ग़ैबत

प्रियः पाठकों !हज़रत आदम (अ. स.) से लेकर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) तक सभी नबियों (स.) के मक़सद को पूरा करने वाले, अल्लाह के आख़िरी वली हज़रत इमाम महदी (अ. स.)हैं उनकी ग़ैबत उनकी ज़िन्दगी का एक महत्वपूर्म हिस्सा है।


ग़ैबत का अर्थ

सबसे पहली, उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण बात यह है कि ग़ैबत का अर्थ “ किसी चीज़ का आँखों से छुपा रहना ” है, उसका अनुपस्थित होना नही है। अतः इस हिस्से में उस ज़माने की बातें है जब इमाम महदी (अ. स.) लोगों की नज़रों से छिपे थे। यानी लोग आप को नहीं देख पाते थे जब कि आप लोगों के बीच में ही रहते थे, और उन्हीं के बीच ज़िन्दगी बसर किया करते थे। इस वास्तविक्ता का वर्णन मासूम इमामों (अ. स.) की हदीसों व रिवायतों में विभिन्न तरीकों से हुआ है।

हज़रत इमाम अली (अ. स.) फरमाते हैं :

अल्लाह की क़सम ! अल्लाह की हुज्जत लोगों के बीच रहती है, रास्तों गलियों व बाज़ारों में मौजूद होती है, लोगों के घरों में आती जाती है, पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरी ज़मीन का भ्रमण करती है, लोगों की बातों का सुनती है और उन पर सलाम भेजती है, वह सबको देखती है लेकिन लोगों की आँखें उसे उस वक़्त तक नहीं देख सकतीं जब तक ख़ुदा की मर्ज़ी और उस का वादा पूरा न हो जाये...[1]

इमाम महदी (अ. स.) के लिए ग़ैबत की एक दूसरी किस्म भी बयान हुई है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के दूसरे ख़ास नायब बयान फरमाते है :

इमाम महदी (अ. स.) हज के दिनों में हर साल हाज़िर होते हैं, वह लोगों को देखते हैं और उनको पहचानते हैं। लोग उनको देखते हैं लेकिन नही पहचानते ...।.[2]

इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत दो प्रकार की हैः वह कुछ जगहों पर लोगों की नज़रों से छिपे रहते हैं और कुछ जगहों पर लोगों को दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी पहचान नहीं हो पाती है, जो भी हो यह तय है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) लोगों के बीच मौजूद रहते हैं।


ग़ैबत का इतिहास

ग़ैबत में और छुपकर ज़िन्दगी व्यतीत करना कोई ऐसी बात नहीं है जो सिर्फ़ हज़रत इमाम महदी (अ. स.) से ही संबंधित हो, बल्कि कुछ रिवायतों से ये नतीजा निकलता है कि बहुत से नबियों (अ. स.) की ज़िन्दगी का एक हिस्सा ग़ैबत में गुज़रा है और उन्होंने एक समय तक छुपकर जीवन व्यतीत किया है और यह चीज़ ख़ुदा वन्दे आलम की मर्ज़ी के अनुसार थी किसी ज़ाती और खानदानी हित के लिए नही।

ग़ैबत, अल्लाह की एक सुन्नत है..[3] जो बहुत से नबियों (अ. स.) की ज़िन्दगी में देखी गई है, जैसे जनाबे इदरीस, जनाबे नूह, जनाबे सालेह, जनाबे इब्राहीम, जनाबे यूसुफ़ जनाबे मूसा, जनाबे शुऐब, जनाबे इल्यास, जनाबे सुलेमान, जनाबे दानियाल और जनाबे ईसा (अ. स.) और विभिन्न हालतों के कारण इन सब नबियों (अ. स.) का जीवन कई सालों तक ग़ैबत में लोगों की नज़रों से छुपकर व्यतीत हुआ है..।[4]

इसी वजह से हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत की रिवायतों में (ग़ैबत) को नबियों (अ. स.) की सुन्नत के रूप में याद किया गया है और हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ज़िन्दगी में नबियों (अ. स.) की सुन्नत का जारी होना ग़ैबत की दलीलों में माना गया है।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :

