रूई, ऊन और कतान के कपड़े

मर्दों के लिये ख़ालिस रेशम के और ज़रतार (चमकीले तारों वाले) कपड़े पहनने हराम हैं और ऐहतियात इस में हैं कि टोपी और जेब वग़ैरह (यानी वह लिबास जो शर्मगाह छुपाने के लिये इस्तेमाल नही होता) भी हरीर (रेशमी) कपड़े का न हो और ऐहतियात यह चाहती है कि अजज़ा ए लिबास जैसे सन्जाफ़ (झालर, गोट) और मग़ज़ी (कोर पतली गोट) भी ख़ालिस रेशम की न हो और बेहतर यह है कि रेशम के साथ जो चीज़ मिली हुई हो वह मिस्ल कतान (एक क़िस्म का कपड़ा) या ऊन या सूत वग़ैरा के हो और उस की मिक़दार कम हो, यह भी ज़रुरी है कि मुर्दा जानवर की खाल का इस्तेमाल न हो चाहे उस की बग़ावत हो गई हो। यही उलमा में मशहूर है नीज़ उन हैवानात का पोस्त न होना चाहिये जिन पर तज़किया जारी नही होता जैसो कुत्ता वग़ैरह और जिन हैवानात का गोश्त हराम है मुनासिब है कि उन की खाल और बाल और ऊन और सींग और दांत वग़ैरह कुल अजज़ा (हिस्से) नमाज़ के वक़्त से इस्तेमाल न हों। समूर (लोमड़ी की तरह का एक जानवर जिस की खाल से लिबाल बनाया जाता है जिसे समूर कहते हैं।), संजाब (एक तरह का सहराई जानवर है जिस की खाल से कपड़ा बनाते हैं।) और ख़ज़ (एक क़िस्म का दरियाई चौपाया है।) के बारे में इख़्तिलाफ़ है और एहतियात इस में हैं कि इज्तेनाब करे गो बिना बर अज़हर संजाब व ख़ज़ में नमाज़ जायज़ है। बेहतर यह है कि जो कपड़े हराम जानवरों के ऊन के कपड़ों के ऊपर या नीचे भी पहने हों उन में भी नमाज़ न पढ़े कि शायद उन में बाल चिपक कर रहे गये हों।

नाबालिग़ बच्चे के वली यानी मालिक के लिये मुनासिब है कि उन को तला व हरीर पहनने से मना करे क्यों कि बसनद मोतबर जनाबे रिसालत मआब (स) से मंक़ूल है कि आप ने हज़रत अली से फ़रमाया ऐ अली, सोने की अंगूठी हाथ में न पहना करो कि वह बहिश्त में तुम्हारी ज़ीनत होगी और जाम ए हरीर न पहनना कि वह बहिश्त में तुम्हारा लिबार होगा।

दूसरी हदीस में फ़रमाया कि जाम ए हरीर न पहनो किहक़ तआला क़यामत के दिन उस के सबब जिल्द (खाल) को आतिशे जहन्नम में जलायेगा।

लोगों ने हजरत इमाम जाफरे सादिक़ (अ) से दरयाफ़्त किया कि क्या यह जायज़ है कि हम अपने अहल व अयाल (बीवी बच्चों) को सोना पहनायें? इरशाद फ़रमाया हां। अपनी औरतों और लौडियों को पहनाओ मगर नाबालिग़ लड़कों को न पहलाओ।

दूसरी हदीस में वारिद है कि आँ हज़रत ने फ़रमाया मेरे वालिद हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) अपने बच्चों और औरतों को सोने चांदी के ज़ेवर पहनाते थे और उस में कोई हरज नही है।

मुमकिन है किइस हदीस में बच्चों से मुराद बेटियां हों और यह भी हो सकता है कि नाबालिग़ लड़के भी इसमें शामिल हों मगर ऐहतेयाते यह है कि लड़कों को सोने को ज़ेवर न पहनायें।