अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

मौला से क्या मुराद है

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यहाँ पर सबसे अहम मसअला मौला के मअना की तफ़सीर है। जो कि वाज़ाहत मे अदमे तवज्जोह और लापरवाहीयो का निशाना बना हुआ है। क्योंकि इस हदीस के बारे में जो कुछ बयान किया गया है उससे इस हदीस की सनद के क़तई होने में कोई शको तरदीद बाक़ी नही रह जाती।



लिहाज़ा बहाना तरशाने वाले अफ़राद इस हदीस के मअना मफ़हूम में शको तरदीद पैदा करने में लग गये खासतौर पर लफ़्ज़े मौला के माअना में मगर इसमें भी कामयाब न हो सके।



सराहत के साथ कहा जा सकता है कि लफ़ज़े मौला इस हदीस में और बल्कि अक्सर मक़ामात पर एक से ज़्यादा माअना नही देता और वह “औलवियत और शायस्तगी ” है। दूसरे अलफ़ाज़ में मौला के मअना “सरपरस्ती” है। क़ुरआन में बहुतसी आयात में लफ़्ज़े मौला सरपरस्ती और औला के माअना में इस्तेमाल हुआ है।



क़ुरआने करीम में लफ़्जे मौला 18 आयात में इस्तेमाल है जिनमें से 10 मुक़ामात पर यह लफ़ज़ अल्लाह के लिए इस्तेमाल हुआ है। ज़ाहिर है कि अल्लाह की मौलाइयत उसकी सरपरस्ती और औलवियत के मअना में है। लफ़ज़े मौला बहुत कम मक़ामात पर दोस्त के मअना में इस्तेमाल हुआ है।



इस बुनियाद पर “मौला” के दर्ज़ाए अव्वल में औवला के मअना मे शको तरदीद नही करनी चाहिए। हदीसे ग़दीर में भी लफ़्ज़े “मौला” औलवियत के मअना में इस्तेमाल हुआ है। इसके अलावा इस हदीस के साथ बहुतसे ऐसे क़राइन व शवाहिद हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि यहाँ पर मौला से मुराद औलवियत व सरपरस्ती है।

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