इन्तेज़ार करने वालों का सवाब

खुश नसीब है वह इंसान जो अच्छाईयों व नेकियों के इन्तेज़ार में अपनी आँखे बिछाये हुए हैं। वास्तव उन लोगों के लिए कितना ज़्यादा सवाब है जो हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की विश्वव्यापी हुकूमत का इन्तेज़ार कर रहे हैं। और कितना बड़ा रुत्बा है उन लोगों का जो क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) के सच्चे मुन्तज़िर हैं।

हम उचित समझते हैं कि इन्तेज़ार नामक इस अध्याय के अन्त में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की उच्च श्रेष्ठताओं व मान सम्मान का वर्णन करें और इस संदर्भ में मासूम इमामों (अ. स.) की हदीसों को आप लोगों के सामने पेश करें।

हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) फरमाते हैं :
"खुश नसीब हैं क़ाइमे आले मुहम्मद के वह शिआ जो ग़ैबत के ज़माने में उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करें और उनके ज़हूर के ज़माने में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए उनकी पैरवी करें। यही लोग ख़ुदा वन्दे आलम के महबूब (प्रियः) बंदे हैं और उनके लिए कोई दुखः दर्द न होगा...।"[1]

वास्तव में इस से बढ़ कर और क्या गर्व होगा कि उनके सीने पर ख़ुदा वन्दे आलम की दोस्ती का तम्ग़ा लगा हुआ है।वह किसी दुखः दर्द में कैसे घिर सकते हैं, जबकि कि उनकी ज़िन्दगी और मौत दोनों की क़ीमत बहुत ज़्यादा है।

हज़रत इमाम सज्जाद (अ. स.) फरमाते हैं कि
"जो इंसान हमारे क़ाइम (अ. स.) की ग़ैबत के ज़माने में हमारी विलायत (मुब्बत) पर बाक़ी रहेगा, ख़ुदा वन्दे आलम उसे शुहदा ए बद्र व ओहद के हज़ार शहीदों का सवाब प्रदान करेगा..."[2]

जी हाँ ! ग़ैबत के ज़माने में अपने इमामे ज़माना (अ. स.) की विलायत पर और अपने इमाम से किये हुए वादों पर बाक़ी रहने वाले लोग, ऐसे फौजी हैं जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के साथ मिल कर अल्लाह के दुशमनों से जंग की हो और जंग के मैदान में अपने खून में नहाये हों।

वह मुन्तज़िर जो रसूल (स.) के इस महान बेटे, इमाम ज़माना (अ. स.) के इन्तेज़ार में अपनी जान हथेली पर लिए खड़े हुए हैं, वह अभी से जंग के मैदान में अपने इमाम के साथ मौजूद हैं।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं :
अगर तुम शिओं में से कोई इंसान हज़रत इमाम महदी अ. स. के ज़हूर के इन्तेज़ार में मर जाये तो ऐसा है जैसे वह अपने इमाम (अ. स.) के ख़ेमे में है।---- यह कह कर इमाम (अ. स.) थोड़ी देर के लिए ख़ामोश रहे फिर फरमाया : बल्कि उस इंसान की तरह है जिसने इमाम (अ. स.) के साथ मिल कर जंग में तलवार चलाई हो। इस के बाद फरमाया : नहीं, ख़ुदा की क़सम वह उस इंसान की मिस्ल है जिसने रसूले इस्लाम (स.) के सामने शहादत पाई हो...[3]

यह वह लोग हैं जिन को पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने सदियों पहले अपना भाई और दोस्त कहा है और उन से अपनी दिली मुहब्बत और दोस्ती का ऐलान किया है।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपने असहाब के सामने अल्लाह से दुआ की : पालने वाले ! मुझे मेरे भाइयों को दिखला दे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने इस वाक्य को दो बार कहा। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के असहाब ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या हम आप के भाई नहीं हैं ?!

