जंगे बद्र

मदीना ए मुनव्वरा से तक़रीबन 80 मील पर बद्र एक गांव था। मदीने में ख़बर पहुँची कि क़ुरैश बड़ी आमादगी के साथ मदीने पर हमला करने वाले हैं और सुन्ने में आया कि अबू सुफ़ियान 30 सवारों के साथ हज़ार आदमियों के काफ़िले को ले कर शाम से व्यापार का सामान मक्के लिये जा रहा है और मदीने से गुज़रेगा। हज़रत रसूले खु़दा (स अ व व ) 313 साथियों के साथ रवाना हुये और मक़ामे बद्र पर जा उतरे। कु़रैश 950 आदमियों की टोली के साथ अबूू सुफ़ियान से मिलने के लिये रवाना हुये। लड़ाई हुई ख़ुदा ने मुसलमानों को मदद दी , जिससे इनको जीत हुई। 70 कुफ़्फ़ार मारे गये और 70 ही गिरफ़्तार हुए। 36 काफ़िरों को हज़रत अली (अ.स.) ने क़त्ल किया। इस लडा़ई में अबू जेहेल और उसका भाई आस और अतबा , शैबा , वलीद बिन अतबा और इस्लाम के बहुत से दुश्मन मारे गये। इस पहली इस्लमी जंग के अलम बरदार हज़रत अली (अ.स.) थे। क़ैदियों में नसर बिन हारिस और ओक़ब बिन अबी मूईत क़त्ल कर दिये गये और बाक़ी लोगों को ज़रे फ़िदया (फ़िदये का पैसा) ले कर छोड़ दिया गया। हज़रत अबू बक्र ने इस ग़ज़वे में जंग नहीं की। ग़ज़वाए बद्र के बाद कुफ़्फ़ार का घर घर मातम कदा बन गया और मरने वालों के बदले का जज़बा (भावनाएं) मक्के के बूढ़े और जवानों में पैदा हो गया जिसके नतीजे में ओहद की जंग हुयी।

यह जंग रमज़ान के महीने 2 हिजरी में हुई। इसी 2 हिजरी में रोज़े फ़र्ज़ किये गये। ईद उल फ़ित्र के अहकाम (नियम) लागू हुये और ग़ज़वाए बनू क़ैनक़ा से वापसी पर ईद अल अज़हा के आदेश आये और ख़ुम्स वाजिब किया गया।