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कपड़े पहनने के आदाब

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कपड़े पहनने के आदाब



ज़्यादा नीचे कपड़े पहनना और आस्तीनें ज़्यादा लंबी रखना और कपड़े को ग़ुरुर की वजह से ज़मीन पर घसीटते चलना मकरूह ऐर क़ाबिले मज़म्मत है।

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) से मंक़ूल है कि जनाबे अमीन (अ) बाज़ार तशरीफ़ ले गये और एक अशरफ़ी (सोने का सिक्का जिसका वज़्न एक तोला होता है।) में तीन कपड़े ख़रीदे पैराहन (लंबा क़ुर्ता) टख़नो तक, लुँगी आधी पिंडली तक और रिदा आगे सीने तकऔर पीछे कमर से बहुत नीचे थी ख़रीदी फिर हाथ आसमान कीतरफ़ उठाये और उस नेमत के बदले अल्लाह तआला की हम्द (तारीफ़) अदा करके दौलतसरा (घर) तशरीफ़ लाये।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया है कि कपड़े वह हिस्सा जो ऐड़ी से गुज़र कर नीचे पहुचे आतिशे जहन्नम में है।

हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) से मंक़ूल है कि हक़ तआला ने जो अपने पैग़म्बर (स) से यह फ़रमाया है कि व सयाबका फ़तह्हिर जिस की लफ़्ज़ी तरजुमा यह है कि अपने कपडों को पाक कर, हालांकि आं हज़रत (स) के कपड़े तो पाक व पाक़ीज़ा हा रहते थे लिहाज़ा अल्लाह का मतलब यह है कि अपने कपड़े ऊचे रखो कि वह निजासत से आलूदा न होने पाये।

दूसरी रिवायत में इसका यह मतलब भी बयान किया गया है कि अपने कपड़े उठा कर चलो ता कि वह ज़मीन पर न घिसें।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से मंक़ूल हैं कि जनाबे रसूले ख़ुदा (स) ने एक शख़्स को वसीयत फ़रमाई कि ख़बरदार, पैराहन और पाजामा बहुत नीचा न करना क्यों कि यह ग़ुरुर की निशानी है और अल्लाह तलाआ ग़ुरुर को पसंद नही करता है। यह रिवायत हसन है (यानी मुसतनद है।)

हदीसे मोतबर में मंक़ूल है कि हज़रते अमीर मोमिनीन (अ) जब कपड़े पहनते थे तो आस्तीनों को खींच खींच कर देखा करते थे और ऊंगलियों से जितनी बढ़ जाती थीं उतनी कतरवा डालते थे।

जनाबे रसूले ख़ुदा (सः) ने हज़र

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