अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

110 रावियाने हदीसे ग़दीर

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इस तारीखी वाक़िए की अहमियत के लिए इतना ही काफ़ी है कि इस को पैगम्बर स. के 110 असहाब ने नक़्ल किया है[1]



अलबत्ता इस जुमले का मतलब यह नही है कि सहाबा के अज़ीम गिरोह में से सिर्फ़ इन्हीं असहाब ने इस वाक़िए को बयान किया है। बल्कि इससे मुराद यह है कि अहले सुन्नत के के उलमा ने जो किताबें लिखी हैं उनमें सिर्फ़ इन्हीं 110 अफ़राद का ज़िक्र मिलता है।



दूसरी सदी में कि जिसको ताबेआन का दौर कहा गया है इनमें से 89 अफ़राद ने इस हदीस को नक़्ल किया है।



बाद की सदीयों में भी अहले सुन्नत के 360 उलमा ने इस हदीस को अपनी किताबों में बयान किया है। और उलमा के एक बड़े गिरोह ने इस हदीस की सनद और सेहत को सही तसलीम किया है।



इस गिरोह ने सिर्फ़ इस हदीस को बयान कतरने पर ही इकतफ़ा नही किया बल्कि इस हदीस की सनद और इफ़ादियत के बारे में मुस्तक़िल तौर पर किताबें भी लिखी हैं।



अजीब बात यह है कि आलमे इस्लाम के सबसे बड़े मवर्रिख तबरी ने “अल विलायतु फ़ी तुरुक़ि हदीसिल ग़दीर” नामी किताब लिखी और इस हदीस को 75 तरीकों से पैगम्बर से नक़ल किया।



इब्ने उक़दह कूफ़ी ने अपने रिसालेह “विलाय़त” में इस हदीस को 105 अफ़राद से नक़्ल किया है।



अबु बकर मुहम्मद बिन उमर बग़दादी जो कि जमआनी के नाम से मशहूर हैं, उन्होनें इस हदीस को 25 तरीक़ों से बयान किया है।



* * *

अहले सुन्नत के वह मशहूर उलमा जिन्होनें इस हदीस को बहुतसी सनदों के साथ नक़्ल किया है[2]



अहमद इब्ने हंबल शेबानी



इब्ने हज्रे अस्क़लानी



जज़री शाफ़ेई



अबु सईदे सजिस्तानी



अमीर मुहम्मद यमनी



निसाई



अबुल अला हमदानी



अबुल इरफ़ान हब्बान



शिया उलमा ने भी इस तारीखी वाक़िए के बारे में बहुत सी बा अरज़िश किताबें लिखी हैं। औरल अहले सुन्नत के मुहिम मनाबे की तरफ़ इशारा किया है। इनमें से जमेए तरीन किताब “अलग़दीर” है। जो आलमे इस्लाम के मशहूर मोल्लिफ़ अल्लामा मुजाहिद मरहूम आयतुल्लाह अमीने के कलम से लिखी गयी है।(इस हिस्से को लिखने के लिए उस किताब से बहुत ज़्यादा इस्तेफ़ादा किया गया है।)



बहर हाल पैगम्बरे इस्लाम स. ने अमीरूल मोमेनीन अली अ. को अपना जानशीन बनाने के बाद फ़रमाया “ कि ऐ लोगो अभी अभी वही लाने वाला फ़रिश्ता मुझ पर नाज़िल हुआ और यह आयत लाया कि (( अलयौम अकमलतु लकुम दीनाकुम व अतमम्तु अलैकुम नेअमती व रज़ीतु लकुमुल इस्लामा दीना))[3]आज मैंनें तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुम पर अपनी नेअमतों को तमाम किया और तुम्हारे लिए दीन इस्लाम को पसंद किया।”



उस वक़्त पैगम्बर ने तकबीर कही और फ़रमाया “ अल्लाह का शुक्र अदा तकरता हूँ कि उसने अपने आईन को पूरा किया और अपनी नेअमतों को पूरा किया और मेरे बाद अली अ. की विसायत व जानशीनी से खुशनूद हुआ।”



इसके बाद पैगम्बर इस्लाम स. बलंदी से नीचे तशरीफ़ लाये और हज़रत अली अलैहिस्सलाम से फ़रमाया कि “खेमें में जाकर बैठो ताकि इस्लाम की बुज़ुर्ग शख्सियतें और सरदार आपकी बैअत करें और मुबारक बाद अर्ज़ करें। ”



सबसे पहले शैखैन( अबुबकर व उमर) ने अली अलैहिस्सलाम को को मुबारक बाद पेश की और उनको अपना मौला तस्लीम किया।



हस्सान बिन साबित ने मौक़े से फ़ायदा उठाया और पैगम्बरे इस्लाम स. की इजाज़त से एक क़सीदा कहा और पैगम्बर स. के सामने उसको पढ़ा। यहाँ पर उस क़सीदे के सिर्फ़ दो अशार को बयान कर रहें हैं जो बहुत अहम हैं।



