ज़ाहिर होगा। ग़रज़ कि इमाम अलैहिस्सलाम की खवाहिश पर मैं उस शब वहीं रहीं। जब आधी रात गुज़र गयी तो मै उठी और नमाज़ तहज्जुद में मशग़ूल हो गई, और नरजिस भी उठ कर नमाज़े तहज्जुद पढ़ने लगी। उसके बाद मेरे दिल मे यह ख़्याल आया कि सुबह क़रीब है और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने जो फ़रमाया था, वह अभी तक ज़हिर नही हुआ। इस ख़्याल के दिल में आते ही इमाम अलैहिस्सलाम ने अपने हुजरे से आवाज़ दी ! ऐ फुफी जल्दी न किजिये, हुज्जते ख़ुदा के ज़हूर का वक़्त बिल्कुल क़रीब है। यह सुन कर मै नरजिस के हुजरे की तरफ पलटी, नरजिस मुझे रास्ते ही में मिली, मगर उनकी हालत उस वक़्त मुता-ग़य्यर थी। वह लरज़ा बर अन्दाम थीं, उनका सारा जिस्म कांप रहा था।



(अल बशरा, शराह मुवद्दतुल क़ुरबा सफ़ा 139)



मैंने यह देखकर उनको अपने सीने से लिपटा लिया और “ सूरए क़ुल, इन्ना अनज़लना, व आयतल कूर्सी ” पढ़ कर उन पर दम किया, तो बतने मादर से बच्चे की आवाज़ आने लगी। यानी जो कुछ मै पढती जा रही थी, वह बच्चा भी बतने मादर मे वही पढ रहा था। उस के बाद मैंने देखा कि तमाम हुजरा रौशन व मुनव्वर हो गया। मैंने देखा कि एक मौलूदे मसऊद ज़मीन पर सजदे में पडा हुआ है। मैने बच्चे को उठा लिया। हज़रत इमाम हसन अकरी अलैहिस्सलाम ने अपने हुजरे से आवाज़ दी, ऐ फुफी ! मेरे फ़रज़नद को मेरे पास लाईये। मैं ले गई। आपने अपनी गरदन पर बैठा लिया औ अपनी ज़बान बच्चे के मुहँ मे दे दी और फ़रमाया कि ऐ फ़रज़न्द ! खुदा के हुक्म से बात करो। बच्चे ने इस आयत की तिलावत की بسم الله الرحمن الرحيم ونريد ان نمن علي الذين استضعفوا في الارض ونجعلهم الائمة ونجعلهم الاوارثين तर्जुमा यह है कि हम चाहते है कि एहसान करें उन लोगों पर जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गये हैं और उनको इमाम बनायें और उन्हीं को रू – ए- ज़मीन का वारिस क़रार दें।



इसके बाद कुछ सब्ज़ तायरों ने आकर हमें घेर लिया, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने उनमें से एक को बुलाया और बच्चे को देते हुए कहा قد كفا حفظه इस को ले जाकर इस की हिफ़ाज़त करो। यहाँ तक कि ख़ुदा इसके बारे में कोई हुक्म दे। क्योंकि खुदा अपने हुक्म को पूरा करके रहेगा। मैने इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम से पूछा कि यह तायर कौन थे ? आपने फ़रमाया कि यह जिब्रईल थे और वह दूसरे, फ़रिश्त -ए- रहमत थे। इसके बाद फ़रमाया कि ऐ फुफी ! इस फरज़न्द को उसकी माँ के पास से ले जाओ ताकि उस की आखें ठंडी हो जाये और वह महज़ून व मग़मून न हो और यह जान लो कि खुदा का वादा हक़ है و اكثرهم لا يعقلون लेकिन अक्सर लोग इसे नही जनते इसके बाद इस मौलूदे असऊद को उसकी माँ के पास पहुँचा दिया गया।



(शवाहेदुन नुबूव्वत सफ़ा 212 तबा लखनऊ 1905 ई0)



अल्लामा हायरी लिखते हैं कि विलादत के बाद आपको जिब्रईल परवरिश के लिये उठा ले गये।



(ग़ायतुल मकसूद जिलद 1, सफ़ा 75)



