पवित्र माहे रमज़ान-11

रमज़ान का पवित्र महीना उत्तम जीवन व्यतीत करने हेतु अभ्यास तथा प्रशिक्षण प्राप्त करने का महीना है। रोज़ा रखने वाला व्यक्ति भूख और प्यास सहन करता है। क्योंकि यह कार्य वह स्वेच्छा से करता है अतः उसपर किसी भी प्रकार की विवश्ता नहीं होती और उसमें क्रोध की भावना ही उत्पन्न नहीं होती। इस प्रकार से रोज़ा रखने वाला व्यक्ति भूख-प्यास तथा अन्य प्रकार की बहुत सी आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित करने की शैली भी रमज़ान में सीख लेता है।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि लोगों में सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति वह है जो आंतरिक इच्छाओं पर अंकुश लगता है और उनमें सबसे शक्तिशाली वह होता है जो अपनी अंतरात्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है। हानिकारक आदतों से छुटकारा दिलाने में मनुष्य यदि चाहे तो रोज़ा उसकी बहुत सहायता कर सकता है। उदाहरण स्वरूप धूम्रपान या फिर चाय पीने की बढ़ी हुई आदत बड़ी ही सरलता से छोड़ी जा सकती है। इसका मुख्य कारण यह है कि रोज़े की स्थिति में मनुष्य दिनभर अर्थात १५ घण्टों या उससे अधिक समय तक इन वस्तुओं का सेवन नहीं करता और उनसे दूर रहता है। इस प्रकार वह स्वयं पर यदि थोड़ा सा और नियंत्रण कर ले तो इस बुरी आदत से सरलता से मुक्ति पा सकता है।

ईश्वर मनुष्य की तपस्या को स्वीकार कर ले इसके लिए रोज़ा रखने वाले को अपने व्यवहार और कार्यों के प्रति सावधान रहना चाहिए। इस संबन्ध में यदि वह सावधान रहता है तो फिर बहुत से अनुचित कार्यों की संभावना कम हो जाती है। यह विषय् रोज़ेदार की चिंताओं को कम करके उसकी आत्मा तथा उसके मन को अदभुत शक्ति प्रदान करता है। अनुचित कार्यों में से एक कार्य क्रोधित होना है। कुछ लोग एसे भी होते हैं जो अन्य लोगों पर अपनी श्रेष्ठता जताने या फिर स्वयं को सशक्त दिखाने हेतु अपने आप को क्रोधित और कठोर स्वभाव वाला दर्शाने का प्रयास करते हैं। अपने या पराए लोगों सब के लिए अपमान जनक शब्दों का प्रयोग या बुरा व्यवहार उनकी आदत बन जाता है। एसे लोग रमज़ान के पवित्र महीने में भी यदि अपनी इस आदत को बनाए रखते हैं तो फिर उन्हें ईश्वर के सामिप्य की आशा नहीं रखनी चाहिए।