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नमाज़ और सिराते मुस्तक़ीम

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नमाज़ और सिराते मुस्तक़ीम


हम हर रोज़ नमाज़ मे अल्लाह से सिराते मुस्तक़ीम पर गामज़न रहने की दुआ करते हैं। इंसान को हर वक़्त एक नयी फ़िक्र लाहक़ होती है। दोस्त दुशमन, अपने पराये, सरकशी पर आमादा अफ़राद, और शैतानी वसवसे पैदा करने वाले लोग, नसीहत, शौक़, खौफ़, वहशत, और परोपैगंडे के तरीक़ो से काम लेकर इंसान के सामने एक से एक नये रास्ते पेश करते हैं।और इस तरह मंसूबा बनाते हैं कि अगर इंसान को अल्लाह की तरफ़ से मदद ना मिले तो हवाओ हवस के इन रास्तो मे उलझ कर रह जाये। और मुखतलिफ़ तरीक़ो के बीच उलझन का शिकार होकर सिराते मुस्तकीम से भटक जाये।



ऐहदि नस्सिरातल मुस्तक़ीम यानी हमको सिराते मुस्तक़ीम(सीधे रास्ते पर) पर बाक़ी रख।



सिराते मुसतक़ीम यानी

1- वह रास्ता जो अल्लाह के वलीयों का रास्ता है।



2- वह रास्ता जो हर तरह के खतरे और कजी से पाक है।



3- वह रास्ता जो हमसे मुहब्बत करने वाले का बनाया हुआ है।



4- वह रास्ता जो हमारी ज़रूरतों के जानने वाले ने बनाया है।



5- वह रास्ता जो जन्नत से मिलाता है।



6- वह रास्ता जो फ़ितरी है।



7- वह रास्ता कि अगर उस पर चलते हुए मर जायें तो शहीद कहलाऐं।



8- वह रास्ता जो आलमे बाला से वाबस्ता और हमारे इल्म से दूर है।



9- वह रास्ता जिस पर चल कर इंसान को शक नही होता।



10-वह रास्ता जिस पर चलने के बाद इंसान शरमिन्दा नही होता।



11-वह रास्ता जो तमाम रास्तों स

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