अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

इल्में ग़ैब, क़ुरआन की रौशनी में

0 सारे वोट 00.0 / 5

इल्में ग़ैब के सिलसिले में यहाँ तक बैरूनी मौज़ूआत में अगरचे ख़ुदा वंदे आलम ने बहुत सी आयात में इल्में गैब को अपने से मख़सूस किया है चुनाँचे क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है:

(सूरह अनआम आयत 59)

उसके पास गै़ब के ख़ज़ाने हैं जिन्हे उसके अलावा कोई नही जानता।

नीज़ इरशाद होता है:

(सूरह नहल आयत 77)

एक और जगह ख़ुदा वंदे को इरशाद होता है:

(सूरह नमल आयत 65)

कह दीजिए कि आसमान व ज़मीन में ग़ैब का जानने वाला अल्लाह के अलावा कोई नही है।

लेकिन एक आयत ऐसी है जो कहती है कि इल्मे गैब ख़ुदा से मख़सूस नही है, चुनाँचे ख़ुदा वंदे आलम इरशाद फ़रमाता है:

(सूरह जिन आयत 26, 27)

वह आलिमुल ग़ैब है और अपने ग़ैब पर किसी को मुत्तलअ नही करता है मगर जिस रसूल को पसंद कर ले।

कारेईने केराम, इस आयते शरीफ़ा और गुज़श्ता चंद आयात को एक साथ रख कर यह नतीजा हासिल होता है कि हर क़िस्म का इल्मे गै़ब ख़ुदा से मख़सूस है लेकिन ख़ुदा वंदे आलम जिस को चाहे उसको अता कर सकता है और चुँकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की वफ़ात के बाद ख़िलाफ़त व जानशीनी के मसअले में इख्तिलाफ़ हुआ, क़ुरआनी आयात से यह नतीजा निकलता है कि आँ हज़रत (स) मुसतक़बिल में होने वाले वाक़ेयात से बाख़बर थे लिहाज़ा अपनी वफ़ात के बाद ख़िलाफ़त व जानशीनी के मसअले में होने वाले हवादिस और फ़ितनों से आगाह थे।

 

 

आपका कमेंन्टस

यूज़र कमेंन्टस

कमेन्ट्स नही है
*
*

अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क