हज़रत अली अलैहिस्सलाम की अहादीस

1-युवा का हृदय उपजाऊ भूमि की भांति होता है कि जो कुछ उसमें बोया जाता है, उग आता है।

2-दान, सफल दवा है।

3-जो स्वंय से बहुत अधिक प्रसन्न रहता है , उससे अप्रसन्न रहने वाले अधिक हो जाते हैं।

4-निर्धनता, चतुर को भी अपनी बात कहने से गूंगा बना देती है।

5-जो कोई ईश्वर से अपनी भलाई चाहेगा वह असमंजसता में नहीं पड़ेगा और जो कोई परामर्श करेगा उसे पछतावा नहीं होगा।

6-अधिक अध्ययन और ज्ञान संबंधी मामलों पर विचार, बुद्धि के विकसित होने तथा विचारों के सुदृढ़ होने का कारण बनता है।

7-जब संसार किसी के साथ होता है तो दूसरों के गुण भी उसे दे देता है किंतु जब संसार उससे मुंह फेरता है तो उसके अपने गुण भी उससे छीन लेता है।

8-महिलाओं की सुरक्षा, उनके लिए बेहतर होती है और इससे उनका सौन्दर्य अधिक दिनों तक बाक़ी रहता है।

9-क्रोध का आरंभ पागलपन और अंत पछतावा है।

10-लोग संसार में उन यात्रियों की भांति हैं जिन्हों सुस्ताने के लिए पड़ाव डाला हो और उन्हें यह पता न हो कि कब प्रस्थान की पुकार हो जाए।

11-अपने बड़ों का सम्मान करो ताकि तुम्हारे छोटे तुम्हारा सम्मान करें।

12-जिसका व्यवहार अच्छा होगा, उसकी अजीविका में वृद्धि होगी।

13-बुद्धिहीन व्यक्ति अपने नगर में भी परदेशी और अपने परिजनों के मध्य भी अपमानित होता है।

14-कठिनाईयों में काम आने वाली दोस्ती को, भली भांति सुरक्षित रखो।

15-जो आलसी होता है वह न अपनी ज़िन्दगी के कर्तव्यों का पालन करता है और न ही ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह।

16-अपने संस्कार, अपनी संतान पर मत थोपो क्योंकि वे तुम्हारे युग से भिन्न युग के लिए बने हैं।

17-मोमिन की प्रसन्नता उसके मुख पर होती है तथा उसका दुख उसके हृदय में।

18-संसार सपना है और उसके धोके में आना पछतावा।

19-जो कमाई में आने वाली कठिनाइयों पर संयम से काम नहीं लेता उसे वंचितता का दुख सहन करना पड़ता है।

20-जिसने अपने मूल्य को न पहचाना वह तबाह हो गया।

21-तीन आदतों से दूर रहो, ईर्ष्या, लोभ व घमंड।

22-बुद्धिमत्ता यह है कि जो जानते हो उसे कहो और जो कहते हो उसे व्यवहारिक बनाओ।

23-सबसे कमज़ोर व्यक्ति वह है जो अपने लिए मित्र न खोज पाए और उससे भी कमज़ोर व्यक्ति वह है जो अपने मित्रों को खो दे।

24-ज्ञान, मुसलमानों की खोई वस्तु है, ज्ञान प्राप्त करो भले ही ज्ञान देना वाला मुसलमान न हो।

25-दान करो किंतु अतिशयोक्ति न करो।

26-दो अनुकंपाएं ऐसी हैं जिनका मूल्य कोई नहीं जानता सिवाए उसके जो उन्हें खो चुका होता है, जवानी और स्वास्थ्य।

27-जब कभी तुम अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर लो तो क्षमा द्वारा इस विजय पर ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करो।

28-भली प्रवृत्ति तीन बातों में है, पापों से दूरी, हलाल कमाई तथा परिजनों से स्नेह।

