नमाज़ और सुकून

रूही सुकून व आराम एक ऐसा मस्ला है जिसको इल्म और सनअत(उत्पादन) पर मबनी(आधारित) यह दुनिया अभी तक हल नही कर सकी है। हर रोज़ नफ़्सियाती बीमारीयों की तादाद मे इज़ाफ़ा हो रहा है और दवा का इस्तेमाल हर दिन बढ़ता जा रहा है। कोई भी चीज़ इंसान को सुकून नही देती सिर्फ़ अल्लाह की याद, उसकी मुहब्बत और उसकी ज़ात पर ईमान व तवक्कुल से इंसान के दिल को आराम व सुकून मिलता है।

नमाज़ अल्लाह की याद है और फ़क़त अल्लाह की याद से दिल को सुकून मिलता है। हम सब ऐसे इंसानों को जानतें हैं, जिनके पास इल्म, दौलत और ताक़तो क़ुदरत सभी कुछ मौजूद है। मगर उनको वह आराम व सुकून हासिल नही है, जिसकी एक इंसान को ज़रूरत होती है। और इनके मुक़ाबिल वह लोग भी हैं जिनके पास माल दौलत नही है मगर फ़िर भी वह मुत्मइन हैं और सुकून से रहते हैं। इसकी वजह यह है कि वह अल्लाह पर ईमान रखते हैं। वह एक खास अक़ीदा नज़रिया और फ़िक्र रखते हैं । और हर अच्छे बुरे हादसे को सहन करते हैं।

अल्लाह की याद से दिलों को सुकून मिलता है। और अल्लाह की याद का सबसे अच्छा तरीक़ा नमाज़ है। आज की इस दुनिया मे इंसान के पास इल्म और महारत की कमी नही है बल्कि उसके पास जिस चीज़ की कमी है उसका नाम सुकून है। आज के इस दौर मे न तो बड़ी ताक़तों को आराम हासिल है और ना ही दौलतमंद अफ़राद को राहत है। जहाँ मुनाफ़िक़ लोग बेचैन हैं वहीँ दौलत के पुजारी दरबारी उलमा भी सुकून से नही हैं। हाँ अगर हमने इस दौर मे किसी को सुकून से देखा है तो वह इमाम खुमैनी रिज़वानुल्लाह अलैह की ज़ात थी। जब वह फ़रवरी 1979 मे फ़्राँस से ईरान आरहे थे तो हवाई जहाज़ मे एक प्रेस रिपोरटर ने सवाल किया कि आप इस वक़्त कैसा महसूस कर रहे हैं? आप ने फ़रमाया कि “कुछ भी नही।” जबकि हालात यह थे कि अभी शाह की सरकार बाक़ी थी और हवाई जहाज़ को मार गिराने का खतरा था। इमाम खुमैनी ने अपने वसीयत नामे मे भी लिखा है कि ” मैंपुर सुकून क़ल्ब के साथ अल्लाह की बारगाह मे जारहा हूँ।” यह दिल का सुकून माल दौलत या ताक़त और शौहरत से नही मिलता बल्कि यह सुकून अल्लाह से राबते के नतीजे मे हासिल होता है। और अल्लाह से राबते का सबसे अच्छा तरीक़ा नमाज़ है।