बड़ा आबिद कौन

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम के एक सहाबी जो कि मामूल के मुताबिक हमेशा आप के दर्स में शिरकत किया करते थे और दोस्तों की महफ़िलों में बैठते थे और उनके यहाँ आते जाते थे। एक बार उनको देख़े हुए दोस्तों को बहुत दिन हो गए। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ.) ने अपने असहाब और उनके दोस्तों से मालूम किया, क्या तुम लोग जानते हो कि फ़लाँ शख़्स कहाँ है जो काफ़ी अर्से से देख़ा नहीं गया?

 

एक ने उठ कर अर्ज़ किया, ऐ फ़रज़न्दे रसूल (स.) आजकल वो बहुत तंग दस्त व फ़कीर हो गया है। इमाम (अ.) ने फ़रमाया, फ़िर वोह क्या करता है?

 

उसने जवाब दिया, ऐ फ़रज़न्दे रसूल (स.) वोह कुछ भी नहीं करता, वोह घर के एक गोशे में बैठ कर मुस्तकिल इबादत में मशगूल रहता है।

 

इमाम ने फ़रमाया, फ़िर उसके अख़राजात कैसे पूरे होते हैं?

 

उसने जवाब दिया, उसका एक दोस्त उसके अख़राजात को बरदाश्त करता है।

 

इमाम जाफ़र सादिक ने फ़रमाया, ख़ुदा की कसम उसका यह दोस्त उससे ज़्यादा आबिदतर है।