29-मुसलमान कदापि चापलूस नहीं होता।

30-शत्रु के साथ भी न्याय करो।

31-ईश्वर के अतिरिक्त किसी और से आशा नहीं रखनी चाहिये और अपने पापों के अतिरिक्त किसी और से नहीं डरना चाहिए।

32-प्रायश्चित करने से पाप न करना सरल है।

33-जो भी सत्य के रास्ते से मुंह मोड़ेगा वह ऐसे रास्ते पर चला जायेगा जिसमें वह बर्बाद हो जायेगा।

34-बहुत कम लोग ऐसे हैं जो खाना अधिक खायें और बीमार न हों।

35-जिसका खाना कम होगा वो बहुत सी बीमारियों से सुरक्षित रहेगा।

36-जो नाना प्रकार का खाना खाने का आदी हो जाये उसने नाना प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित कर लिया।

37-प्रत्येक दशा में ईश्वर के आदेश का पालन करो और तुम्हारे हृदय में उसका भय रहे , साथ ही उसकी कृपा के प्रति आशांन्वित भी रहो।

38-अपने बड़ों के आदेश का पालन करो ताकि तुम्हारे छोटे भी तुम्हारे आदेश का पालन करें और अपने अंदर की सुधार करो तो ईश्वर तुम्हारे बाहर की सुधार कर देगा।

39-ईश्वर के आदेश का पालन और नेक काम दोनों लाभदायक व्यापार हैं।

40-ईश्वर के समीप सबसे अधिक वह बन्दा है जो सबसे अच्छा उसके आदेशों का पालन करता है।

41-पैग़म्बरे इस्लाम का मित्र वह है जो ईश्वर के आदेशों का पालन करता है चाहे उनका क़रीबी रिश्तेदार न भी हो।

42-जब भी ईश्वर के आदेशों पर अमल कम हो जायेगा, पाप अधिक हो जायेंगे।

43-ईश्वर के आदेशों पर अमल करने का फल स्वर्ग है।

44-ईश्वर के आदेशों का पालन उसके क्रोध को शांत कर देता है।

45-आख़रत में अल्लाह की दया की दृष्टि उस पर होगी जो इस दुनिया में उसके आदेशों पर अमल करेगा।

46-उस चीज़ में किसी की आज्ञापालन न करो जिस पर अमल करने से अल्लाह की अवज्ञा होती हो।

47-जो भी ईश्वर के आदेशों का पालन करेगा वह व प्रतिष्ठित और सक्षम व शक्तिशाली होगा।

48-सबसे विनाशकारी चीज़ लालच है।

49-सबसे हानिकारक चीज़ लालच है।

50-सबसे अधिक बुरी चीज़ लालच है।

51-लालच इंसान को अपमानित करती है।

52-लालच हमेशा की ग़ुलामी है।

53-लालच का फ़ल लोक व परलोक में अपमानित होना है।

54-लालची ऐसा दास व ग़ुलाम होता है जिसे कभी भी आज़ाद नहीं किया जा सकता।

55-लालच की तरह कोई दूसरी चीज़ धर्म को ख़राब नहीं करती।

56-लालच से बढ़कर कोई अपमान नहीं।

57-थोड़ी सी लालच बड़ी से बड़ी अच्छाई को ख़राब कर देती है।

58-बहुत अधिक लालच अच्छा न होने की निशानी है।

59-लालची ग़ुलाम होता है।

60-लालची हमेशा अपमान के बंधन में होता है।

61-जल्दी क्रोधित हो जाने से जीवन कठिन हो जाता है।

62-धैर्य व संयम सफलता की कुंजी है।

63-अत्याचार करने से दूर हो क्योंकि अत्याचार सबसे बड़ी अवज्ञा और सबसे बड़ा पाप है।

64-जो संयम की सवारी पर बैठ जाता है सफलता के मैदान की ओर अग्रसर हो जाता है।