साम्राज्यवादी शक्तियां और वहाबियों का सरगना।

 मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब ने अपने वालिद और उस दौर के आलिमों के विरोध के बाद अपने शहर को छोड़ कर बसरा की ओर रुख़ किया, कुछ सुन्नी उलेमा ने बसरा के लोगों को ख़त द्वारा उसके गुमराह अक़ीदों के बारे में बता कर उस से दूर रहने को कहा। उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्य मुसलमानों के इत्तेहाद का तोड़ने में लगा हुआ था, ब्रिटिश हुकूमत का सभी मुसलमान देशों में उनके मौजूद जासूसों के लिए हुक्म था कि वह जाली मज़हब और मुसलमानों के बीच किसी भी तरह मतभेद पैदा कर के उनके इत्तेहाद को तोड़ दें। ब्रिटिश जासूस हैमफ़्रे अपनी डायरी में लिखता है, 1700 ईस्वी में ब्रिटिश साम्राज्य के एक मंत्रालय ने मुसलमानों के दीन में खोज बीन करने और मुसलमानों को गुमगाह करने और उनके बीच फूट डालने और मुस्लिम देशों पर क़ब्ज़ा बढ़ाने के लिए मुझ समेत 10 लोगों की टीम तैय्यार कर के मिस्र, ईराक़, ईरान, सऊदी और तुर्की रवाना किया गया, इस मंत्रालय ने हम लोगों को ठीक ठाक पैसे, इन देशों में मुस्लिम बहुल इलाक़ों के नक़्शे और बहुत सी जानकारी दी यहाँ तक कि इन जगहों के हाकिमों, बादशाहों और आलिमों के नाम पते भी बताए। इसके बाद हैमफ़्रे कहता है मैं वहां से निकलते समय उस मंत्रालय के प्रवक्ता के अंतिम शब्दों को आज भी भूल नहीं पाया, उसने कहा था कि हमारे देश का भविष्य अब तुम्हारी कामयाबी में है, अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करते हुए कामयाब हो कर लौटना। फिर लिखता है, जब मैं ईराक़ पहुंच कर बसरा जा रहा था, तो हमारी टीम के अध्यक्ष ने मुझ से कहा कि तुम्हारा काम मुसलमानों के बीच होने वाले मतभदों का पता लगाओ, और इन मतभेदों के सटीक कारणों को ढ़ूंढ़ो, और जितनी अधिक हो सके मुसलमानों के बारे में जानकारी हासिल करो और उसे मंत्रालय तक पहुंचाओ, और जितने अधिक मतभेद तुम उनके बीच फैलाने में कामयाब होगे उतना अधिक काम तुम ब्रिटिश हुकूमत को ख़ुश कर सकोगे। इसी कारण हैमफ़्रे ने मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने और उनमें फूट डालने के लिए इधर से उधर भटकता रहा और फिर अंत में उसकी मुलाक़ात बसरा शहर में मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब से हुई, जान पहचान के बाद उसने धीरे धीरे इब्ने वहाब से दोस्ती करते हुए अपनी प्रोग्रामिंग शुरू कर दी। वह दोनों कभी एक साथ बसरे के बाहर सैर सपाटे के लिए जाते कभा घंटों बैठ कर बातें करते, धीरे धीरे दोनों के बीच संबंध बढ़ते गए यहां तक साथ एक साथ खाना खाते और एक साथ किराए के कमरे में रहते जिसका किराया हैमफ्रे देता था, क्योंकि इब्ने अब्दुल वहाब के पास कोई रोज़गार नहीं था इसलिए हेमफ़ेरे उसकी तमाम ज़रूरतों जैसे खाना पीना कपड़े वग़ैरह पूरी करता, इसी तरह चलता रहा और फिर मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब इस ब्रिटिश जासूस के इशारों पर चलने लगा, हर बात में उसका साथ देता कभी किसी बात में उसका विरोध नहीं करता। मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब के बेटे से मुलाक़ात के बारे में हैमफ़्रे लिखता है कि, 1143 हिजरी में मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब के नज्द वापिस आने के बाद ब्रिटिश और इब्ने अब्दुल वहाब के बीच एक ख़ुफिया समझौते के अनुसार एक नई शुरूआत हुई, और शैख़ को क्या क्या करना है ब्रिटिश जासूस ने समझा कर इस प्रकार समझाया.....

1. सारे मुसलमानों को काफ़िर ठहराते हुए उनके क़त्ल और उनकी औरतों की मर्यादा को लांघते हुए मर्दो और औरतों को भरे बाज़ार बेचना और उन्हें गुलाम और कनीज़ बना कर नीलाम करना।

2. अल्लाह के घर काबे को मिटाना यह कहते हुए कि यह केवल बुतों की पूजा की तरह है, और लोगों को हज से रोकना, फिर चाहे रास्ते में छिप कर उनके काफ़िले पर हमला कर के ही क्यों न हो।

3. उस्मानी ख़लीफ़ा की हुकूमत को विरोध, लोगों को उस से जंग के लिए भड़काना।

4. मुसलमानों की आस्था से जुड़ी चीज़ों को तोड़ देना जैसे मज़ारों के गुंबदों और ज़रीहों को, और मक्का मदीना की चीज़ों को बुत परस्ती सो जोड़ कर हर उस चीज़ को नाबूद कर देना जिसका मुसलमान एहतेराम करता है, पैग़म्बर और ख़ुल्फ़ा का अपमान करना।

5. जितना अधिक हो सके इस्लामी शहरों में हमले करवा कर डर पैदा करवाना।

6. एक ऐसे क़ुर्आन को छाप कर बांटना जिस में कमी और ज़ियादती की गई हो, यानी क़ुर्आन में तहरीफ़ वाली हदीसों पर अमल किया गया हो।

इस पूरे सफ़र में हैमफ़्रे शैख़ का ग़ुलाम बन कर साए की तरह उसके साथ रहता, और हमेशा अपने नापाक इरादों में कामयाबी की उम्मीद दिलाता रहता, शैख़ मोहम्मद और हेमफ़ेरे पूरे 2 साल तक नज्द अपने मिशन की तैय्यारी और प्लानिंग करते रहे, और आख़िरकार 1143 हिजरी में मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब अपने नापाक इरादों को लेकर सामने ज़ाहिर होता है। और फिर इसी तरह ब्रिटिश साम्राज्य के इशारों पर मोहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब काम करता रहा और मुसलमानों के बीच नफ़रत, मतभेद और फूट डालता रहा। हैमफ़्रे के यह इक़रारनामा कोई सीक्रेट नहीं है बल्कि किताब की शक्ल में मौजूद है, जिसे हर मुसलमान को पढ़ और समझ कर इस ख़ूंख़ार टोले की हक़ीक़त को समझना चाहिए, ताकि कम से कम अब हमें होश आ जाए और एक दूसरे के ख़ून को बहाने को जन्नत में जाने का कारण न समझते हुए इसे इंसानियत और मानवता का विरोधी क़दम जानते हुए एक ज़ुबान हो कर सारे मुसलमानों को ऐसा करने वालों की निंदा करनी चाहिए।