अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

इल्मे गैब, रिवायात की रौशनी में

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रिवायात के मुतालए के बाद हम पर यह वाज़ेह हो जाता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ख़िलाफ़त व जानशीनी के मसअले में होने वाले फ़ितने और इख्तिलाफ़ से मुकम्मल तौर पर आगाह थे, आईये उन रिवायात में से चंद रिवायतों की तरफ़ इशारा करें:

पैग़म्बर इस्लाम (स) ने फ़रमाया:

1. हदीस (सोनने इब्ने माजा जिल्द 2 पेज 1322 हदीस 3922, सोनने तिरमिज़ी जिल्द 4 पेज 134 हदीस 2778)

तर्जुमा, मेरी उम्मत तिहत्तर फ़िरक़ों में तक़सीम हो जायेगी, जिनमें से एक फ़िरक़ा जन्नत में जायेगा और बहत्तर फ़िरक़े आतिशे जहन्नम में जलेगें।

इस हदीस को बहुत से असहाबे रसूल (स) ने नक़्ल किया है जैसे हज़रत अली बिन अबी तालिब, अनस बिन मालिक, सअद बिन अबी वक़ास, सुदी बिन अजलान, अब्दुल्लाह बिन अब्बास, अब्दुल्लाह बिन उमर, अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस, उमर बिन औफ़ मज़नी, औफ़ बिन मालिक अशजई, उवैयमर बिन मालिक और मुआविया बिन अबी सुफ़यान।

अहले सुन्नत बहुत से उलामा ने इस हदीस को सही माना है और इसके बारे में कहा है कि यह हदीस मुतावातिर है जैसे मुनावी ने फ़ैज़ुल क़दीर, हाकिमे नैशापुरी ने अल मुसतदरक अलस सहीहैन में, ज़हबी ने तलख़ीसुल मुसतदरक में, शातेबी ने अल ऐतेसाम में, सफ़ारिनी ने लवामेउल अनवारल बहीय्या में और नासिरुद दीन अलवानी ने सिलसिलातुल अहादीसुस सहीय्या में।

इल्मे हदीस में हदीसे तवातुर, उस हदीस को कहा जाता है जिस के रावियों की तादाद इस हद तक हो कि एक साथ जमा होकर साज़िश का क़ाबिले ऐतेमाद ऐहतेमाल हो।(मुतर्जिम)

फ़ैज़ुल क़दीर जिल्द 2 पेज 21

मुसतदरक हाकिम जिल्द 1 पेज 128

अल ऐतेसाम जिल्द 2 पेज 189

लवामेउल अनवार जिल्द 1 पेज 93

सिलसिलातुल अहादिस सहीहा जिल्द 1 पेज 359 अलबत्ता तिहत्तर का अदद या तो हक़ीक़ी है या मजाज़ी जो कि मुबालिग़े पर दलालत करता है।

हम जानते है कि सबसे ज़्यादा इख़्तिलाफ़, इस्लामी मुआशरा की इमामत व रहबरी के मसअले में हुआ है।
उक़बा बिन आमिर पैग़म्बरे अकरम (स) से नक़्ल करते हैं:

हदीस (सही बुख़ारी जिल्द 4 पेज 176)

बेशक मैं रोज़े क़यामत तुम लोगों से आगे आगे और तुम पर शाहिद हूँगा, ख़ुदा की क़सम, मैं अभी अपनी हौज़ (कौसर) को देख रहा हूँ, मुझे ज़मीन के खज़ानों की कुन्जियां दी गई है, मैं इस बात से ख़ौफ़ज़दा नही हूँ कि मेरे बाद मुश्रिक हो जाओगे लेकिन ख़िलाफ़त और जानशीनी के मसअले में इख्तिलाफ़ करने से डरता हूँ।

2. इब्ने अब्बास पैग़म्बरे अकरम (स) से नक़्ल करते है कि आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया:

हदीस (सही बुख़ारी, जिल्द 4, पेज 110)

रोज़े क़यामत मेरे असहाब के एक गिरोह को जहन्नम की तरफ़ ले जाया जायेगा, उस मौक़े पर मैं कहूँगा, पालने वाले यह तो मेरे असहाब हैं? उस वक्त आवाज़ आयेगी, यह वही लोग हैं जो आपकी वफ़ात के बाद जाहिलीयत की तरफ़ पलट गये।

