अंबिया की दावत के उसूल एक हैं।

हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह के तमाम अँबिया-ए- ईलाही का मक़सद एक था और वह था इँसान की सआदत जिसको हासिल करने के लिए अल्लाह और कियामत पर ईमान,सही दीनी तालीम व तरबीयत और समाज में अख़लाक़ी उसूल को मज़बूती अता करना ज़रूरी था। इसी वजह से हमारे नज़डदीक तमाम अँबिया मोहतरम हैं और यह बात हम ने क़ुरआने करीम से सीखी है “ला नुफ़र्रिक़ु बैना अहदिन मिन रुसुलिहि”यानी हम अल्लाह के नबियों के दरमियान कोई फ़र्क़ नही कर ते।


ज़माने के गुज़रने के साथ साथ जहाँ इँसान में आला तालीम को हासिल करने की सलाहियत बढ़ती गई वहीँ अदयाने ईलाही तदरीजन कामिल तर और उनकी तालीमात अमीक़ तर होती गई यहाँ तक कि आख़िर में कामिलतरीन आईने ईलाही (इस्लाम)रू नुमा हुआ और इस के ज़हूर के बाद “अल यौम अकमलतु लकुम दीना कुम व अतममतु अलैकुम नेअमती व रज़ीतु लकुम अल इस्लामा दीनन” यानी “आज के दिन मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुम पर अपनी नेअमतों को पूरा किया और तुम्हारे लिए दीने इस्लाम को चुन लिया” का एलान कर दिया गया।