जंगे ख़ैबर

 ख़ैबर मदीनए मुनव्वरा से तक़रीबन 50 मील के फ़ासले पर यहूदियों की बस्ती थी। इसके बाशिन्दे यूंही इस्लाम के ऊरूज व इक़बाल से जल भुन रहे थे कि मदीने में जिला वतन यहूदियों ने उनसे मिल कर उनके हौसले बलन्द कर दिये उन्होंने बनी असद और बनी ग़तफ़ान के भरोसे पर मदीने को तबाह व बरबाद कर डालने का मन्सूबा बांधा और उसके लिये मुकम्मल फ़ौजे तैय्यार लीं। जब आं हज़रत (स अ व व ) को उनके अज़मो इरादे की ख़बर हुई तो आप 14 सफ़र 7 हिजरी को चौदह सौ ( 1400) पैदल और दो सौ ( 200) सवार ले कर फ़ितने को ख़त्म करने के लिये मदीने से बरामद हुए और ख़ैबर में पहुँच कर क़िला बन्दी कर ली और मुसलमान उन्हें घेरे में ले कर बराबर लड़ते रहे लेकिन क़िलै क़मूस फ़तेह न हो सका।

तारीख़े तबरी व ख़मीस और शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 85 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने क़िला फ़तेह करने के लिये हज़रत उमर को भेजा फिर हज़रत अबू बकर को रवाना किया उसके बाद फिर हज़रत उमर को हुक्मे जिहाद दिया लेकिन यह हज़रात नाकाम वापस आये। (तारीख़े तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 93 में है कि तीसरी मरतबा जब अलमे इस्लाम पूरी हिफ़ज़त के साथ आं हज़रत (स अ व व ) की खि़दमत में पहुँच रहा था रास्ते में भागते हुए लश्कर वालों ने सिपहे सालार की बुज़दिली पर इजमा कर लिया और सालारे लश्कर इन लशकरियों को बुज़दिल कह रहा था। इन हालात को देखते हुए आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया! कल मैं अलमे इस्लाम ऐसे बहादुर को दूंगा जो मर्द होगा और बढ़ बढ़ कर हमले करने वाला होगा और किसी हाल में भी मैदाने जंग से न भागे गा। वह ख़ुदा व रसूल को दोस्त रखता होगा और खुदा व रसूल उसको दोस्त रखते होगें और वह उस वक़्त तक मैदान से न पलटे गा जब तक ख़ुदा वन्दे आलम उसके दोनों हाथों पर फ़तेह न दे देगा।

पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) के इस फ़रमाने से अहले इस्लाम में एक ख़ास कैफ़ियत पैदा हो गई और हर एक के दिल में यह उमंग आ मौजूद हुई कि कल अलमे इस्लाम किसी सूरत से मुझे ही मिलना चाहिये। (तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 93 में है कि हज़रत उमर कहते हैं कि मुझे सरदारी का हैसला आज के रोज़ से ज़्यादा कभी न हुआ था। मुवर्रिख़ का बयान है कि तमाम असहाब ने बहुत ही बेचैनी में रात गुज़ारी और सुबह होते ही अपने को आं हज़रत (स अ व व ) के सामने पेश किया। असहाब को अगरचे उम्मीद न थी लेकिन बताये हुए सिफ़ात का तक़ाज़ा था कि अली (अ.स.) को आवाज़ दी जाए , कि नागाह ज़बाने रिसालत (स अ व व ) से अयना अली इब्ने अबू तालिब की आवाज़ बलन्द हुई , लोगों ने हुज़ूर वह तो आशोबे चश्म में मुब्तिला हैं , आ नहीं सकते। हुक्म हुआ कि जा कर कहो कि रसूले ख़ुदा (स अ व व ) बुलाते हैं। पैग़ाम पहुँचाने वाले ने रसूल (स अ व व ) की आवाज़ हज़रत अली (अ.स.) के कानों तक पहुँचाइ और आप उठ ख़ड़े हुए। असहाब के कंधों का सहारा ले कर आं हज़रत (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हुए। आपने अली (अ.स.) का सर अपने ज़ानू पर रखा और बुख़ार उतर गया। लुआबे दहन लगाया आशोबे चश्म जाता रहा। हुक्म हुआ अली मैदाने जंग में जाओ और क़िलाए क़मूस को फ़तेह करो। अली (अ.स.) ने रवाना होते ही पूछा हुज़ूर ! कब तक लडूँ और कब वापस आऊँ , फ़रमाया जब तक फ़तेह न हो।

