ऐहतेजाजे इमाम अली (अ)




ऐहतेजाज यानी किसी के सामने दलील क़ायम करना।(मुतर्जिम)

हज़रत अली (अ) ने पैग़म्बरे अकरम (स) की वफ़ात के बाद जहा भी मुनासिब मौक़ा देखा हर मौक़ा तरीक़े से अपनी हक़्क़ानियत साबित की, जिनमें से हदीसे ग़दीर के ज़रिये अपनी विलायत को साबित करना है हम यहाँ पर चंद मकामात की तरफ़ इशारा करते हैं:

अ.रोज़े शूरा

ख़तीबे बग़दादी हनफ़ी और हमूई शाफ़ेई ने अपनी सनद के साथ अबित तफ़ील आमिर बिन वासेला से नक़्ल किया है कि उन्होने कहा: मैं शूरा (सक़ीफ़ ए बनी सायदा) के दिन एक कमरा के दरवाज़े के पास था जिसमें हज़रत अली (अ) और पाच दूसरे अफ़राद भी थे, मैंने ख़ुद सुना कि हज़रत अली (अ) ने उन लोगों से फ़रमाया: बेशक तुम लोगों के सामने ऐसी चीज़ से दलील पेश करूँगा जिसमें अरब व अजम कोई भी तग़य्युर व तबद्दुल नही कर सकता।

और फिर फ़रमाया: ऐ जमाअत, तुम्हे ख़ुदा की क़सम, क्या तुम्हारे दरमियान कोई ऐसा शख्स है जिस ने मुझ से पहले वहदानियत का इक़रार किया हो? सबने कहा: नही, उसके बाद इमाम अली (अ) ने फ़रमाया: तुम्हे ख़ुदा की क़सम, क्यो तुम्हारे दरमियान कोई ऐसा शख्स है जिसके बारे में पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया हो:

हदीस

जिसका मैं मौला हूँ उसके यह अली भी मौला हैं, पालने वाले, तू उसको दोस्त रख जो अली को दोस्त रखे और दुश्मन रख उसको जो अली को दुश्मन रखे, उसके नासिरों की मदद फ़रमा, और उन को ज़लील करने वालों को ज़लील व ख़्वार फ़रमा, हाज़ेरीने मजलीस इस वाक़ेया की ख़बर ग़ायब लोगों तक पहुचायें।

सब लोगों ने कहा: ख़ुदा की क़सम, हरगिज़ नही।()

इस रिवायत के मज़मून को अहले सुन्नत के बहुत से उलामा ने अपनी किताबों में बयान किया है मिनजुमला:

इब्ने हजरे शामी इब्ने हजरे हैसमी इब्ने उक़दा हाफ़िज़ अक़ीली इब्ने अब्दुल बर बुख़ारी इब्ने असाकर

मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 313 हदीस 314, फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 319 हदीस 251

अद्दुरुन नज़ीम जिल्द 1 पेज 116

अस सवायक़े मोहरेक़ा पेज 126 ब नक़्ल अज़ दारक़ुतनी

अमाली, तूसी पेज 332 हदीस 667

मीज़ानुल ऐतेदाल जिल्द 1 पेज 431 हदीस 1643, लेसानुल मीज़ान जिल्द 2 पेज 198 हदीस 2212

अल इसतीआब क़िस्में सिव्वुम 1098 हदीस 1855

तारीख़ुल कबीर जिल्द 2 पेज 382

तारीख़े दमिश्क़ हदीस 1140, 1141, 1142

क़ाज़ी अबू अब्दिल्लाहिल हुसैन बिन हारून ज़ब्बी (398) गंजी शाफ़ेई () इब्ने मग़ाज़ेली शाफ़ेई () सुयूती शाफ़ेई () मुत्तक़ी हिन्दी ()

