अबूल बशर हज़रत आदम अ.

    बनी जान (कौमें जिन) की तबाही और बरबादी के बाद , एक रवायत और कौलें मुरसल के मुताबिक़ इस दुनिया की सरज़मीन 4000 साल तक सुन्सान , वीरान और गैर आबाद पड़ी रही । फिर मशियत की तरफ से मलाएका की सफों मे यह एलान हुआ कि मैं ज़मीन पर अपना एक खलिफ़ा (नायब) मुक़र्रर करने वाला हूँ। फरिशतें , जो जिन्नात का बाहमी कुशतों ख़ुन व इवरतनाक अन्जाम देख चुके थे , कहने लगे, माबूद क्या तू ऐसे को अपना खलीफा मुकर्रर करेगा जो ज़मान पर ख़ुरेंज़ी  और फसाद बरपा करें हांलाकि हम तेरी तसबीह और तक़दीस करते हैं। जवाब मिला कि मेरी सारी हिक्कमते राज़ में है और जो कुछ़ मैं जानता हुँ वह तुम नही जानते। फ़रिश्ते ख़ामोश हो गये।
    दुबारा फिर एलान हुआ कि मैं मिट्टी से एक मक़सुस  मख़लूक़ (इन्सान) को पैदा करने वाला हूँ ,और देखों  जब में इसका पुतला तैयार कर के इसमें रुह दाखिल करु तो तुम उसके सामने अपनी अपनी पेशानियां सजदें में रख देना। इस ऐलान को भी तमाम मलाएका ने सुना और किसी ने इन्कार नहीं किया ।
    अब ख़ालिक़ ने अपनी क़ुदरते खास के इन्तेज़ाम से नरम और सख्त शिरीं और शोराज़ार , हमवार व नाहमवार ज़मीन से मिट्टी जमा की और उसे पानी में इतना भिगोया कि वह साफ हो कर ऩिथर गयी, और तरी से इतना गूँधा की उसमें लस पैदा हो गया , और उससे एक  ऐसा पैकर बनाया जिसमें जोड़ है, मोड़ है, आज़ा है, और मुख्तलिफ हिस्से हैं, फिर उसे यहां तक सुखाया कि थम सकें और उसे यहा तक सुखाया कि वह ख़न्ख़नाने लगें। फिर एक वक्तें मुअय्यन और मुददतें मुकर्ररा तक उसे युहीं रहनें दिया , फिर उसमे रुह फूंकी तो वह ऐसे इन्सान की सूरत में उठ खड़ा हो गया जो कवाए ज़ेहनी तो हरकत देने वाला , फिकरी जौलानियों को बरुए कार लानें वाला , आज़ा व जवारे से खिदमत लेने वाला , हाथो और पैरों को चलाने वाला , और एसी शिलाख्त का मालिक है जिसके ज़रियें वह हक़ व बातिल में तमीज़ कर सकें.।
    मुल्ला बाकिर मजलिसी अलैहिर्रहमा ने सै0 इब्ने ताऊस और उन्होने मुसफे इदरीस के हवाले से तहरीर फरमाया है कि यक शम्बें की सुबह को अल्लाह ताआला कि वह तीनतें आदम के अजज़ा को बाहम मख़लूत करके ख़मीर करे, चुनांचें इस फरिश्ते नें 40 साल तक उस मिट्टी को गुँधा , फिर 40 साल में वह लसदार हुई, उसके बाद 40 साल ही हज़रत आदम का पुतला तैयार हुआ।
    मज़कूरा रवायत से पता चलता है कि इन्सान के पैकरे ख़ाक़ी मुद्दते तख़लीक़ 120 बरस है। अब इस सजदे की मन्ज़िल मलाएका के सामने थी । जिसके लिए हज़रत आदम की खिलकत से कल्ब परवरदिगारे आलम की तरफ से ऐलान हो चुका था । चुनांचे बरोज़े जुमा ख़ल्लाके आलम ने हज़रत आदम के पैकरे ख़ाकी में अपनी पसन्दीदा रुह उन्हें एक जीते जागते और ब शऊर इन्सान की शक्ल में फरिश्तों के सामने पैश कर दिया। हुक्में खालिक़ के मुताबिक़  मलायका ने अपनी पेशानियाँ सजदें में रख दी लेकिन इबलिस नें