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इमाम संसार का केन्द्र होता है

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धार्मिक शिक्षाओं के आधार पर शियों का यह मत है कि इस संसार में मौजूद हर चीज़ के पास अल्लाह का फ़ैज़ इमाम के वास्ता से ही पहुँचता है। इस संसार के निज़ाम में इमाम एक ध्रुव व केन्द्र के समान है तथा संसार का पूरा निज़ाम उसी के चारों ओर घूमता है। उस के वजूद के बग़ैर इस संसार में इंसानों, जिन्नों, फ़रिश्तों ौर संक्षेप में यह कि किसी भी जानदार व बेजान चीज़ का नाम व निशान बाक़ी न रहता।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) से सवाल पूछा गया कि क्या ज़मीन इमाम के बग़ैर बाक़ी रह सकती है ? इमाम (अ. स.) ने जवाब में कहा कि

अगर ज़मीन पर इमाम का वजूद न हो तो वह उसी वक़्त फ़ना हो जाये अर्थात उसका विनाश हो जाये...।

चूँकि वह लोगों तक ख़ुदा के पैगाम को पहुँचाने और लोगों को इंसानी कमालों की ओर की हिदायत करने में वास्ता होता हैं और इस संसार में मौजूद हर चीज़ तक हर तरह का फ़ैज़ व करम उसी के वजूद के ज़रिये पहुँचता है। यह बात स्पष्ट है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने इंसानी समाज की हिदायत शुरु में नबियों (अ. स.) के जरिये और बाद में उन के जानशीनों (इमामों) के ज़रिये की है। लेकिन मासूम इमामों (अ. स.) के कलाम (प्रवचनों) से यह नतीजा निकलता है कि इस संसार में ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से हर छोटे व बड़े वजूद तक जो नेमत और फ़ैज़ पहुँचता है उस में इमाम ही वास्ता बनता है। इससे भी अधिक स्पष्ट रूप में यह कहा जा सकता है कि इस संसार में मौजूद प्रत्येक चीज़ ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से जो कुछ भी प्राप्त करती है वह इमाम के ज़रिये ही उस तक पहुँचती है। यही नही बल्कि उन का ख़ुद का वजूद भी इमाम के ही कारण है और वह अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी प्राप्त करते हैं उस में भी इमाम की ज़ात ही वास्ता (माध्यम) बनती है।

ज़ियारते जामेआ (जो कि हक़ीक़त में इमाम की पहचान के लिए एक अच्छी किताब है) के एक वाक्य में इस तरह से वर्णन हुआ है कि :

”بِکُمْ فَتَحَ اللهُ وَ بِکُمْ يَخْتِمُ وَ بِکُمْ يُنَزِّلُ الغَيْثَ وَ بِکُمْ يُمسِکُ السَّمَاءَ أنْ تَقَعَ عَلَی الأرضِ إلاَّ بِإذْنِهِ.....

ऐ मासूम इमामों ! ख़ुदा वन्दे आलम ने इस संसार का ारम्भ तुम्हारी ही वजह से किया है और वह तुम्हारी ही वजह से उसे आख़िर तक पहुँचाएगा और तुम्हारे ही वजूद की वजह से रहमत की बारिश करता है और तुम्हारे ही वजूद की बरकत से ज़मीन पर आसमान को गिरने से बचाये हुए है, यह सब उसके के इरादे से है।

अतः यह नही कहा जा सकता कि इमाम (अ. स.) के वजूद के असर सिर्फ उन के ज़हूर की सूरत में ही हैं। इसके विपरीत वास्तविक्ता यह है कि उनका वजूद संसार में (यहाँ तक कि उनकी ग़ैबत के ज़माने में भी) अल्लाह की पूरी मख़लूक़ के बीच जीवन का स्रोत है। ख़ुद ख़ुदा वन्दे आलम की मर्ज़ी भी है कि सब से उत्तम व महान और हर प्रकार से पूर्ण वजूद (अर्थात इमाम) अल्लाह की अनुकम्पा को अल्लाह से प्राप्त कर के उसे उसकी अन्य मखलूक़ तक पहुँचाने में वास्ता बने, अतः इस आधार पर इमाम के ग़ायब या ज़ाहिर रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

जी हाँ ! सभी, इमाम (अ. स.) के वजूद के असर से लाभान्वित होते हैं और इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत इस बारे में कोई रुकावट नहीं है। ध्यान देने योग्य बात ये है कि जब हज़रत इमाम महदी (अ. स.) से उनकी ग़ैबत के ज़माने में उनसे लाभान्वित होने के तरीके के बारे में पूछा गया तो उन्होंने फरमाया :

”وَ أمَّا وَجهُ الإنْتِفَاعِ بِي فِي غَيْبَتِي فَکا الإنْتِفَاعِ بِالشَّمْسِ إذَا غَيَّبَتْهَا عَنِ الاٴبْصَارِ السَّحَابَ“] ....

