इस्लाम की शिक्षाऐं
इस्लाम की शिक्षाओं को इन तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है
क- एतिक़ादाती (आस्था से सम्बंधित)
ख- अखलाक़ियाती (सदाचार से सम्बंधित)
ग- फ़िक़्ही (धर्म निर्देशों से सम्बंधित)
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि नबी ने कहा है कि ज्ञान केवल तीन हैं आयाते मुहकिमह (आस्थिक), फ़रिज़ाए आदिलह (सदाचारिक) और सुन्नतुन क़ाइमह(फ़िक़्ह = धार्मिक निर्देश)
[उसूले काफ़ी 1/32]
“ एतिक़ादात” (धार्मिक आस्थाऐं) धर्म के मूल भूत तत्वों और अन्य शिक्षाओं का आधार हैं। इस्लाम धर्म की आस्थाऐं भी अन्य आसमानी धर्मों की तरह तौहीद नबूवत व मआद हैं।
क- तौहीद अर्थात अद्वैतवाद या एक इश्वरवादिता में विश्वास
ख- नबूवत अर्थात अल्लाह द्वारा भेजे गये नबीयों(प्रतिनिधियों) पर विश्वास
ग- मआद अर्थात इस संसार के जीवन की समाप्ति के बाद परलोकिय जीवन पर विशवास।
क- तौहीद (अद्वैतवाद या एक इश्वरवाद)
यह धर्म की आधारिक शिक्षा है यह अल्लाह के एक होने पर ईमान के बाद अल्लाह की पूर्ण रूप से इबादत के साथ पूरी होती है। इस्लाम ने मानव की उतपत्ति का मुख्य उद्देश केवल इबादत को ही माना है।
जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए ज़ारियात की आयत न. 56 में वर्णन हुआ कि “मा ख़लक़्तुल जिन्ना वल इंसा इल्ला लियअबुदूना।”
अनुवाद --मैंने जिन्नों और इंसानों को केवल इबादत के लिए पैदा किया है। अर्थात मानव की उतपत्ति का उद्देश्य केवल इबादत है।
इस्लाम केवल उतपत्ति में ही अद्वैतवाद का ही समर्थक नही है बल्कि रबूबियत तकवीनी और रबूबियत तशरीई मे भी अद्वैतवाद का समर्थक है।
अल्लाह की रबूबियते तशरीई के काऱण नबूवत की आवश्यक्ता पड़ती है क्योंकि संचालन का कार्य आदेशों व निर्देशों के बिना नही हो सकता और इन आदेशों व निर्देशो को इंसानों तक पहुँचाने के लिए प्रतिनिधि की आवश्यक्ता है। इस्लाम में इन्ही प्रतिनिधियों को नबी (पैगम्बर) कहा जाता है।
क- एतिक़ादाती (आस्था से सम्बंधित)
ख- अखलाक़ियाती (सदाचार से सम्बंधित)
ग- फ़िक़्ही (धर्म निर्देशों से सम्बंधित)
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि नबी ने कहा है कि ज्ञान केवल तीन हैं आयाते मुहकिमह (आस्थिक), फ़रिज़ाए आदिलह (सदाचारिक) और सुन्नतुन क़ाइमह(फ़िक़्ह = धार्मिक निर्देश)
[उसूले काफ़ी 1/32]
“ एतिक़ादात” (धार्मिक आस्थाऐं) धर्म के मूल भूत तत्वों और अन्य शिक्षाओं का आधार हैं। इस्लाम धर्म की आस्थाऐं भी अन्य आसमानी धर्मों की तरह तौहीद नबूवत व मआद हैं।
क- तौहीद अर्थात अद्वैतवाद या एक इश्वरवादिता में विश्वास
ख- नबूवत अर्थात अल्लाह द्वारा भेजे गये नबीयों(प्रतिनिधियों) पर विश्वास
ग- मआद अर्थात इस संसार के जीवन की समाप्ति के बाद परलोकिय जीवन पर विशवास।
क- तौहीद (अद्वैतवाद या एक इश्वरवाद)
यह धर्म की आधारिक शिक्षा है यह अल्लाह के एक होने पर ईमान के बाद अल्लाह की पूर्ण रूप से इबादत के साथ पूरी होती है। इस्लाम ने मानव की उतपत्ति का मुख्य उद्देश केवल इबादत को ही माना है।
जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए ज़ारियात की आयत न. 56 में वर्णन हुआ कि “मा ख़लक़्तुल जिन्ना वल इंसा इल्ला लियअबुदूना।”
अनुवाद --मैंने जिन्नों और इंसानों को केवल इबादत के लिए पैदा किया है। अर्थात मानव की उतपत्ति का उद्देश्य केवल इबादत है।
इस्लाम केवल उतपत्ति में ही अद्वैतवाद का ही समर्थक नही है बल्कि रबूबियत तकवीनी और रबूबियत तशरीई मे भी अद्वैतवाद का समर्थक है।
अल्लाह की रबूबियते तशरीई के काऱण नबूवत की आवश्यक्ता पड़ती है क्योंकि संचालन का कार्य आदेशों व निर्देशों के बिना नही हो सकता और इन आदेशों व निर्देशो को इंसानों तक पहुँचाने के लिए प्रतिनिधि की आवश्यक्ता है। इस्लाम में इन्ही प्रतिनिधियों को नबी (पैगम्बर) कहा जाता है।