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया कि तुम लोग मेरे असहाब हो और मेरे भाई वह लोग हैं जो आख़िरी ज़माने में मुझ पर ईमान लायेंगे, जबकि उन्होंने मुझे नहीं देखा होगा। ख़ुदा वन्दे आलम ने मुझे उनके नाम उनके बापों के नाम के साथ बतायें हैं। उनमें से हर एक का अपने दीन पर अडिग व साबित क़दम रहना अंधेरी रात में गोन नामक पेड़ से कांटा तोड़ने और दहकती हुई आग को हाथ में लेने से भी ज़्यादा सख्त है। वह हिदायत की मशाल हैं ख़ुदा वन्दे आलम उनको खतरनाक बुराईयों से निजात व छुटकारा देगा...[4]

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने यह भी फरमाया :
खुश नसीब हैं वह इंसान जो हम अलेबैत के क़ाइम से इस हाल में मिले, कि उनके क़ियाम से पहले उनकी पैरवी करते हों, उन के दोस्तों को दोस्त रखता हों और उनके दुशमनों से दूर रहता हों व नफ़रत करता हों, वह उनसे पहले इमामों को भी दोस्त रखता हों, उनके दिलों में मेरी दोस्ती, मवद्दत व मुहब्बत हो तो वह मेरे नज़दीक मेरी उम्मत के सब से आदरनीय इंसान हैं...।[5]

अतः जो इंसान पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के नज़दीक़ इतने प्रियः व महान हैं, वही ख़ुदा वन्दे आलम के संबोधन को सुनेगें, ऐसी आवाज़ को जो इशक व मुहब्बत में डूबी होगी और जो ख़ुदा वन्दे आलम से बहुत अधिक नज़दीक होने का इशारा करती होगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :
एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिनों का इमाम गायब होगा, अतः खुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारी विलायत पर साबित क़दम रहे। बेशक उनका कम से कम ईनाम यह होगा कि ख़ुदा वन्दे आलम उनसे संबोधन करेगा कि ऐ मेरे बन्दो तुम मेरे राज़ और इमाम गायब पर ईमान लाये हो और तुम ने उसकी तस्दीक की है, अतः मेरी तरफ़ से बेहतरीन ईमान की ख़ुश ख़बरी है, तुम हक़ीक़त में मेरे बन्दे हो, मैं तुम्हारे आमाल को क़बूल करता हूँ और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ करता हूँ, मैं तुम्हारी बरकत की वजह से अपने बन्दों पर बारिश नाज़िल करता हूँ और उनसे बलाओं को दूर करता हूँ, अगर तुम उन लोगों के बीच न होते तो मैं गुनहगार लोगों पर ज़रुर अज़ाब नाज़िल कर देता...।[6]

लेकिन इन इन्तेज़ार करने वालों को किस चीज़ के ज़रिये आराम व सकून मिलेगा है, उनके इन्तेज़ार की घड़ियां कब खत्म होगी, किस चीज़ से उनकी आँखों को ठंडक मिलेगी, उनके बेकरार दिलों को कब चैन व सकून मिलेगा, क्या जो लोग उम्र भर इन्तेज़ार के रास्ते पर चले है और जो हर तरह की मुश्किलों को बर्दाश्त करते हुए इसी रास्ते पर इस लिए चलते हैं ताकि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के हरे भरे चमन में क़दम रखें और अपने प्रियः मौला के साथ बैठें। वाकिअन इस से बेहतरीन और क्या अंजाम हो सकता है और इस से बेहतर और कौन सा मौक़ा हो सकता है।

हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम (अ. स.) ने फरमाया :
खुश नसीब हैं हमारे वह शिया जो हमारे क़ाइम की ग़ैबत के ज़माने में हमारी दोस्ती की रस्सी को मज़बूती से थामे रखें और हमारे दुशमनों से दूर रहें। वह हम से हैं और हम उनसे हैं। वह हमारी इमामत पर राज़ी हैं और हमारी इमामत को क़बूल करते हैं, अतः हम भी उनके शिआ होने से ख़ुश व राज़ी हैं, वह बहुत ख़ुश नसीब हैं!! ख़ुदा की क़सम यह इंसान क़ियामत के दिन हमारे साथ हमारे दर्जे में होंगे...[7]
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[1] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 33, हदीस 54, पेज न. 39 ।
[2] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब न. 31, हदीस न. 54, पेज न. 592
[3] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 52, पेज न. 126
[4] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 52, पेज न. 123
[5] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब न. 25, हदीस न. 2, पेज न. 535
[6] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब 32, हदीस 15, पेज न. 602 ।
[7] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 43, हदीस 5, पेज न. 43 ।