किताब शवाहेदुन नुबूव्वत और वफ़या-तुल आयान व रौज़ा-तुल अहबाब में है कि जब आप पैदा हुए तो मख़्तून और नाफ़ बुरीदा थे और आपके दाहिने बाज़ू पर यह आयत नक़्श थी। جاء الحق ذهق الباطل ان الباطل كان ذهوقا यानि हक़ आया और बातिल मिट गया और बातिल मिटने ही के क़बिल था। यह क़ुदरती तौर पर बहरे मुताक़ारिब के दो मिसरे बन गये है। हज़रत नसीम अमरोहवी ने इस पर क्या खूब तज़मीन की है वह लिखते है।


चशमो, चराग़े दीद – ए- नरजिस


ऐने खुदा की आखँ का तारा


बदरे कमाल, नीम – ए- शाबान


चौदहवाँ अख़्तर औजे बक़ा का


हामि – ए- मिल्लत माहि – ए- बिदअत


कुफ़्र मिटाने ख़ल्क़ में आया


वक़्ते विलादत माशा अल्लाह


क़ुरआन सूरत देख के बोला


जा अल हक़्क़ु ज़हक़ल बातिल


इन्नल बातिला काना ज़हूक़ा


शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी अपनी किताब मनाक़िबे आइम्मा-ए-अतहार में लिखते हैं कि हकीमा ख़ातून जब नरजिस के पास आईं, तो देखा कि एक मौलूद पैदा हुआ है, जो मख़्तून और नहलाने धुलाने के कामों से जो मौलूद के साथ होते हैं बिलकुल मुसतग़नी है। हकीमा ख़ातून बच्चे को इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के पास लाईं। इमाम ने बच्चे को लिया और उसकी पुश्ते अक़दस और चश्मे मुबारक पर हाथ फेरा। अपनी ज़बाने मुतह्हर उनके मुँह मे डाली और दाहिने कान में अज़ान और बाएं कान में इक़ामत कही। यही मज़मून फ़सलुल ख़िताब और बिहार – उल- अनवार में भी है। किताब रौज़तुल अहबाब और यनाबि उल मवद्दत में है कि आपकी विलादत मुक़ामे सरमन राय सामरा में हुई।



किताब कशफ़ुल ग़ुम्मा को सफ़ा न. 120 पर है कि आपकी विलादत को छुपाया गया और मुकम्मल तौर पर यह कोशिश की गयी कि आपकी पैदाइश के बारे में किसी को मालूम न हो सके। किताब दम-अतुस साकेबा जिल्द 3, सफ़ा न. 194 पर है कि आपकी विलादत इस लिये छुपाई गयी थी कि बादशाहे वक़्त पूरी ताक़त के साथ आप की तलाश में थे। इस किताब के सफ़ा 192 पर है कि इनका मक़सद यह था कि हज़रत हुज्जत को कत्ल करके नस्ले रिसालत का ख़ात्मा कर दें। तारीखे अबुल फ़िदा में है कि बादशाहे वक़्त मोतज़ बिल्लाह था। तज़किरा -ए- ख़वासुल उम्मत में है कि उसी के अहद में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को ज़हर दिया गया था। मोतज़ के बारे में मुवर्रेख़ीन की राय कुछ अच्छी नही है। तर्जुमा तारीख़ुल ख़ुलफ़ा, अल्लामा सियूती के सफ़ा 363 में है कि उसने अपनी खिलाफ़त में अपने भाई को वली अहदी से माज़ूल करने के बाद कोडे लगवाये थे और उसे पूरी ज़िंदगी क़ैद में रखा था। अक्सर तवारीख़ में है कि बादशाहे वक़्त मोतमिद बिन मुतवक्किल था। जिसने इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को ज़हर से शहीद किया था। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1, सफ़ा 67 में है कि खलीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल कमज़ोर मतलून मिज़ाज और ऐश पसन्द था। वह अय्याशी और शराब नोशी में बसर करता था। इसी किताब के सफ़ा 29 में है कि मोतमिद हज़रत इमाम हसन अकरी अलैहिस्सलाम को ज़हर से शहीद करने के बाद इमाम महदी अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने पर तुल गाया था।

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