यह कह कर इन्कार कर दिया कि मैं इस मख़लूक़ को सजदा नहीं करुंगा , इस लिए की इसकी ख़िलक़त मिट्टी से हुई है और मेरी ख़िलक़त आग से  , जो मिट्टी से बहरहाल अफ़ज़ल है, इबलिस का यह इस्तेकबार ,यह ग़ुरूर और यह इन्कार ग़ज़बे इलाही का सबब बना और परवरदिगार ने उसे अपनी जवारे रहमत से और मलाएका की सफों से निकाल कर मरदूदें बारगाह करार दे दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि उसकी 4000 साल की इबादत व रियाज़त खाक़ में मिल गयी। इब्लिस मलाएका की सफ़ो से बाहर तो हो गया लेकिन उसने हिम्मत नही हारी , बल्कि परवरदिगार से उसने इन्सान की अज़मत और बरतरी को शिकस्त देने के लिए कयामत तक की ज़िन्दगी और मोहलत लेली और कहा कि मैं तेरी इस मखलूक़ और उसकी नसलों को गूमराह करके यह साबित कर दूगा कि यह अज़मत और बलन्दी का मुस्तहक नही है जो तेरी तरफ़ से उसे अता की गयी है। परवरदिगार ने भी उसे यह कह कर उसे ज़िन्दगी और मोहलत दे दी कि उस मख़लूक़ की नस्ल में मेरे कुछ़ ऐसे भी होंगे जो नेकी और बशरीयत की उस मन्ज़िले कमाल पर फ़ायज़ होंगे जहाँ तक तेरी रसाई ग़ैर मुम्किन है।
    हज़रत आदम को आदम इसलिए कहा जाता हैं कि वह अदीमुल अर्ज़ यानी ज़मीन की मिटटी से ख़ल्क़ हुए चुँकि उनकी खिलक़त में नर्म और सख्त, शीरी व शोर , हमवार व नाहमवार ज़मीन की मिटटी इस्तेमाल हुई  है इसलिए इन्सानों मे मुखतलिफ़ रंग और मुख़तलिफ मिजाज़ के इन्सान पाए जाते है। सिनफे निसवां की पहली फर्द , हवा की खिलकत उस मिटटी से हुई जो हज़रत के पहलू और पसलियां बनाने से बच गयी थी। हज़रत हव्वा को हज़रत आदम अ0 का शरीके जिन्दगी क़रार दिया और अर्श पर दोनो का निकाह हुआ ।
    परवरदिगार ने इन दोनों को सुकूनत का हक़ दिया और तमाम अनवाओ अक़साम के फल और मेवे जात खाने की इजाज़त दी, लेकिन एक मखसूस दरख्त के बारे में मना कर दिया कि इस के नज़दीक न जाना।
    इबलीस चूँकी हज़रत आदम अ0 ही की बदौलत  मरदूदे बारगाहे इलाही क़रार पाया था इसलिए वह इनका दुश्मन था और उससे हर वक्त यह फिक्र दामनगीर रहती थी कि उन्हे किस तरह जन्नत से निकलवाया जाए। आख़िर कार हव्वा के ज़रिये वह हज़रत आदम को समझाने में कामयाब हो गया कि ममनुआ दरख्त के नज़दीक गये बग़ैर वह अगर उसका फल खाए तो कोई मुज़ाएका नही है, चुनांचें आदम बीवी के कहने पर अमल कर बैठें और इबलिस अपने मक़सद में कामयाब हो गया ।
    इस ममनुआ दरख्त का चखना था कि जन्नत के लिबास आदम व हव्वा के जिस्मों से उतर गये और वह आसमान की बलन्दी से बेदख़ली के बाद ज़मीन की पसती में फेक दिये गये।
