अंबिया के मोजज़ात व इल्मे ग़ैब

पैग़म्बरो का अल्लाह का बन्दा होना इस बात की नफ़ी नही करता कि वह अल्लाह के हुक्म से हाल, ग़ुज़िश्ता और आइन्दा के पौशीदा अमूर से वाक़िफ़ न हो। “आलिमु अलग़ैबि फ़ला युज़हिरु अला ग़ैबिहि अहदन इल्ला मन इरतज़ा मिन रसूलिन।”[47] यानी अल्लाह ग़ैब का जान ने वाला है और किसी को भी अपने ग़ैब का इल्म अता नही करता मगर उन रसूलों को जिन को उस ने चुन लिया है।


हम जानते हैं कि हज़रत ईसा (अ.)का एक मोजज़ा यह था कि वह लोगो को ग़ैब की बातों से आगाह कर ते थे। “व उनब्बिउ कुम बिमा ताकुलूना व मा तद्दख़िरूना फ़ी बुयूति कुम। ”[48]मैं तुम को उन चीज़ों के बारे में बताता हूँ जो तुम खाते हो या अपने घरो में जमा करते हो।


पैग़म्बरे इस्लाम (स.)ने भी तालीमे इलाही के ज़रिये बहुत सी पौशीदा बातों को बयान किया हैं “ ज़ालिका मिन अंबाइ अलग़ैबि नुहीहि इलैका ”[49]यानी यह ग़ैब की बाते हैं जिन की हम तुम्हारी तरफ़ वही करते हैं।


इस बिना पर अल्लाह के पैग़म्बरों का वही के ज़रिये और अल्लाह के इज़्न से ग़ैब की ख़बरे देना माने नही है। और यह जो कुरआने करीम की कुछ आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम के इल्मे ग़ैब की नफ़ी हुई है जैसे “व ला आलिमु अलग़ैबा व ला अक़ूलु लकुम इन्नी मलक”[50] यानी मुझे ग़ैब का इल्म नही और न ही मैं तुम से यह कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ। यहाँ पर इस इल्म से मुराद इल्मे ज़ाती और इल्मे इस्तक़लाली है न कि वह इल्म जो अल्लाह की तालीम के ज़रिये हासिल होता है। जैसा कि हम जानते हैं कि कुरआन की आयतें एक दूसरी की तफ़्सीर करती हैं।


हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह के नबियों ने तमाम मोजज़ात व मा फ़ौक़े बशर काम अल्लाह के हुक्म से अँजाम दिये हैं और पैग़म्बरो का अल्लाह के हुक्म से ऐसे कामों को अँजाम देना का अक़ीदह रखना शिर्क नही है। जैसा कि कुरआने करीम में भी ज़िक्र है कि हज़रत ईसा (अ.)ने अल्लाह के हुक्म से मुर्दों को ज़िन्दा किया और ला इलाज बीमारों को अल्लाह के हुक्म से शिफ़ा अता की “व उबरिउ अलअकमहा व अलअबरसा व उहयि अलमौता बिइज़निल्लाह