मेरी ग़ैबत के ज़माने में मुझ से उसी तरह फ़ायदा होगा, जिस तरह बादलों के पीछे छिपे सूरज से फायदा उठाया जाता है।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ने अपनी मिसाल सूरज से और अपनी ग़ैबत की मिसाल बादल के पीछे छिपे सूरज की सी दी है। इस मिसाल में बहुत से रहस्य पाये जाते हैं, अतः हम यहाँ पर उन में से कुछ की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।

सौर मंडल (सोलर सिस्टम) में सूरज एक केन्द्र का काम करता है और अन्य सब ग्रह उसी के चारों ओर घूमते हैं, इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का वजूद भी इस संसार के निज़ाम व व्यवस्था में ध्रुवीय स्थान रखता है।

”بِبَقَائِهِ بَقِيَتِ الدُّنْيَا وَ بِيُمْنِهِ رُزِقَ الوَریٰ وَ بِوُجُوْدِهِ ثَبَتَتِ الاٴرْضُ وَ السَّمَاءُ“

उस (इमाम) के बाक़ी रहने की वजह से ही दुनिया बाकी है और उस के वजूद की बरकत से संसार के हर मौजूद को रोज़ी मिलती है और उस के वजूद की वजह से ही ज़मीन और आसमान बाक़ी हैं।

सूरज एक पल के लिए भी अपने प्रकाश की किरणें फैलाने में कंजूसी नहीं करता और हर चीज़ अपनी आवश्यक्ता अनुसार सूरज के प्रकाश से लाभान्वित होती है। इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का वजूद भी समस्त भौतिक व आध्यात्मिक नेमतों को प्राप्त करने का माध्यम है। हर इंसान कमालों के उस केन्द्र से अपने संबंध के अनुसार लाभान्वित होता है।

अगर यह सूरज बादलों के पीछे भी न रहे तो इस इतनी अधिक ठंड हो जायेगी और अंधेरा फैल जायेगा कि कोई भी जानदार ज़मीन पर नहीं रह सकेगा। इसी तरह अगर यह संसार इमाम (अ. स.) के वजूद से वंचित हो जाये (वह ग़ैबत में भी न रहे) तो मुश्किलें, परेशानियाँ, कठिनाईयाँ और विपत्तियाँ इतनी बढ़ जायेंगी कि इंसानी ज़िन्दगी आगे बढ़ने से रुक जायेगी और समस्त प्राणियों का अन्त हो जायेगा।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ने शेख मुफीद अलैहिर्रहमा को एक ख़त लिखा, जिस में उन्होंने अपने शिओं के लिए निमन लिखित पैग़ाम लिखा था।

”اِنَّا غَيْرُ مُهْمِلِيْنَ لِمُرَاعَاتِکُمْ وَ لاٰ نَاسِيْنَ لِذِکْرِکُمْ وَ لَولٰا ذَلِکَ لَنَزَلَ بِکُمُ اللاَّوَاءُ وَ اصْطَلَمَکُمُ الاٴعْدَاءُ]

न हम तुम्हें कभी तुम्हारे हाल पर छोडते हैं और न कभी तुम्हें भूलते हैं, अगर तुम पर हमेशा हमारी तवज्जोह न होती तो तुम पर बहुत सी विपत्तियाँ और बलायें नाज़िल होतीं और दुश्मन तुम को मिटा कर रख देते।

अतः इमाम (अ. स.) के वजूद का सूरज पूरे संसार पर चमकता है और संसार में मौजूद हर चीज़ को लाभ पहुँचता है और उन समस्त प्राणियों के बीच इंसानों को और इंसानों में इस्लामी समाज को और इस्लामी समाज में मुख्यः रूप से शिओं को विशेष ख़ैर व बरकत पहुँचाता है। हम यहाँ पर इस के कुछ नमूने आप की सेवा में पेश कर रहे हैं।

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