    आदम व हव्वा ने जन्नत से निकल कर दुनिया के जिस मुकाम पर पहले पहल अपने कदमों को रखा वह सरज़मीनें हिन्द की वादी सरानदीप है, यहां से  दोनों ने मक्के की तरफ हिजरत की । आदम कोहे सफा पर पहुँचे और हव्वा कोहे मरवा पर पहुँची। यहाँ पहुच कर आदम और हव्वा ने अपने उस फेल पर जो शैतान के कहने से जन्नत में सरज़द हुआ था , तौबा व अस्तग़फार और गिरीयाज़ारी शुरु की, जिसे ख़ुदा ने 300 बरस के बाद पंजतन अ0 के नामों की बरकत से कुबूल फरमाया और जिबराईल को हुक्म दिया की वह एक ख़ैमा जन्नत से ले जाएं और  उसे ज़मीन पर नसब कर दें जो खानाए काबा के लिए मखसुस की गयी है। जिबराईल आये उन्होने ख़ैमा नसब किया और उसके हाथ ही उन्होने हुदुदे काबा के  चारों कोनों पर पत्थर नसब कर के हद बन्दी कर दी । हुक्में इलाही के मुताबिक़ जिबराईल ने उन पत्थरों  में से एक कोहे मरवा , एक कोहे सफा एक कोहे तूर और एक को , जबलूस सलाम (नजफ़े अशरफ़) से लिया। फिर उन्होने हजरे असवद को नसब किया जो जन्नत से आया था और कोहअहुक़बीस पर बतौरे अमानत रखा हुआ था । इस पत्थर के बारे में बाज़ मोअर्रेखीन का बयान है कि यह एक फ़रिश्ता था जो अहदे मीसाक़ का अमीन था , चुनाँचें ख़ुदा ने चाहा की यह अहद ज़मीन पर जारी हो लिहीज़ा उसने फरिश्ते को हजरे असवद की शक्ल में तबदील कर दिया और  खाना-ए-काबा के लिए मख़सूस कर दिया कि लोग अपनें अहद व पैमान को इसके ज़रिये याद करते रहें ।
    हज़रत आदम ने जिबराईल के साथ हुदूदें हरम का तवाफ़ किया और बाद में चारों कोनों पर नस्ब करदीं। पत्थरों की बुनियाद पर काबा की दीवारों को बलन्द किया । अल्लाह ने अपने इस पहले नब को जरुरियाते ज़िन्दगी की हर शै के इल्म से आरासता करके दुनिया में भाजा था लिहाज़ा वह मुतमईन थे। लेकिन सबसे बड़ा मसला उनके सामने अफ़जा़इशे नस्ल का था । क्योकिं नवये बशर में सगे  बहन और भाई के दरमियान सुन्नते तजवीज़ का जारी होना दुरूस्त न था, इस मुशकिल को खुदा ने हुरों के ज़रिये आसान कर दिया जैसा कि तारीख़ बताती है  कि हज़रत आदम के फ़रज़न्द हज़रत शीस का नीकाह नज़ला नामी एक हूर से हूआ था और दुसरे बेटें आसिफ़ का निकाह मन्ज़ला से हूआ था और वह भी हूर थी । इस तरह हज़रत आदम की नस्ल आगें बढ़ी और फली फूली ।
हज़रत आदम अ0 के यूं तो बहुत से बेटे थे मगर हज़रत शीस अपने बाप के कमालात के हामिल थे लिहाज़ा वही उनके वसी और जानशीन क़रार पाए. उनके अलावा दुसरे बेटों में दो भाई हाबील व क़ाबील थे जो सिफ़ात और किरदार में एक दुसरे के मुखालिफ थे यानि हाबील इन्तेहाई नेक ख़सलत थे और क़ाबील इन्तेहाई बद तीनत। नेकियों की बिना पर बाप की चश्मे इल्तेफ़ात हाबील पर ज़्यादा रहती थी इस लिए क़ाबील उनके लिए अपने दिल में बुग़ज़ो हसद रखता था ।
एक रवायत में यह है कि हज़रत आदम ने हाबील को अपना वसी बनाने का इरादा ज़ाहिर किया था, इस पर क़ाबील बेहद नाराज़ हुआ और उसने ये ख्वाहीश ज़ाहिर की  कि मुझे वसी बनाया जाए । इस पर हज़रत आदम ने फैसला किया कि तुम दोनों भाई ख़ुदा की राह में अपनी अपनी क़ुबानियां पेश करो, जिस की क़ुरबानी क़ुबूल हो जाएगी वही मेरा वसी होगा ।
