हज़रत अली (अ) ज़माने के बुत शिकन




इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं: मैं रसूले अकरम (स) के साथ रवाना हुआ यहाँ तक कि हम ख़ान ए काबा तक पहुचे, पहले रसूले खुदा (स) मेरे शाने पर सवार हुए और मुझ से फ़रमाया: चलो, मैं चला, लेकिन जब आँ हज़रत (स) ने मेरी कमज़ोरी को मुशाहेदा किया तो फ़रमाया: बैठ जाओ, मैं बैठ गया, आँ हज़रत (स) मेरे शानों से नीचे उतर आये और ज़मीन पर बैठ गये, उसके बाद मुझ से फ़रमाया: तुम मेरे शानों पर सवार हो जाओ, चुनाँचे मैं उनके शानों पर सवार हो गया और काबे की बुलंदी तक पहुच गया, इस मौक़े रक मैने गुमान किया कि अगर मैं चाहूँ तो आसमान को छू सकता हूँ, उस वक़्त मैं ख़ान ए काबा की छत पर पहुच गया, छत के ऊपर सोने और ताँबे के बने हुए एक बुत को देखा, मैंने सोचा किस तरह उसको नीस्त व नाबूद किया जाये, उसको दायें बायें और आगे पीछे हिलाया, यहाँ तक उस पर फ़ातेह हो गया, पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया: उसको ज़मीन पर फेंक दो, मैंने भी उसको ख़ान ए काबा की छत से नीचे गिरा दिया और वह ज़मीन पर गिर कर टुकड़े टुकड़े होने वाले कूज़े की तरह चूर चूर हो गया, उसके बाद मैं छत से नीचे आ गया। (मुसतदरक हाकिम जिल्द 2 पेज 366, मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 84, कंज़ुल उम्माल जिल्द 6 पेज 407, तारीख़े बग़दाद जिल्द 13 पेज 302 व ..)