बेशक हमारे क़ाइम (इमाम महदी (अ. स.) के लिए ग़ैबत होगी और उसकी मुद्दत बहुत लंबी होगी। जब रावी ने पूछा कि ऐ रसूल के बेटे ग़ैबत की वजह क्या है तो हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया : ख़ुदा वन्दे आलम का इरादा यह है कि ग़ैबत की जो सुन्नत उसने नबियों (अ. स.) के लिए रखी है वह सुन्नत उनके बारे में भी जारी रहे..।[5]

प्रियः पाठकों ! उपरोक्त विवरण से ये बात भी स्पष्ट हो जाती है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के पैदा होने से वर्षों पहले से उनकी ग़ैबत का मसला बयान होता रहा है और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से लेकर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) तक सब इमामों ने उनकी ग़ैबत, उनके ज़माने में घटित होने वाली घटनाओ और उनकी विशेषताओं का भी वर्णन किया है। यह ही नही बल्कि ग़ैबत के ज़माने में मोमिनों की ज़िम्मेदारियों का भी वर्णन किया हैं..।[6]

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

महदी (अ. स.) मेरी ही नस्ल से होगा... और वह ग़ैबत में रहेगा, लोगों की हैरानी व परेशानी इस हद तक बढ़ जायेगी कि लोग दीन से गुमराह हो जायेंगे और फिर जब अल्लाह का हुक्म होगा तो वह चमकते हुए सितारे की तरह ज़हूर करेगा और ज़मीन को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर (अत्याचार) से भरी होगी...[7]

 

ग़ैबत की वजह

हमारे बारहवें इमाम और अल्लाह की आख़िरी हुज्जत हज़रत इमाम महदी (अ. स.) क्यों ग़ैबत का जीवन व्यतीत कर रहे हैं और क्या वजह है कि हम इमाम के ज़हूर की बरकतों से महरुम (वंचित) हैं ?

प्रियः पाठकों ! इस बारे में बहुत ज़्यादा बात चीत होती है और इस से संबंधित बहुत सी रिवायतें भी मौजूद हैं, लेकिन हम यहाँ इस सवाल का जवाब देने से पहले एक बात की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।

हम इस बात पर ईमान रखते हैं कि ख़ुदा वन्दे आलम का झोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम हिकमत व मसलेहत (अक़्लमंदी और भलाई व हित) से खाली नहीं होता है, चाहे हम उन हितों को जानते हों या न जानते हों और इस संसार की हर छोटी बड़ी घटना ख़ुदा वन्दे आलम की युक्ति और उसी के इरादे से घटित होती है। उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण घटना हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत भी है। अतः उनकी ग़ैबत भी हिकमत व मसलेहत के अनुसार है अगरचे हम उसके मूल कारण को न जानते हों।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :

बेशक साहिबुल अस्र (हज़रत इमाम महदी (अ. स.)) के लिए ऐसी ग़ैबत होगी जिस में बातिल का का हर पुजारी शक व शुब्हे का शिकार हो जायेगा।

जब रावी ने इमाम की ग़ैबत की वजह मालूम की तो इमाम (अ. स.) ने फरमाया :

ग़ैबत की वजह एक ऐसी चीज़ है जिस को हम तुम्हारे सामने बयान नहीं कर सकते, ग़ैबत अल्लाह के राज़ों में से एक राज़ है। लेकिन चूँकि हम जानते हैं कि ख़ुदा वन्दे आलम हिकमत वाला है और उसके सब काम हिकमत के आधार होते हैं, चाहे हम उनकी वजह न जानते हो..[8]

इंसान अधिकाँश अवसरों पर ख़ुदा वन्दे आलम के कामों को हिकमत के अनुसार मानते हुए उनके सामने अपना सर झुका देता है, लेकिन फिर भी कुछ चीज़ों के राज़ों को जानने की कोशिश करता है ताकि उनकी हक़ीक़त को जान कर उसे और अधिक इत्मिनान हो जाये। अतः इसी इत्मिनान के लिए हम इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत की हिकमत और उसके असर की तहक़ीक शुरु करते हैं और इस बारे में बयान होने वाली रिवायतों की तरफ़ इशारा करते हैं।


