अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

पिता की नमाज़े मैय्यित पढ़ाना

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हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत से पहले और मख्फ़ी (छुप कर) रहने के ज़माने का आखरी हिस्सा अपने पिता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाना है।


इस बारे में हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के ग़ुलाम अबुल अदियान का कहना है कि :


हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अपनी उम्र के आखरी दिनों में मुझे कुछ ख़त दिये और फरमाया : इन को मदाइन नामक शहर में पहुँचा दो, जब तुम इनको पहुँचा कर 15 दिन के बाद सामर्रा वापस पलटोगे तो मेरे घर से रोने पीटने की आवाज़ें सुनोगे और (मेरे बदन को) गुस्ल के तख्ते पर देखोगे। मैं ने इमाम अ. स. से पूछा ऐ मेरे मौला व आक़ा ! इस घटना के घटित होने के बाद आप का जानशीन और हमारा इमाम कौन होगा ? इमाम (अ. स.) ने फरमाया : जो भी तुम से इन ख़त के जवाब माँगेगा वही मेरे बाद तुम्हारा इमाम होगा। मैं ने कहा उसकी कोई दूसरी निशानी बताईये, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने फरमाया : जो इंसान मेरी नमाज़े जनाज़ा पढ़ायेगा वही मेरे बाद तुम्हारा इमाम होगा। मैं ने कहा कुछ और निशानी बताईये, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने फरमाया : जो इंसान यह बता दे कि इस थैली में क्या है, वही तुम्हारा इमाम होगा। उस वक़्त मुझ पर इमाम (अ. स.) का ऐसा रोब छाया कि मैं यह सवाल न कर सका कि इस थैली में क्या है।


मैं इमाम (अ. स.) के उन खतों को ले कर मदाइन गया और उनका जवाब ले कर वापस आया। इमाम (अ. स.) ने जो फरमाया था वह सच हुआ, जब मैं 15 दिन के बाद सामर्रा वापस पलटा तो देखा कि हज़रत इमाम अस्करी (अ. स.) के घर से रोने पीटने की आवाज़ें आ रही हैं और हज़रत इमाम अस्करी (अ. स.) के मुबारक बदन को गुस्ल के लिए तख़्ते पर लिटा रखा है। मैं ने देखा कि इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के भाई जाफ़र दरवाज़े पर खड़े हैं और कुछ शिया उनको भाई की शहादत पर दिलासा दे रहे हैं और साथ ही साथ उन्हें इमामत की मुबारक बाद भी पेश कर रहे हैं। मैं ने अपने दिल में कहा कि अगर यह (जाफ़र) इमाम हो गए तो इमामत तबाह व बर्बाद हो जायेगी, क्यों कि मैं उसको पहचानता था व शराबी और जुवारी इंसान था। लेकिन चूँकि मैं निशानियों की तलाश में था इस लिए मैं भी आगे बढ़ा और मैं ने भी दूसरों की तरह दिलासा देते हुए मुबारक़ बाद पेश की, लेकिन उसने मुझ से किसी भी चीज़ (अर्थात खतों के जवाबों व अन्य चीज़ों) के बारे में सवाल नही किया। उसी वक़्त इमाम के घर का नौकर अक़ीद घर से बाहर आया और उसने जाफ़र को संबोधित करते हुए कहा : ऐ मेरे मौला व आक़ा ! आप के भाई हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) को कफ़न दिया जा चुका है, अब चल कर उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ा दीजिये। जब मैं दूसरे शियों के साथ इमाम के घर में दाखिल हुआ तो मैं ने देखा कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के जनाज़े को क़फ़न दे कर ताबूत में रखा जा चुका है। जाफ़र अपने भाई की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन जैसे ही उन्होंने तक़बीर कहनी चाही तभी एक गेहूँवे रंग, घुंघराले बाल और चमकदार व आपस में मिले हुए दाँतों वाला बच्चा आगे बढ़ा और जाफ़र का दामन पकड़ कर कहा : ऐ चचा आप पीछे हटें, मैं अपने बाप के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ने का ज़्यादा हक़दार हूँ। जाफ़र के चेहरे का रंग बदल गया और वह शर्मिन्दा हो कर पीछे हट गये। वह बच्चा आगे बढ़ा और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ी। उस के बाद मुझ से फरमाया : तुम्हारे पास खतों के जो जवाब हैं वह मुझे दे दो। मैं ने वह खत उनको दिये और अपने दिल ही दिल में कहा कि मुझे इस बच्चे की इमामत पर दो निशानियाँ मिल गई हैं और अब सिर्फ़ थैली वाली बात बाक़ी रह गई है। मैं जाफ़र के पास गया तो देखा कि वह आहे भर रहे हैं, किसी शिया ने उन से सवाल किया यह बच्चा कौन है ?


जाफ़र ने कहा : ख़ुदा की क़सम मैं ने इस को अभी तक नहीं देखा था और न ही मैं इस को पहचानता हूँ।


अबूल अदियान कहते हैं कि हम बैठे हुए थे कि कुछ लोग क़ुम से आये और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के बारे में सवाल करने लगे। जब उनको मालूम हुआ कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की शहादत हो चुकी है तो कहने लगे कि अब हम किस के पास अफ़सोस के लिए जायें तो लोगों ने जाफ़र की तरफ़ इशारा किया, वह आगे बढ़े और उन्होंने जाफ़र को सलाम करने के बाद इमाम की शहादत पर दिलासा देते हुए इमामत की मुबारकबाद पेश की और फिर उन्होंने जाफ़र को संबोधित कर के कहा : हमारे पास कुछ ख़त और कुछ रक़म हैं, आप सिर्फ़ यह बता दीजिये कि यह ख़त किस के हैं और रक़म कितनी है।


जाफ़र नाराज़ हो कर अपनी जगह से उठे और कहने लगे : क्या हमारे पास गैब का इल्म हैं। इसी वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का एक ग़ुलाम बाहर निकला और उसने कहा : यह ख़त उस उस इंसान के हैं (ख़त भेजने वालों के नाम व पते बताये) और तुम्हारे पास एक थैली है जिस में एक हज़ार दिनार है उस में से दस दिनारों की तस्वीर मिट चुकी है। यह सुनकर उन लोगों ने वह ख़त और रक़म उसको दे दी और कहा : जिस ने तुम्हें यह चीज़ें लेने के लिए भेजा है वही इमाम हैं.....।[1]

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[1]. कमालुद्दीन जिल्द 2, हदीस 25, पेज न. 223।

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