इमाम अली (अ) सहाबा में सबसे बड़े आलिम




इमाम अली (अ) अपने ज़माने के सबसे बड़े आलिम थे, इस दावे को चंद तरीक़ों से साबित किया जा सकता है:

अ. पैग़म्बरे अकरम (स) का फ़रमान

पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया:

हदीस (मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 40)

मेरे बाद मेरी उम्मत में सबसे बड़े आलिम अली बिन अबी तालिब (अ) हैं।

तिरमिज़ी ने हज़रत रसूले अकरम (स) से रिवायत की कि आपने फ़रमाया:

हदीस (सही तिरमिज़ी जिल्द 5 पेज 637)

मैं शहरे हिकमत हूँ और अली (अ) उसका दरवाज़ा।

नीज़ पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया:

हदीस (अल मुसतदरक अलस सहीहैन जिल्द 3 पेज 127)

मैं शहरे इल्म हूँ और अली उसका दरवाज़ा, जो शख्स भी मेरे इल्म का तालिब है उसे दरवाज़े से दाख़िल होना चाहिये।

अहमद बिन हम्बल पैग़म्बरे अकरम (स) से नक़्ल करते हैं कि आपने जनाबे फ़ातेमा (स) से फ़रमाया:

हदीस (मुसनद अहमद जिल्द 5 पेज 26, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 5 पेज 101)

क्या तुम इस बात पर राज़ी नही हो कि तुम्हारे शौहर इस उम्मत में सबसे पहले इस्लाम का इज़हार करने वाले और मेरी उम्मत के सबसे बड़े आलिम और सबसे ज़्यादा हिल्म रखने वाले हैं।

ब. इमाम अली (अ) की आलमीयत का इक़रार सहाबा की ज़बानी

जनाबे आयशा कहती हैं: अली (अ) दूसरे लोगों की बनिस्बत सुन्नते रसूल (स) के सबसे बड़े आलिम थे। (तारीख़े इब्ने असाकर जिल्द 5 पेज 162, उस्दुल ग़ाबा जिल्द 4 पेज 22)

इब्ने अब्बास कहते हैं: जनाबे उमर ने एक ख़ुतबे में कहा: अली (अ) क़ज़ावत ओर फ़ैसला करने में बेमिसाल हैं। (तारीख़े इब्ने असाकर जिल्द 3 पेज 36, मुसनद अहमद जिल्द 5 पेज 113, तबक़ाते इब्ने साद जिल्द 2 पेज 102)

हज़रत इमाम हसन (अ) ने अपने पेदरे बुज़ुर्गवार हज़रत अली (अ) की शहादत के बाद फ़रमाया: बेशक कल तुम्हारे दरमियान से ऐसी शख्सीयत उठ गयी है जिसके इल्म तक साबेक़ीन (गुज़िश्ता) और लाहेक़ीन (आईन्दा आने वाले) नही पहुच सकते। (मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 328)

इसी तरह अब्बास महमूद अक़्क़ाद तहरीर करते है: लेकिन क़ज़ावत और फ़िक्ह में मशहूर यह है कि गज़रत अली (अ) क़ज़ावत और फ़िक्ह दोनो में उम्मते इस्लामिया के सबसे बड़े आलिम थे और दूसरे पहले वालों पर भी... जब हज़रत उमर को कोई मसअला दर पेश होता था तो कहते थे: यह ऐसा मसअला है कि ख़ुदावंदे आलम इसको हल करने के लिये अबुल हसन को हमारी फ़रयाद रसी को पहुचाये। (अबक़रियतुल इमाम अली (अ) पेज 195)

स. तमाम उलूम का मर्कज़ इमाम अली (अ)

इब्ने अबिल हदीद शरहे नहजुल बलाग़ा में तहरीर करते हैं: तमाम उलूम के मुक़द्देमात का सिलसिला हज़रत अली (अ) तक पहुचा है, आप ही ने दीनी क़वायद और शरीयत के अहकाम को वाज़ेह किया, आपने अक़्ली और मनक़ूला उलूम की बहसों को वाज़ेह किया है। फिर मौसूफ़ ने इस बात की वज़ाहत की कि किस तरह तमाम उलूम हज़र अली (अ) की तरफड पलटते हैं। (शरहे इब्ने अबिल हदीस जिल्द 1 पेज 17)