महदी (अ.) का मुनकिर काफ़िर है।

हाफ़िज़ क़न्दोज़ी हनफ़ी यनाबी उल मवद्दत में जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी से रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह (स.) ने फ़रमाया: जिस ने महदी के ख़ुरूज से इंकार किया उसने (मुहम्मद और ईसा) पर नाज़िल शुदा उमूर का इंकार किया और जिसने दज्जाल के ख़ुरूज का इंकार किया उसने भी कुफ़्र किया।[1]

यनाबी उल मवद्दत में हुज़ैफ़ा ए यमानी से रिवायत की गई है कि हुज़ैफ़ा बयान करते हैं कि मैने रसूलल्लाह (स.) को यह फ़रमाते सुना: इस उम्मत के ज़ालिमों पर वाये हो कि वह किस तरह मुसलमानों को क़त्ल करेगें और उनको अपने वतनों से निकाल बाहर करेगें, सिवाये उस शख़्स के जो उनकी बात मानेगा और पैरवी करेगा। पस मोमिन मुत्तक़ी उनके साथ ज़बानी तौर पर गुज़ारा करेगें और दिल से उनके साथ न होगें। लेकिन जब ख़ुदावन्दे आलम इस्लाम को क़ुव्वत देना चाहेगा तो हर एक जाबिर व ज़ालिम को ख़त्म कर डालेगा क्यों कि वह हर चीज़ पर क़ादिर है। वह उम्मत के फ़ासिद होने के बाद उसकी इस्लाह फ़रमायेगा। ऐ हुज़ैफ़ा अगर दुनिया से सिर्फ़ एक रोज़ बाक़ी रहेगा तो ख़ुदा उसको इतना तूलानी कर देगा कि मेरे अहलेबैत से एक शख़्स हुकुमत करेगा और ख़ुदावन्दे आलम अपने वादे के ख़िलाफ़ नही करता और वह अपने वादे पर क़ुदरत रखने वाला है।

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[1]-कुफ़्र के तीन दर्जे हैं:1- ख़ुदावंदे आलम की ज़ाते गिरामी का इंकार करना। 2- ख़ुदावंदे आलम की नाज़िल शुदा चीज़ों का इंकार करना। 3- नेमते ख़ुदावंदी का इंकार करना। हदीसे मज़कूरा में इसी कुफ़्र का बयान किया गया है। इस लिए इमाम मेहदी (अ.) को ख़ुदा ने हक़ क़रार दिया है। मेहदी (अ.) का इंकार करना रसूलल्लाह (स) के इंकार के मुतारादिफ़ है। इसलिए कि मेहदी (अ) के ज़हूर की ख़बर हज़रत (स.) ने दी है। (मुअल्लिफ़)