इस वक्त शरफे क़ुबूलियत का मेयार यह था कि आसमान से एक आग का शोला उतरा था और वह क़ुरबानी को जलाकर खाक़ कर देता था । चुनांचे दोनो भाईयों ने अपनी अपनी क़ुरबानियों को बारगाहे इलाही में पेश की । ख़ुदा ने हाबील की क़ुरबानी क़ुबूल कर ली और क़ाबील की कफे अफसोस मल कर रह गया । उसी वक्त से क़ाबील हाबील का जानी दुश्मन बन गया । एक दिन जब हाबील जंगल में अपनी बकरीयां चरा रहे था तो क़ाबील ने मौक़ा पाकर क़तल कर दिया । यह पहला इन्सानी ख़ुन था जो ज़मीन पर बहाया गया ।
इस इरतेकाबे क़त्ल के बाद क़ाबील को यह फिक्र दामनगीर हो गयी की अब लाश को क्या किया जाए । इतने में दो कव्वे लड़ते हुए ज़मीन पर गिरे और उनमें एक ने दुसरे को हलाक़ कर दिया । फिर उसने अपनी चोँच और पंजों से ज़मीन में एक गडठा खोदा और मरे हुए कव्वे को उसी में रख कर दफ़न कर दिया । क़ाबील यह माजरा देख रहा था चुनांचे उसने भी यही तरीक़ा अपनाया और एक गडठा खोद कर हाबील की मय्यत को उसमें दफ़न कर दिया ।
जब हज़रत आदम को यह पता चला कि क़ाबील ने हाबील को क़त्ल कर दिया तो वह इस क़दर रोए कि ज़मीन आसुओं से तर हो गयी । तबरी व क़ामिल वग़ैरह में है कि इस सानिहे ग़म पर आदम ने गिरया भी किया और चन्द अशआर नज़म करके नौहा भी पढ़ा ।
तारीख़ की किताबों मे ये भी मिलता है कि आग ने जब क़ाबील की क़ुरबानी को ठुकरा दिया और हाबील क़त्ल हो गये तो क़ाबील ने एक आतिश कदे की दाग़ बेल रखी और वहीं से आतिश परसती का आग़ाज़ हूआ जो आज भी जारी है ।
हज़रत आदम की उम्र जब 230 बरस की हुई तो हज़रत शीस पैदा हुए और जब 636 बरस की उम्र मे दुनिया से रेहलत हुई तो उस वक़्त आप की  ओंलादों में(पोते, परपोते) की तादाद 40000 तक पहुँच गई थी मगर आप ने उन लोंगो को बग़ैर अपने ख़लीफा के नही छ़ोड़ा और न उनको मौक़ा दिया कि वह अपना सरदार ख़ुद मुक़र्रर करें चुनांचे अपनी वफात से क़ब्ल उन्होने अपने फरज़्नद शीस को बूला कर तहरीरी तौर पर अपना वली-ए-अहद मुकर्रर कर दिया । और उन्होने यह वसीयत कर दी कि क़ाबील और उनकी अवलादों से पोशीदा रखें ।
जिस तरह खुदा ने आदम की ख़िलकत के मामले में खलीफ़ा मुनतखब करने का एख़तेयार फरिश्तों को नही दिया उसी तरह खिलाफ़त के बारे में हज़रत आदम ने किसी इन्तेखाब का इख्तेयार अपनी अवलादों को नही दिया और तहरीर लिख कर यह सराहत फ़रमादी कि हर नबी ज़बानी या तहरीरी तौर पर अपना ख़लीफा व जानाशीन मुक़र्रर कर सकता है । अब इसके बाद कोई जमाअत अपने इन्तेखाब , शुरा या इस्तेख़लाफ़ की बुनयाद पर किसी को ख़लीफ़ा बनाती है या किसी नबी को तहरीरी वसीअत में माआने होती है तो उसका यह फेल क़तई तौर पर सीरते आदम के ख़िलाफ़ है ।