हुक्मे रसूल (स अ व व ) पा कर अली (अ.स.) मैदान में पहुँचे। पत्थर पर अलम लगाया। एक यहूदी ने पूछा आपका नाम क्या है फ़रमाया अली इब्ने अबी तालिब उसने अपनों से कहा कि(तौरैत) की क़सम यह शख़्स ज़रूर जीत लेगा क्यों कि इस क़िले के फ़ातेह के जो सिफ़ात तौरैत में बयान किये गये हैं वह बिल्कुल सही हैं इसमें सब सिफ़ात पाए जाते हैं। अल ग़रज़ हज़रत अली (अ.स.) से मुक़ाबले के लिये लोग निकल ने लगे और फ़ना के घाट उतर ने लगे। सब से पहले हारिस ने जंग आज़माई की और एक दो वारों की रद्दो बदल में ही वासिले जहन्नम हो गया। हारिस चूंकि मरहब का भाई था इस लिये मरहब ने जोश में आ कर रजज़ कहते हुए आप पर हमला किया। आपने इसके तीन भाल वाले नैज़े के वार को रोक कर के ज़ुलफ़ेक़ार का ऐसा वार किया कि इससे आहनी खोद , सर और सीने तक दो टुकड़े हो गये। मरहब के मरने से अगरचे हिम्मतें ख़त्म हो गईं थीं लेकिन जंग जारी रही और अन्तर रबी यासिर जैसे पहलवान मैदान में आते और मौत के घाट उतरते रहे। आखि़र में भगदड़ मच गई। मुवर्रेख़ीन का कहना है कि जंग के बीच में एक शख़्स ने आपके हाथ पर एक ऐसा हमला किया कि सिपर छूट कर ज़मीन पर गिर गई और एक दूसरा यहूदी उसे ले भागा। हज़रत को जलाल आ गया आप आगे बढ़े और क़िला ख़ैबर के आहनी दर पर बायाँ हाथ रख कर ज़ोर से दबा दिया। आपकी उंगलियां उसकी चौखट में इस तरह दर आईं जैसे मोम में लौहा दर आता है। इसके बाद आपने झटका दिया और ख़ैबर के क़िले का दरवाज़ा जिसे चालीस आदमी हरकत न दे सकते थे , जिसका वज़न बरवायत मआरिज अल नबूवत आठ सौ मन और बरवायत रौज़तुल पृष्ठ तीन हज़ार मन था उख़ड़ कर आपके हाथ में आ गया और आपके इस झटके से क़िले में ज़लज़ला आ गया और सफ़ीहा बिन्ते हई इब्ने अख़्तब मुहँ के बल ज़मीन पर गिर पड़े। चूंकि यह अमल इन्सानी ताक़त के बाहर था इस लिये आपने फ़रमाया मैंने दरे क़िला ए ख़ैबर को कू़व्वते रब्बानी से उखाड़ा है। उसके बाद आपने उसे सिपर बनाकर जंग की और इसी दरवाज़े को पुल बना कर लशकरे इस्लाम को उस पर उतार लिया। मदारिज अल नबूवा जिल्द 2 पृष्ठ 202 में है कि जब मुकम्मल फ़तेह के बाद आप वापस तशरीफ़ ले गये तो पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) आपके इस्तेक़बाल के लिये निकले और अली (अ.स.) को सीने से लगा कर पेशानी पर बोसा दिया और फ़रमाया कि ऐ अली (अ.स.) खुदा और रसूल (स अ व व ) जिब्राईल व मिकाईल बल्कि तमाम फ़रिश्तें तुम से राज़ी व ख़ुश हैं। अल्लामा शेख़ ख़न्दूज़ी किताब नियाबुल मोअदता में लिखते हैं कि आं हज़रत (स अ व व ) ने यह भी फ़रमाया था कि ऐ अली (अ.स.) तुम्हें ख़ुदा ने वो फ़जी़लत दी है कि अगर मैं उसे बयान करता तो लोग तुम्हारी ख़ाके क़दम तबर्रूक समझ कर उठा कर रखते। तारीख़ में है कि फ़तेह खै़बर के दिन हुज़ूर (स अ व व ) को दोहरी ख़ुशी हुई थी। एक फ़तेह ख़ैबर की और दूसरी हबश से मराजेअते जाफ़रे तैयार की। कहा जाता है कि इसी मौक़े पर एक औरत जै़नब बिन्ते हारिस नामी ने आं हज़रत (स अ व व ) को भुने हुये गोश्त में ज़हर दिया था और इसी जंग से वापसी में सहाबा के मक़ाम पर रजअते शम्स हुई थी।(शवाहिद अल नबूवतः पृष्ठ 86, 87 )