इमाम अली (अ) में क़ुव्वते कशिश भी और क़ुव्वते दिफ़ा भी

शहीद मुतह्हरी इंसानों को दूसरे इंसानो से जज़्ब या दूर करने के एतिबार से चार क़िस्मों में तक़सीम करते है :

1. वह इंसान जिनमें न क़ुव्वते कशिश है और न क़ुव्वते दिफ़ा, न ही किसी को अपना दोस्त बना सकता है और न ही दुश्मन, न लोगों के इश्क व मोहब्बत को उभारते हैं और न ही कीना व नफ़रत को ये लोग इंसानी समाज में पत्थर की तरह हैं किसी से कोई मतलब नही है ।

2. वह इंसान जिनमें क़ुव्वते कशिश है लेकिन क़ुव्वते दिफ़ा नही है तमाम लोगों को अपना दोस्त व मुरीद बना लेते हैं ज़ालिम को भी मज़लूम को भी नेक इंसान को भी और बद इंसान को भी और कोई उनकी दुश्मन नही है.......आप फ़रमाते : हैं ऐसे लोग मुनाफ़िक़ होते हैं जो हर एक से उसके मैल के मुताबिक़ पेश आते हैं और सबको राज़ी करते हैं लेकिन मज़हबी इंसान ऐसा नही बन सकता है वह नेक व बद, ज़ालिम व मज़लूम दोनों को राज़ी नही रख सकता है ।

3. कुछ लोग वह हैं जिनमें लोगों को अपने से दूर करने की सलाहियत है लेकिन जज़्ब करने की सलाहियत नही है ये लोग, लोगों को सिर्फ़ अपना मुख़ालिफ़ व दुश्मन बनाना जानते हैं और बस शहीद मुतह्हरी फ़रमाते हैं ये गिरोह भी नाक़िस है इस क़िस्म के लोग इंसानी और अख़्लाक़ी कमालात से ख़ाली होते हैं इस लिये कि अगर उनमें इंसानी फ़ज़ीलत होती तो कोई वलौ कितने की कम तादाद में उनका हामी और दोस्त होता इस लिये कि समाज कितना ही बुरी क्यों न हो बहर हाल हमेशा उसमें कुछ अच्छे लोग होते हैं ।

4. वह इंसान जिनमें क़ुव्वते कशिश भी होती है और क़ुव्वते दिफ़ा भी कुछ लोगो को अपना दोस्त व हामी, महबूब व आशिक़ बनाते हैं और कुछ लोगों को अपना मुख़ालिफ़ और दुश्मन भी, मसलन वह लोग जो मज़हब और अक़ीदे की राह में जद्दो जहद करते हैं वह बाज़ लोगों को अपनी तरफ़ खीचते हैं और बीज़ को अपने से दूर करते हैं। (1)

अब आप फ़रमाते हैं कि इनकी भी चंद क़िस्में हैं कभी क़ुव्वते कशिश व दिफ़ा दोनो क़वी हैं और कभी दोनो ज़ईफ़, कभी मुस्बत अनासिर को अपनी तरफ़ खीचते हैं और कभी मनफ़ी व बातिल अनासिर को अपने से दूर करते हैं और कभी इसके बरअक्स अच्छे लोगों को दूर करते हैं और बातिल लोगों को जज़्ब करते हैं। फिर आप हज़रत अली (अ) के बारे में फ़रमाते हैं कि अली इब्ने अबी तालिब (अ) किस क़िस्म के इंसान थे आया वह पहले गिरोह की तरह थे या दूसरे गिरोह की तरह, आप में सिर्फ़ क़ुव्वते दिफ़ा थी क़ुव्वते कशिश व दिफ़ा दोनों आपके अंदर मौजूद थीं। “इमामे अली (अ) वह कामिल इंसान हैं जिसमें क़ुव्वते कशिश भी है और क़ुव्वते दिफ़ा भी और आपकी दोनों क़ुव्वतें बहुत क़वी हैं शायद किसी भी सदी में इमामे अली (अ) जैसी क़ुव्वते कशिश व दिफ़ा रखने वाली शख़्सियत मौजूद न रही हों । (2)

इसलिये कि आपने हक़ परस्त और अदालत व इंसानियत के दोस्तदारों को अपना गरवीदा बना लिया और बातिल परस्तों अदालत के दुश्मनों और मक्कार सियासत के पुजारियों और मुक़द्दस मआब जैसे लोगों के मुक़ाबले में खड़े होकर उनको अपना दुश्मन बना लिया।
हज़रत अली (अ) की क़ुव्वते कशिश :

आप हज़रते अली (अ) की क़ुव्वते कशिश के ज़िम्न में फ़रमाते हैं “इमामे अली (अ) के दोस्त व हामी बड़े अजीब, फ़िदाकार, तारीख़ी, क़ुर्बानी देने वाले, आपके इश्क में गोया आग के शोले की तरह सूज़ान व पुर फ़रोग़, आपकी राह में जान देने को इफ़्तेख़ार समझते हैं और आपकी हिमायत में हर चीज़ को फ़रामोश करते हैं आपकी शहादत से आज तक आपकी क़ुव्वते कशिश काम कर रही है और लोगो को हैरत में डाल रही है।” (3)