जनता को अदब सिखाना

जब उम्मत अपने नबी या इमाम की क़दर न करे और अपनी ज़िम्मेदारियों को न निभाये, बल्कि इसके विपरीत उसकी अवज्ञा करे तो ख़ुदा वन्दे आलम के लिए यह बात उचित है कि उनके रहबर, हादी या इमाम को उन से अलग कर दे, ताकि वह उस से अलग रह कर अपने गरेबान में झाँके और उस के वजूद की कद्र व क़ीमत और बरकत को पहचान लें। अतः इस सूरत में इमाम की ग़ैबत उम्मत की भलाई में है चाहे उम्मत को यह बात मालूम न हो और वह इस बात को न समझ सकती हो।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) से रिवायत है :

जब ख़ुदा वन्दे आलम किसी क़ौम में हमारे वजूद से खुश नही होता तो हमें उन से अलग कर लेता है...।[9]


लोगों से अनुबंध किये बग़ैर काम करना

जो लोग किसी जगह इंकेलाब (परिवर्तन) लाना चाहते हैं, वह अपने इंकेलाब के शुरू में अपने मुखालिफ़ों से कुछ समझौते करते हैं ताकि अपने मक़सद में कामयाब हो जायें, लेकिन हज़रत इमाम महदी (अ. स.) वह महान सुधारक व उद्धारक हैं जो अपने इंकेलाब और न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत स्थापित करने के लिए किसी भी ज़ालिम व अत्याचारी से किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करेंगे। क्यों कि बहुत सी रिवायतों में मिलता है कि उनको सभी ज़ालिमों से खुले आम मुक़ाबेला करने का हुक्म है। इसी वजह से जब तक इस इंक़ेलाब का रास्ता हमवार नहीं हो जाता उस वक़्त तक वह ग़ैबत में रहेंगे ताकि उन्हें अल्लाह के दुश्मनों से को ई समझौता न करना पड़े।

ग़ैबत की वजह के बारे में हज़रत इमाम रज़ा (अ. स.) से मन्कूल हैः

उस वक़्त जब कि इमाम महदी (अ. स.) तलवार के ज़रिये क़ियाम फरमायेगे तो आप का किसी के साथ अहदो पैमान न होगा...[10]

 

लोगों का इम्तेहान

ख़ुदा वन्दे आलम की एक सुन्नत लोगों का इम्तेहान करना भी है। वह अपने बन्दों को विभिन्न तरीक़ों से आज़माता है ताक़ि हक़ के रास्ते में उनका अडिग व अटल रहना स्पष्ट हो सके। जबकि वास्तविक्ता यह है कि उस इम्तेहान का नतीजा ख़ुदा वन्दे आलम को पहले से मालूम होता है लेकिन इम्तेहान की इस भट्टी में तपने के बाद बन्दों की हक़ीक़त स्पष्ट हो जाती है और वह अपने वजूद (अस्तित्व) के जौहर को पहचान लेते हैं।

हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम (अ. स.) ने फरमाया :

जब मेरा पाँचवां बेटा गायब हो जाये तो तुम लोग अपने दीन की हिफ़ाज़त करना ताकि कोई तुम्हें तुम्हारे दीन से विचलित न कर सके, क्यों कि साहिबे अम्र (हज़रत इमाम महदी (अ. स.)) के लिए ग़ैबत होगी जिस में उनके मानने वाले अपने अक़ीदे से फिर जायेगे और उस ग़ैबत के ज़रिये ख़ुदा वन्दे आलम अपने बन्दों का इम्तेहान करेगा..[11]

 