कारेईने केराम, इस तरह की बहुत सी रिवायात अहले सुन्नत की सही तरीन किताबों में नक़्ल हुई हैं जिनको बाज़ सहाबा ने भी नक़्ल किया है, जैसे अनस बिन मालिक, अबू हुरैरा, अबू बक्र, अबू सईद ख़िदरी, असमा बिन्ते उमैस, आयशा, उम्मे सलमा।

शेख महमूद अबू रय्या किताब अल इल्मुश शामिख़ में मुक़बली के नक़्ल करते हैं कि इस तरह हदीस मुतावातिरे मानवी की हद तक पहुची हुई हैं।

इल्में हदीस में हदीसे मुतावातिर उस हदीस को कहा जाता है जिसके अलफ़ाज़ मुख़्तिलफ़ हों लेकिन वह सब एक ही मायना की ख़बर देते हों। (मुतर्जिम)

अलबत्ता उन अहादीस को उन असहाब रद्द पर हम्ल नही किया जा सकता जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) की वफ़ात के बाद शिर्क व पुत परस्ती की तरफ़ पलट गये, क्योकि आँ हज़रत (स) से मनक़ूल उक़बा बिन आमिर की रिवायत में है जिस में आँ हजरत (स) ने फ़रमाया: ख़ुदा की क़सम मैं इस बात से ख़ौफ़ ज़दा नही हूँ कि तुम मेरे बाद मुशरिक हो जाओगे लेकिन मैं ख़िलाफ़त व जानशीनी के मसअले में इख़्तिलाफ़ और झगड़े से डरता हूँ।

लिहाज़ा पैग़म्बरे अकरम (स) ने उन बाज़ अहादिस के ज़ैल में फ़रमाया:

हदीस (सही बुख़ारी जिल्द 7 पेज 208, सही मुस्लिम जिल्द 7 पेज 66)

तर्जुमा, बर्बाद हो जाये, बर्बाद हो जाये, वह शख्स जो मेरे बाद तग़य्युर व तबद्दुल करे।

जब कि हम इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि दीन में तग़य्युर व तबद्दुल करना, शिर्क के अलावा एक दूसरी चीज़ है।

इसी तरह इस जैसी रिवायात को उन लोगों पर हम्ल नही किया जा सकता जिन्होने हज़रत उस्मान पर हुजूम किया और उनको क़त्ल कर डाला, जैसा कि बाज़ लोगों ने गुमान किया है क्योकि:
बाज़ रिवायात में बयान हुआ है कि पैग़म्बरे अकरम (स) की वफ़ात के बाद वह जाहिलियत की तरफ़ पलट जायेगें जो इस हक़ीक़त को ज़ाहिर करती है कि यह रसूले अकरम (स) ने बिला फ़ासला मुशरिक हो जायेगें। अहले सुन्नत, तमाम असहाब के आदिल होने के क़ायस हैं और इस बात में कोई शक नही है कि उन लोगों के दरमियान असहाब की एक जमाअत भी थी।

3. अबू अलक़मा कहते हैं:

हदीस (अहक़ाक़ुल हक़ जिल्द 2 पेज 296 नक़्ल अज़ किताबुल मवाहिब तबरी शाफ़ेई)

मैं ने सअद बिन उबादा (जिस वक़्त लोग अबू बक्र की बैअत करना चाहते थे) से कहा: क्या तुम सब की तरह अबू बक्र की बैअत नही करोगें? उन्होने कहा: मैरे पास आओ और जब मैं नज़दीक पहुच गया तो उन्होने कहा, ख़ुदा की कसम मैंने रसूलल्लाह से सुना है कि आपने फ़रमाया: जब मैं इस दुनिया से चला जाऊगा तो लोगों पर हवाए नफ़्स ग़लबा करेगी और उनको जाहिलियत की तरफ़ पलटा देगी, उस दिन हक़ अली के साथ होगा और किताबे ख़ुदा उनके हाथों में होगी, उनके अलावा किसी ग़ैर की बैअत न करना।

4. ख़ारज़मी हनफ़ी अपनी किताब मनाक़िब में अबू लैला से नक़्ल करते हैं कि रसूलल्लाह (स) ने फ़रमाया:

हदीस (मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 105)

मेरे बाद जल्दी ही फ़ितना व फ़साद बरपा होगा, उस मौक़े पर तुम लोग अली की बैअत करना, क्यो कि वही हक़ व बातिल में फ़र्क़ करने वाले हैं।