इमाम ज़ब्बी मजलिस 61

किफ़ायतुत तालिब पेज 386

अलमनाक़िब हदीस 155

जमउल जवामेअ जिल्द 2 पेज 165, 166, मुसनदे फ़ातेमा सलामुल्लाह पेज 21

कंज़ुल उम्माल जिल्द 5 पेज 717 से 726, हदीस 14241 से 14243

ब.ख़िलाफ़ते उस्मान के ज़माने में

हमूई शाफ़ेई अपनी सनद के साथ ताबेईन की अज़ीम शख़्सीयत सुलैम बिन क़ैस हेलाली से रिवायत करते हैं कि उन्होने फ़रमाया: मैंने ख़िलाफ़ते उस्मान के ज़माने में हज़रत अली (अ) को मस्जिदे नबी में देखा कि और देखा कि कुछ लोग आपस में बैठे हुए एक दूसरे से इल्म व फ़िक्ह के सिलसिले में गुफ़तगू कर रहे हैं। जिसके दरमियान क़ुरैश की फ़ज़ीलत और सवाबिक़ का ज़िक्र हुआ और जो कुछ रसूलल्लाह (स) ने उनके बारे में फ़रमाया था, उनको बयान किया जाने लगा और उस मजमें 200 से ज़्यादा अफ़राद थे जिनमें हज़रत अली (अ), साद बिन अबी वक़ास, अब्दुर्रहमान बिन औफ़, तलहा, ज़ुबैर, मिक़दाद, हाशिम बिन उबैया, इब्ने उमर, हसन (अ), हुसैन (अ), इब्ने अब्बास, मुहम्मद बिन अबी बक्र और अब्दुल्लाह बिन जाफ़र थे।

और अंसार में से उबैय बिन कअब, ज़ैद बिन साबित, अबू अय्यूब अंसारी, अबुल हैसम बिन तीहान, मुहम्मद बिन सलमा, क़ैस बिन साद, जाबिर बिन अब्दुल्लाह, अनस बिन मालिक वग़ैरह थे, हज़रत अली (अ) और आपके अहले बैत ख़ामोश बैठे हुए थे, एक जमाअत ने हज़रत अली (अ) की तरफ़ रुख करके अर्ज़ किया या अबुल हसन आप क्यो कुछ नही कहते?

हज़रत अली (अ) ने फ़रमाया: हर क़बीले ने अपनी अपनी फ़ज़ीलत बयान कर दी है और अपना हक़ ज़िक्र कर दिया है, लेकिन मैं तुम जमाअते क़ुरैश और अंसार से सवाल करता हूँ कि ख़ुदा वंदे आलम ने किसके ज़रिये तुम्हे यह फ़ज़ीलत अता की है? क्या यह फ़ज़ीलत ख़ुद तुम ने हासिल की है या तुम्हारी कौ़म व क़बीले ने अता की है या तुम्हारे अलावा किसी और ने यह फ़ज़ीलत तुम्हे दी है? सबने अर्ज़ किया यक़ीनन यह फ़ज़ीलतें हमको हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा (स) और उनके ख़ानदान के ज़रिये अता हुई है और यह फ़ज़ीलतें न हमने ख़ुद हासिल की हैं न हमारी क़ौम व क़बीले ने अता की है। उस मौक़े पर हज़रत अली (अ) ने अपने फ़ज़ायल व मनाक़िब बयान करना शुरु किये और एक के बाद एक फ़ज़ीलत शुमार करने लगे, यहाँ तक कि फ़रमाया: तुम लोगों को ख़ुदा की क़सम, क्या तुम जानते हो कि यह आयए शरीफ़ा कहाँ नाज़िल हुई:

(सूरए निसा आयत 59)

तर्जुमा, ऐ ईमान वालो, अल्लाह की इताअत करो, रसूल और साहिबाने अम्र की इताअत करो जो तुम ही में से हैं।

और यह आयत कहाँ नाज़िल हुई:

आयत (सूरए मायदा आयत 55)

तर्जुमा, ईमान वालो, बस तुम्हारा वली अल्लाह है और उसका रसूल और वह साहिबाने ईमान जो नमाज़ क़ायम करते हैं और हालते रूकू में ज़कात देते हैं।

नीज़ यह आयत कहाँ नाज़िल हुई:

(सूरए तौबा आयत 16)

तर्जुमा, जिन्होने ख़ुदा, रसूल और साहिबाने ईमान को छोड़ कर किसी को दोस्त नही बनाया है।

