अँबिया पूरी ज़िन्दगी मे मासूम होते है।

हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह के तमाम पैग़म्बर मासूम हैं यानी अपनी पूरी ज़िन्दगी में चाहे वह बेसत से पहले की ज़िन्दगी हो या बाद की गुनाह, ख़ता व ग़लती से अल्लाह की तईद के ज़रिये महफ़ूज़ रहते हैं। क्योँ कि अगर वह किसी गुनाह या ग़लती को अँजाम दे गें तो उन पर से लोगों का एतेमाद ख़त्म हो जायेगा और इस हालत में न लोग उनको अपने और अल्लाह के दरमियान एक मुतमइन वसीले के तौर पर क़बूल नही कर सकते हैं और न ही उन को अपनी ज़िन्दगी के तमाम आमाल में पेशवा क़रार दे सकते हैं।


इसी बिना पर हमारा अक़ीदह यह है कि क़ुरआने करीम कि जिन आयात में ज़ाहिरी तौर पर नबियों की तरफ़ गुनाह की निस्बत दी गई है वह “तरके औला” के क़बील से है। (तरके औला यानी दो अच्छे कामों में से एक ऐसे काम को चुन ना जिस में कम अच्छाई पाई जाती हो जबकि बेहतर यह था कि उस काम को चुना जाता जिस में ज़्यादा अच्छाई पाई जाती है।)या एक दूसरी ताबीर के तहत “हसनातु अलअबरारि सय्यिआतु अलमुक़र्राबीन”

कभी कभी नेक लोगों के अच्छे काम भी मुक़र्रब लोगों के गुनाह शुमार होते हैं। क्योँ के हर इँसान से उस के मक़ाम के मुताबिक़ अमल की तवक़्क़ो की जाती है।