5. इब्ने असाकर सही सनद के साथ इब्ने अब्बास से नक़्स करते है:

हदीस (तर्जुमा इमाम अली (अ), इब्ने असाकर रक़्म 834)

हम पैग़म्बरे अकरम (स) और अली (अ) के साथ मदीने की गलियों से गुज़र रहे थे और जब हमारा गुज़र एक बाग़ से हुआ तो उस मौक़े पर हज़रत अली (अ) ने रसूले अकरम (स) से अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह, यह बाग़ कितना ख़ूबसूरत है? आँ हज़रत ने फ़रमाया: जन्नत में तुम्हारा बाग़ इससे कहीं ख़ूबसूरत है और उस मौक़े पर आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ) की रीशे मुबारक की तरफ़ इशारा किया और बुलंद आवाज़ में गिरया फ़रमाया, हज़रत अली (अ) ने अर्ज़ किया: आप क्यों गिरया फ़रमाते हैं? आँ हज़रत ने फ़रमाया: यह मेरी उम्मत अपने दिलों में तुम्हारी निस्बत बुग़्ज़ व कीनह रखती है जिसको (अभी) ज़ाहिर नही करती, लेकिन मेरी वफ़ात के बाद ज़ाहिर करेगी।

6. अबू मोवयबह, रसूलल्लाह के ख़ादिम कहते हैं:

हदीस (कामिल इब्ने असीर जिल्द 2 पेज 318)

तर्जुमा, पैग़म्बरे अकरम (स) ने एक रात को मुझे बेदार किया और फ़रमाया: मुझे हुक्म हुआ है कि अहले बक़ी के लिये इस्तिग़फ़ार करू, मेरे साथ चलो, चुँनाचे मैं आँ हज़रत (स) के साथ चल दिया यहाँ तक कि हम बक़ी पहुच गये, पैग़म्बरे अकरम (स) ने अहले बक़ी को सलाम किया और फ़िर फ़रमाया: ख़ुदा तुम्हारे लिये अच्छा मक़ाम क़रार दे, बेशक फ़ितना व फ़साद, रात की तारीकी की तरह हमला वर होते हैं फिर फ़रमाया: मुझे बहिश्त और ज़मीन की कुंजियाँ दी गई हैं और जन्नत भी, मुझे उनके और अपने परवरदिगार की मुलाक़ात के दरमियान इख़्तियार दिया गया है, लेकिन मैं ने अपने परवरदिगार की मुलाक़ात को इख़्तियार किया है और फिकर अहले बक़ी के लिये इसतिग़फार की, उसके बाद आँ हज़रत (स) वापस आये और मरज़ में मुब्तला हो गये और उसी मरज़ में आपने रेहलत फ़रमाई।

शहीद सद्र अलैहिर्रहमह इस फ़ितना व फ़साद की वज़ाहत करते हुए फ़रमाते हैं: यह वही फ़ितने हैं जिनके बारे में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) ने ख़बर दी है जैसा कि बीबी दो आलम ने फ़रमाया:

हदीस (ख़ुतब ए हज़रते ज़हरा (स) शरहे नहजुल बलाग़ा, जिल्द 16, पेज 234)

तुम लोग फ़ितने से डर रहे थे लेकिन ख़ुद ही फ़ितने में ग़र्क़ हो गये।

जी हाँ यह वही फ़ितना है बल्कि दर हक़ीक़त यही तमाम फ़ितनों की जड़ है, ऐ पार ए तने रसूल, किस चीज़ ने आपके दिल को इतना मग़मूम कर दिया जिसने आपको तारीख़ के कड़वे वाक़ेयात को दोहराने पर मजबूर किया और आपने अपने बाबा की उम्मत के लिये बहुत तारीक मुस्तक़बिल की ख़बर दी?

जी हाँ उस रोज़ सियासी फ़ितना एक ऐसी खेल था जो दर हक़ीक़त तमाम ही फ़ितना व फ़साद की जड़ बन गया जैसा कि उमर बिन ख़त्ताब के क़ौल से ज़ाहिर होता है कि अबू बक्र की बैअत ना सोचा समझा एक क़दम था जिसके शर से ख़ुदा वंदे आलम ने मुसलमानो को निजात दी।

(तारीख़े तबरी जिल्द 2 पेज 235, फ़िदक दर तारीख़ शहीद सद्र)

 

 

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