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इमाम अली (अ) सहाबा मे सबसे ज़्यादा शुजाअ व बहादुर

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उस्ताद अली जुन्दी, मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम और मुहम्मद युसुफ़ महजूब अपनी किताब शजउल हेमाम फ़ी हुक्मिल इमाम तहरीर करते हैं: (हज़रत (अ)) मुजाहेदिन के सैयद व सरदार थे, इस में किसी तरह का कोई इख़्तिलाफ़ नही है, उनकी मंज़िलत के लिये बस इतना ही काफ़ी है कि जंगे बद्र (इस्लाम की सबसे अज़ीम वह जंग जिस में पैग़म्बर अकरम (स) शरीक थे) में मुशरेकीन के सत्तर लोग हुए, जिनमे से आधे लोगों को हज़रत अली (अ) ने बाक़ी को दूसरे मुसलमानों और मलायका ने क़त्ल किया है, आप जंग में बहुत ज़्यादा ज़हमतें बर्दाश्त किया करते थे, आप रोज़े बद्र जंग करने वालों में सबसे मुक़द्दम थे, आप जंगे ओहद व हुनैन में साबित क़दम रहे और आप ही ख़ैबर के फ़ातेह और अम्र बिन अबदवद, ख़ंदक़ का नामी बहादुर और मरहब यहूदी के क़ातिल थे। (सजउल हेमाम फ़ी हुक्मिल इमाम पेज 18)

अब्बास महमूद अक़्क़ाद तहरीर करते हैं: यह बात मशहूर थी कि हज़रत अली (अ) जब भी किसी से लड़े हैं उसको ज़ेर कर देते हैं और आपने किसी से जंग नही कि मगर यह कि उसको क़त्ल कर दिया। (अबक़रितुल इमाम अली (अ) पेज 15)

डाक्टर मुहम्मद अबदहू यमानी हज़रत अली (अ) की तौसीफ़ में कहते हैं: हज़रत अली (अ) ऐसे बहादुर, शुजाअ और साबिक़ क़दम थे जिन्होने शबे हिजरत हज़रत रसूले अकरम (स) की जान की हिफ़ाज़त के लिये अपनी जान का तोहफ़ ख़ुलूसे के साथ पेश कर दिया, चुनाँचे आप उस मौक़े पर पैग़म्बरे अकरम (स) के बिस्तर पर सो गये। (अल्लिमू औलादकुम मुहब्बता आलिन नबी (स) पेज 109)

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