“आपके गिर्द शरीफ़, नजीब, ख़ुदा परस्त व फ़िदाकार, आदिल व ख़िदमत गुज़ार, मेहरबान व आसारगर अनासिर, परवाने की तरह चक्कर लगाते हैं एसे इंसान जिनमें हर एक की अपनी अपनी मख़सूस तारीख़ है मोआविया और अमवियों के ज़माने में आपके आशिक़ो और हामियों को सख़्त शिकंजों का सामना करना पड़ा लेकिन उन लोगों ने ज़र्रा बराबर भी आपकी हिमायत व दोस्ती मे कोताही नही की और मरते दम तक आपकी दोस्ती पर क़ायम रहे। (4)
हज़रत अली (अ) की क़ुव्वते कशिश का एक नमूना :

आपके बा ईमान व बा फ़ज़ीलत असहाब में से एक ने एक दिन कोई ख़ता की जिसकी बिना पर उस पर हद जारी होनी थी आपने उस साथी का दायाँ हाथ काटा, उसने बायें हाथ में उस कटे हुये हाथ को उठाया इस हालत में कि उसके हाथ से ख़ून जारी था अपने घर की तरफ़ जा रहा था रास्ते में एक ख़ारजी (हज़रत अली (अ) का दुश्मन) मिला जिसका नाम अबुल कवा था उसने चाहा कि इस वाक़ए से अपने गिरोह के फ़ायदे और अली (अ) की मुख़ालिफ़त में फ़ायदा उठाए वह बड़ी नर्मी के साथ आगे बढ़ा और कहने लगा अरे क्या हुआ ? तुम्हारा हाथ किसने काटा ? आशिक़े अली (अ) ने इस नामुराद शख़्स का यूँ जावाब दिया : (..................................) यानी मेरे हाथ को उस शख़्स ने काटा है जो पैग़म्बरों का जानशीन है, क़यामत में सफ़ेद रू इंसानों का पेशवा और मोमिनीन के लिये सबसे हक़दार है यानी अली इब्ने अबी तालिब (अ) ने, जो हिदायत का इमाम, जन्नत कि नेमतों की तरफ़ सबसे पेश क़दम और जाहिलों से इन्तेक़ाम लेने वाला है…. (बिहारुल अनवार जिल्द 40 पेज 282)

इब्ने कवा ने जब ये सुना तो कहा वाय हो तुम पर उसने तुम्हारे हाथ को भी काटा और फिर उसकी तारीफ़ भी कर रहे हो! इमाम (अ) के इस आशिक़ ने जवाब दिया “मैं क्यों उसकी तारीफ़ न करूँ उसकी दोस्ती व मोहब्बत तो मेरे गोश्त व ख़ून में जा मिली है ख़ुदा की क़सम उन्होने मेरा हाथ नही काटा मगर उस हक़ की वजह से जो कि ख़ुदा ने मोअय्यन किया है।” तारीख़ में इमामे अली (अ) की क़ुव्वते कशिश के बारे में इस तरह के बहुत से वाक़ेआत मौजूद हैं आपकी ज़िन्दगी में भी और आपकी शहादत के बाद भी ।
हज़रत अली (अ) की क़ुव्वते दिफ़ा :

हज़रत अली (अ) जिस तरह लोगों को अपनी तरफ़ जज़्ब करते हैं उसी तरह बातिल, मुनाफ़िक़, अदल व इंसाफ़ के दुश्मनों को अपने से दूर और नाराज़ भी करते हैं। शहीद मुतहरी फ़रमाते हैं :

“इमामे अली (अ) वह इंसान है जो दुश्मन साज़ भी है और नाराज़ साज़ भी और ये आपके अज़ीम इफ़्तेख़ारात में से एक है।” (5)

इसलिये कि जिन लोगों के मफ़ादात ना इंसाफ़ और ग़ैर आदिलाना निज़ाम के ज़रिये हासिल होते थे वह कभी भी आपकी अदालत व इंसाफ़ पसंदी से ख़ुश नही हुए।

“लिहाज़ा आपके दुश्मन आपकी ज़िन्दगी में अगर दोस्तों से ज़्यादा नही तो कम भी नही थे।” (6)

आप इस सिलसिले में मज़ीद लिखते हैं :

“ना आपके जैसे ग़ैरत मंद दोस्त किसी के थे और न आपके जैसे दुश्मन किसी के थे आपने लोगों को इस क़दर दुश्मन बनाया कि आपकी शहादत के बाद आपके जनाज़े पर हमला होने का एहतिमाल था आपने ख़ुद भी इस हमले का एहतिमाल दिया था लिहाज़ा अपने वसीयत की थी कि आपकी क़ब्र मख़फ़ी रखी जाय और आपके फ़रज़न्दों के अलावा कोई इस से बा ख़बर न हो एक सदी गुज़रने के बाद इमामे सादिक़ (अ) ने आपकी क़ब्र का पता बताया।” (7) *********************************************************
हवाले

1. जाज़िबा व दाफ़िआ ए अली (अ) पेज 21 व 28
2. वही मदरक पेज 31
3. वही मदरक पेज 31
4. वही मदरक पेज 31
5. जाज़िबा व दाफ़िआ ए अली (अ) पेज 108
6. जाज़िबा व दाफ़िआ ए अली (अ) पेज 108
7. जाज़िबा व दाफ़िआ ए अली (अ) पेज 110