इमाम की हिफ़ाज़त

नबियों (अ. स.) के अपनी क़ौम से अलग होने की एक वजह अपनी जान की हिफ़ाज़त भी है। नबी (अ. स.) अपनी जान बचाने के लिए कुछ खतरनाक मौक़ों पर लोगों की नज़रों से छुप जाते थे ताकि किसी उचित मौक़े पर अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करें और अल्लाह के पैग़ाम को पहुँचायें। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) मक्क ए मोज़्ज़मा से निकल कर एक गार में छुप गये थे। लेकिन हमेशा याद रखना चाहिए कि यह सब ख़ुदा वन्दे आलम के हुक्म और इरादे से होता था।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) और उनकी ग़ैबत के बारे में भी कुछ रिवायतों में यही बात बयान हुई है। हम यहाँ पर उनमें से कुछ रिवायतों को नमूने के तौर पर लिख रहे हैं। जैसे ----

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :

इमामे मुन्तज़र (जिसका इन्तेज़ार किया जाता है उसे मुन्तज़र कहते हैं) अपने क़ियाम (आन्दोलन) से पहले एक लंबे समय तक लोगों की नज़रों से गयायब रहेंगे।

जब इमाम (अ. स.) से ग़ैबत की वजह मालूम की गई तो उन्होंने फरमाया :

उन्हें अपनी जान का खतरा होगा..।[12]

शहादत की तमन्ना अल्लाह के सभी नेक बन्दों के दिलों में होती है, लेकिन ऐसी शहादत जो दीन, समाज सुधार और अपनी ज़िम्मेदारियों निभाते हुए हो। इसके विपरीत अगर किसी का क़त्ल होना उसके मक्सद के ख़त्म हो जाने का कारण बने तो ऐसे मौक़े पर क़त्ल होने से डरना और बचना अक़्लमन्दी का काम है। अल्लाह के आख़िरी ज़ख़ीरे यानी बारहवें इमाम हज़रत महदी के क़त्ल होने का मतलब यह हैं कि खाना ए काबा गिर जाये सारे नबियों और वलियों (अ. स.) की तमन्नाओं पर पानी फिर जाये और न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत की स्थापना के बारे में ख़ुदा का वादा पूरा न हो।

यह बात भी उल्लेखनीय है कि कुछ रिवायतों में ग़ैबत के कुछ अन्य कारणों का भी वर्णन हुआ हैं, परन्तु हम संक्षिप्तता को ध्यान में रख कर और विस्तार से बचने के लिए यहाँ उनका उल्लेख नहीं कर रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ग़ैबत अल्लाह के राज़ों में से एक राज़ है और इस की असली व आधारभूत वजह इमाम (अ. स.) के ज़हूर के बाद ही स्पष्ट होगी। हम ने हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत के कारणों के बारे में जिन चीज़ों का वर्णन किया है, उन चीज़ों का इमाम (अ. स.) की ग़ैबत में असर रहा है।

 


हवाले:

[1] . ग़ैबते नोमानी, बाब 10, हदीस 3, पेज न. 146 ।

[2] . बिहार उल अनवार जिल्द न. 52, पेज न. 152 ।

[3] . कुरआने करीम की बहुत सी आयतों में (जैसे सूरः ए फ़त्ह आयत न. 23, और सूरः ए इसरा आयत न. 77,) अल्लाह की सुन्नत के बारे में बात हुई है, जिन पर ग़ौर करने से यह नतीजा निकलता है कि अल्लाह की सुन्नत का अर्थ खुदा वन्दे आलम के वह अटल और आधारभूत क़ानून हैं, जिनमें थोड़ा भी बदलाव नहीं आ सकता है। यह क़ानून पिछली क़ौमौं में भी लागू थे, आज भी हैं और और आने वाले समय में भी लागू रहेंगे (तफ़्सीरे नमूना, जिल्द न. 17, पेज न. 435, का संक्षेप)।

[4] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब 1, ता 7, पेज न. 254 ता 300,

[5] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 52, हदीस 3, पेज न. 90,

[6] . देखियेः मुन्तखबुल असर, फसल 2. बाब 36 ता 29, पेज न. 312 ता 340

[7] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब25, हदीस 4, पेज न. 536 ।

[8] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 25, हदीस 4, पेज न. 536,

[9] . इलल उश शराए,