नमाज़ और विलायत





नमाज़ और विलायत

सिरातल लज़ीनः अनअमतः अलैहिम कह कर हम अल्लाह से यह चाहते हैं कि अल्लाह हमको उन लोगों के रास्ते पर चलाता रह जिन के ऊपर तूने अपनी नेअमतों को नाज़िल किया है। उन के रास्ते को हमारे लिए नमूना-ए-अमल बना जिन्होने तुझ को पहचान कर तुझ से इश्क़ किया। जो तेरी राह पर चले और साबित क़दम रहे। और किसी भी हालत मे तुझ से जुदा नही हुए। क़ुरआने करीम के सूरए निसा की 69वी आयत मे उन चार गिरोह का ज़िक्र किया गया है जिन पर अल्लाह की नेअमतें नाज़िल हुईं। जो इस तरह हैं---

1-अम्बियाँ

2-शोहदा

3-सिद्दीक़ीन

4- सालेहीन

इंसान नमाज़ मे इन ही चार गिरोह से विलायत, इश्क़, मुहब्बत और दोस्ती का ऐलान करता है। हक़ीक़ी नेअमत का मतलब है अल्लाह पर ईमान रखते हुए उस से राबिता करना, उसकी खुशी की खातिर उसकी राह मे क़दम उठाना और शहीद हो जाना है। वरना माद्दी (भौतिक) नेअमतें तो जानवरों को भी मिल जाती है। यह मानवी (आध्यात्मिक) मक़ाम ही है जो इंसान को अहम(महत्वपूर्ण) बनाता है। वरना जिस्म के लिहाज़ से तो इंसान बहुतसी मख़लूक़ात से कमज़ोर है। जैसे कि अल्लाह ने क़ुरआन मे भी फ़रमाया है कि ख़िलक़त के लिहाज़ से तुम ज़्यादा क़वी हो या आसमान? आज की इस दुनिय