उस मौक़े पर उन्होने कहा या अमीरल मोमिनीन, क्या यह आयत बाज़ मोमिनीन से मख़सूस है या तमाम मोमिनीन को शामिल है? आपने फ़रमाया कि ख़ुदा वंदे आलम ने अपने पैग़म्बर (स0 को हुक्म दिया कि अपने .... की पहचान करा दो, और जैसा कि आँ हज़रत (स) ने तुम लोगों के लिये नमाज़, ज़कात और हज की तफ़सीर की है, उसी तरह विलायत की भी तफ़सीर व वज़ाहत की है और मुझे ग़दीरे ख़ुम के मैदाने में ख़िलाफ़त के लिये मंसूब किया। उस वक़्त पैग़म्बर (स) ने अपने ख़ुतबे में फ़रमाया: ऐ लोगों, ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे ऐसे फ़रमान का हुक्म दिया है जिसकी वजह से मैं परेशान हूँ कि अगर मैंने उस हुक्म को पहुचाया तो लोग मुझे झुटलायेगें लेकिन (ख़ुदा वंदे आलम) ने मुझे डराया है कि इस अम्र को ज़रूर पहुचायें, वर्ना आपका रिसालत को ख़तरा है। उस मौक़े पर रसूले अकरम (स0 ने हुक्म दिया कि अज़ान कही जाये, (नमाज़ के बाद) आं हज़रत (स) ने ख़ुतबे में फ़रमाया: ऐ लोगों क्या तुम जानते हो कि ख़ुदा वंदे आलम मेरा आक़ा व मौला है और क्या मैं मोमिनीन का मौला व आक़ा और उनके नफ़्सों से औला हूँ? तो सबने कहा, जी हा या रसूलल्लाह, उस वक़्त पैग़म्बरे अकरम (स0 ने मुझ से फ़रमाया: ऐ अली खड़े हो जाओ, मैं खड़ा हुआ तो आपने फ़रमाया: जिसका मैं मौला पस उसके यह अली मौला हैं।

पालने वाले, जिसने उनकी विलायत को क़बूल किया और उनको दोस्त रखा तू भी उनको अपनी विलायत के ज़ेरे साया क़रार दे और जो शख्स उनसे दुश्मनी रखे और उनकी विलायत का इंकार करे तू भी उसको दुश्मन रख।

फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 312 हदीस 350

स. कूफ़े के मजमे में

जब हज़रत अली (अ) को कूफ़े में यह ख़बर दी गई कि कुछ लोग ख़िलाफ़त के सिलसिले में आपकी हक़्क़ानीयत पर ऐतेराज़ करते हैं तो आप रहबा कूफ़े के मजमे के दरमियान हाज़िर हुए और उन लोगों के सामने हदीसे ग़दीर को दलील के तौर पर बयान किया जो आपकी विलायत को क़बूल नही करते थे।

यह ऐहतेजाज इतना मशहूर और अलल ऐलान था कि बहुत से ताबेईन ने इस वाक़ेया को नक़्ल किया है और बहुत से उलामा ए अहले सुन्नत ने मुख़्तलिफ़ सनदों के साथ काफ़ी मिक़दार में अपनी अपनी किताबों में नक़्ल किया है, अब हम यहाँ पर इस वाक़ेया के बाज़ रावियों की तरफ़ इशारा करते हैं:
असबग़ बिन नबाता हत्ता बिन जवीन उरफ़ी, अबू क़ुदामा ए बजली (76, 79 हिजरी) ज़ाज़ान बिन उमर ज़र्रीन बिन जबीश असदी ज़ियाद बिन अबी ज़ियाद

शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 4 पेज 74 ख़ुतबा 56

उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 479 हदीस 3341 मनाक़िब अली बिन अबी तालिब (अ), इब्नुल मग़ाज़ेली पेज 20 हदीस 27

मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 135 हदीस 642, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 109, सिफ़तुस सिफ़ात जिल्द 1 पेज 121, मतालिबुस सुउल पेज 54, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 210 जिल्द 7 पेज 348, तज़किरतुल ख़वास पेज 17, क़ज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 170 हदीस 36514, तारिख़े दमिश्क़ ऱक्म 524 , मुसनदे अली (अ), सुयूती हदीस 144

शरहुल मवाहिब जिल्द 7 पेज 113, उसदुल ग़ाबा जिल्द 1 पेज 441, अल इसाबा जिल्द 1 पेज 305, क़ुतनुल अज़हारुल मुतनाज़िरा, सुयूती पेज 278

मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 142 हदीस 672, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 106, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 7 पेज 384 हवादिस साल 40 हिजरी, रियाज़ुन नज़रा जिल्द 3 पेज 114, ज़खायरुल उक़बा पेज 67, तारिख़े दमिश्क़ रक़्म 532, अल मुख़्तारा हाफ़िज़ ज़िया जिल्द 2 पैज 80 हदीस 458, दुर्रुल सहाबा शौकानी पेज 211

ज़ैद बिन अरक़म ज़ैद बिन यूसीअ सईज बिन अबी हद्दान सईद बिन वहब अबुत तुफ़ैल आमिर बिन वासेला अबू अमारा, अब्द ख़ैर बिन यज़ीद अब्दुर्रहमान बिन अबी लैला

मुसनदे अहमद जिल्द 6 पेज 510 हदीस 22633, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 116, अलमोजमुल कबीर जिल्द 5 पेज 175 हदीस 4996, मनाक़िब अली बिन अबी तालिब (अ) इब्नुल मग़ाज़ेली पेज 23 हदीस 33, ज़खायरुल उक़बा पेज 667, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 7 पेज 383 हवादिस साल 40 हिजरी

मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 189 हदीस 953, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 229, किफ़ायतुत तालिब पेज 63, असनल मतालिब पेज 49, ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन (अ), निसाई पेज 101 हदीस 87 पेज 102 हदीस 88, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 131 हदीस 8472, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 105, जामेउल अहादीस सुयूती जिल्द 16 पेज 263 हदीस 7899, कंज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 158 हदीस 36487 व ...

