नमाज़ यानी ईमान





नमाज़ यानी ईमान
शुरू मे 15 साल तक मुसलमानो ने बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ नमाज़ पढ़ी। और जब क़िबला काबे की तरफ़ बदला गया(क़िबले के बदलने के कुछ सबब सूरए बक़रा मे ब्यान किये गये हैं।) तो मुसलमानो को यह फ़िक्र हुई कि हमने जो नमाज़े बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ रुख करके पढ़ी हैं उनका क्या होगा? जब उन्होने इस बारे मे पैगम्बर से सवाल किया तो क़ुरआन की यह आयत नाज़िल हुई कि अल्लाह तुम्हारे ईमान को ज़ाय(बर्बाद) नही करेगा। क्योँकि उन्होने अपनी नमाज़ों के बारे मे सवाल किया था लिहाज़ा होना तो यह चाहिए था कि उनको जवाब दिया जाता कि त