फ़ाक़ाला लहु क़ुम या अली फ़इन्ननी ।



रज़ीतुकः मिंम बअदी इमामन व हादीयन।।



फ़मन कुन्तु मौलाहु फ़हाज़ा वलीय्युहु।



फ़कूनू लहु अतबाअः सिदक़िन मवालियन।।



यानी अली अ. से फ़रमाया कि उठो मैंनें आपको अपनी जानशीनी और अपने बाद लोगों की रहनुमाई के लिए मुंतखब कर लिया।



जिस जिस का मैं मौला हूँ उस उस के अली मौला हैं। तुम के उनको दिल से दोस्त रखते हो बस उनकी पैरवी करो।[4]



यह हदीस इमाम अली अलैहिस्सलाम की तमाम सहाबा पर फ़ज़ीलत व बरतरी के लिए सबसे बड़ी गवाह है।



यहाँ तक कि अमीरूल मोमेनीन ने मजलिसे शूराए खिलाफ़त में- जो कि दूसरे खलीफ़ा के मरने के बाद मुनअक़िद हुई[5] - और उसमान की खिलाफ़त के ज़माने में और अपनी खिलाफ़त के दौरान भी इस पर एहतेजाज किया है।[6]



इसके अलावा हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी अज़ीम शख्सियतों नें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की वाला मक़ामी से इंकार करने वालों के सामने इसी हदीस से इस्तदलाल किया है।[7]



[1] इस अहम सनद का ज़िक्र एक दूसरी जगह पर करेंगे।

[2] सनदों का यह मजमुआ अलग़दीर की पहली जिल्द में मौजूद है जो अहले सुन्नत की मशहूर किताबों से जमा किया गया है।

[3] सूरए माइदा आयत न.3

[4] हस्सान के अशआर बहुत सी किताबों में नक़्ल हुए हैं इनमें से कुछ यह हैं क- मनाक़िबे खवारज़मी पेज न.135 ख-मक़तलुल हुसैन खवारज़मी जिल्द 1पेज़ न.47 ग- फ़राइदुस्समतैन जिल्द1 पेज़ न. 73 व 74 घ-अन्नूरूल मुशतअल पेज न.56 ङ-अलमनाक़िबे कौसर जिल्द 1 पेज न. 118 व 362.

[5] यह एहतेजाज जिसको इस्तलाह में मुनाशेदह कहा जाता है हस्बे ज़ैल किताबों में बयान हुआ है। क-मनाक़िबे अखतब खवारज़मी हनफ़ी पेज न. 217 ख- फ़राइदुस्समतैन हमवीनी बाबे 58 ग- वद्दुर्रुन्नज़ीम इब्ने हातम शामी घ-अस्सवाएक़ुल मुहर्रेक़ा इब्ने हज्रे अस्क़लानी पेज़ न.75 ङ-अमाली इब्ने उक़दह पेज न. 7 व 212 च- शरहे नहजुल बलाग़ह इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पेज न. 61 छ- अल इस्तिआब इब्ने अब्दुल बर्र जिल्द 3 पेज न. 35 ज- तफ़सीरे तबरी जिल्द 3 पेज न.417 सूरए माइदा की 55वी आयत के तहत।

[6] क- फ़राइदुस्समतैन सम्ते अव्वल बाब 58 ख-शरहे नहजुल बलाग़ह इब्ने अबिल हदीद जिल्द 1 पेज न. 362 ग-असदुलग़ाब्बा जिल्द 3पेज न.307 व जिल्द 5 पेज न.205 घ- अल असाबा इब्ने हज्रे अस्क़लानी जिल्द 2 पेज न. 408 व जिल्द 4 पेज न.80 ङ-मुसनदे अहमदजिल्द 1 पेज 84 व 88 च- अलबिदाया वन्निहाया इब्ने कसीर शामी जिल्द 5 पेज न. 210 व जिल्द 7 पेज न. 348 छ-मजमउज़्ज़वाइद हीतमी जिल्द 9 पेज न. 106 ज-ज़ख़ाइरिल उक़बा पेज न.67( अलग़दीर जिल्द 1 पेज न.163व 164.

[7] क- अस्नल मतालिब शम्सुद्दीन शाफ़ेई तिब्क़े नख़ले सखावी फ़ी ज़ौइल्लामेए जिलेद 9 पेज 256 ख-अलबदरुत्तालेअ शौकानी जिल्द 2 पेज न.297 ग- शरहे नहजुल बलाग़ह इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पेज न. 273 घ- मनाक़िबे अल्लामा हनॉफ़ी पेज न. 130 ङ- बलाग़ातुन्नसा पेज न.72 च- अलअक़दुल फ़रीद जिल्द 1 पेज न.162 छ- सब्हुल अशा जिल्द 1 पेज न.259 ज-मरूजुज़्ज़हब इब्ने मसऊद शाफ़ई जिल्द 2 पेज न. 49 झ- यनाबी उल मवद्दत पेज न. 486.
 

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