मोअर्रिख अबुलफ़ेदा का कहना है कि हज़रत आदम 6216 बरस क़बल हिजरत नबवी दुनिया में वारिद हुए थे और 636 बरस की उम्र  में आप का इन्तेक़ाल हुआ । दीगर किताबों में है कि हज़रत ने 630 बरस की उम्र में जुमें के दिन इस दुनिया से रेहलत की । जिबराईल और उनके साथ कुछ़ मलाएका ने उन्हें ग़ुस्ल व कफ़न दिया, हज़रत शीस ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और उनके जसदे ख़ाकी को एक ताबुत में रखकर मक्का की सरज़मीन पर दफन कर दिया। हज़रत आदम के एक बरस के बाद हज़रत हव्वा का इन्तेका़ल हुआ। और वह भी अपने शौहर के पहलू में दफन हुई। जब तुफाने नुह आया तो हज़रत आदम के ताबूत को निकाल कर नूह अ0 ने अपनी कश्ती मे रख लिया था । तुफान ख़त्म हुआ तो वह ताबूत नजफ में अमीरुल मोमनीन हज़रत अली अ0 के मजारे मोक़ददस के क़रीब दफ़न किया गया । कहा जाता है  कि हज़रत आदम का क़द पैंतीस  35 गज  सत्तर हाथ था । नव्यैते सजदा ।
मलायका ने हज़रत आदम अ0 को जो  सजदा किया उसके बारे में उल्माए फ़रीक़ैन का इत्तेफाक़ है कि वह सजदा ताज़ीमी था। बैज़ावी रक़म तराज़ है कि परवरदिगार ने इसलिए फरिश्तो को आदम के सजदे का हुक्म दिया कि वह फज़िलते आदम के अमलन मुतारिफ हो जाए और उन्हें इस बात का यक़ीन हो जाए कि हम ने आदम के बारे मे जो कहा था वह दुरुस्त न था । शरई नुक्ते नज़र से सजदा दर अस्ल ख़ुदा के लिए था और आदम की हैसियत उस वक्त क़िबले जैसी थी, यानि आदम को सजदा ताज़ीमी था कि यूसुफ़ के भाईयो  ने यूसुफ़ को सजदा मिस्र में किया ।
तफ़सीरे साफ़ी मे है कि चूंकि हज़रत आदम अ0 के सुल्ब मे मोहम्मद व आले मोहम्मद का नूर था जो तमाम मखलूक़ात से यक़ीनन अफज़ल है लिहाज़ा खुदा ने मलायका को सजदे का हुक्म दे कर उनकी अज़मत को ज़ाहिर किया, यानि जो सजदा किया गया वह इस नूर के लिए ताज़ीमन इकरामन ख़ुदा के लिए अबुदियतत और आदम के लिए एताअतन था । तबरी में है कि आदम के लिए फरिश्तों का सजदा ताज़ीमी था क्योकि सजदा अल्लाह के सिवा और किसी को नही किया जो सकता और उस वक़्त आदम को उसी तरह क़िबले की हैसियत हासिल थी जिस तरह हमारे लिए खानें काबा है , काबे का शरफ़ ज़ाहिर करने के लिए हमारी पेशानियां काबे की तरफ झुकाई जाती है। आदम का शरफ़ ज़ाहिर करने के लिए मलाएका की पेशानियां उनकी तरफ झुकाई गयी । शेख अलहिन्द मौलाना मोहम्मद हसन देव बन्दी लिखते है कि जब हज़रत आदम का खलीफा होना मुसल्लम हो चुका तो फरिश्तों को और उनके साथ जिन्नातों को हुक्म हुआ कि हज़रत आदम की तरफ सजदा करें और उन को  सजदए माबूद का क़िबला बनाए जैसा कि सलातीन अव्वलन अपना वली अहेद मुक़र्रर करते है फिर रियाया को नज़रें पेश करने का हुक्म देते है ताकि किसी को सरताबी की गुन्जाइश न रहें ।
अजाएबुल क़सम मे है कि फरिश्तो ने हुक्में सजदा की मोकम्मल तामील की और सौ साल बरायतें पाँच सौ साल सजदे में पड़े रहे जब सजदे से सर उठाया तो देखा कि इबलीस सामने खड़ा है और उसकी शक्ल व सूरत बदल गयी है , यानि वह मलक के बजाए देव की सूरत में कर दिया गया है यह देख कर मलाएका कमाले इताअते बारी और शुक्रे ख़ुदा वन्दी में फिर चले गये, मलाएका के इन्ही दोनों सजदों की वजह से नमाज़ की हर रकत में दो सजदे क़रार दिये गये है ।