फ़राउदुल समतैन जिल्द 1 पेज 68 हदीस 34

मुसनदे जिल्द 1 पेज 189 हदीस 953 जिल्द 6 पेज 506 हदीस 22597, ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन निसाई जिल्द 117 हदीस 98, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 136 हदीस 8483, उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 492 रक़्म 3382, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 104, अव बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 229 जिल्द 7 पेज 383, मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 156 हदीस 185, अल मोजमुल कबीर जिल्द हदीस 5056, मोजमुल औसत हदीस 1987, तारिख़े दमिश्क़ रक़्म 517 से 522, अल मुख़्तारा ज़िया मुक़द्दसी रक़्म 479, 480, 481

मुसनदे अहमद जिल्द 5 पेज 498 हदीस 18815, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 104, ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन (अ) निसाई पेज 112 हदीस 193, अस सोननुल कुबरा जिल्द 5 पेज 134 हदीस 8478, किफ़ायतुत तालिब पेज 55, अर रियाज़ुन नज़रा जिल्द 3 पेज 114, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 231, नज़लुल अबरार पेज 52, उसदुल ग़ाबा जिल्द 6 पेज 252 रक़्म 6169, यनाबीउल मवद्दत जिल्द 1 पेज 36 बाब 4

अल मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 156 हदीस 185, अल मनाक़िबे इब्नुल मग़ाज़ेली रक़्म 27, तारिख़े दमिश्क़ रक़्म 520

मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 191 हदीस 964, तारिख़े बग़दाद जिल्द 14 पेज 236, मुश्किलुल आसार जिल्द 2 पेज 308, उसदुल ग़ाबा जिल्द 4 पेज 108 रक़्म 3783, फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 69 हदीस 36, असनल मतालिब पेज 47, 48, अल बियादा वन निहाया जिल्द 5 पेज 230, नज़लुल अबरार जिल्द 131 हदीस 36417, मुसनदे बज़्ज़ाज़ रक़्म 632, मुसनदे अली (अ) सुयूती पेज 46, मुसनदे अबू यअली रक़्म 567, जमउज़ जवामेअ जिल्द 2 पेज 155, तारिख़े अमीरुल मोमिनीन इब्ने असाकर रक़्म 510, अल मुख़्तारा ज़िया मुक़द्देसी जिल्द 2 पेज 273 रक़्म 654
उमर बिन ज़िल मर उमैरा बिन साद यअली बिन मर्रा हानी बिन हानी हारिसा बिन मुज़र्रब हुबैरा बिन मरियत अबू रमला अब्दुल्लाह बिन अबी अमामा अबू वायल शक़ीक़े बिन सलमा हारिस आवर

मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 189 हदीस 954, ख़सायसे निसाई पेज 117 हदीस 99, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 136 हदीस 8484, फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 68 हदीस 36, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 105, किफ़ायतुत तालिब पेज 63, अल मीज़ानुल ऐतेदाल जिल्द 3 पेज 294 रक़्म 6481, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 230, तारिख़ुल ख़ुलाफ़ा पेज 168, कंज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 158 हदीस 3648, मुसमदे बज़्ज़ाज़ जिल्द 3 पेज 35 रक़्म 766, असनल मतालिब पेज 49, अल मोजमुल कबीर हदीस 5059, अल मोजमुल औसत हदीस 2130, 5301, तारिख़े अमीरुल मोमिनीन (अ) इब्ने असाकर रक़्म 515, 516, जमउल जवामेअ जिल्द 2 पेज 72, दुर्रुस सहाबा पेज 209

हिलयतुल औलिया जिल्द 5 पेज 26, ख़सायसे निसाई पेज 100 हदीस 85, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 131 हदीस 8470, अल मनाक़िब इब्नुल मग़ाज़ेली पेज 26 हदीस 38, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 230 जिल्द 7 पेज 384, कंज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 154 हदीस 36480 पेज 157 हदीस 36486

उसदुल ग़ाबा जिल्द 5 पेज 297 हदीस 5162

उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 492 रक़्म 3382

ख़सायसे निसाई पेज 167 हदीस 58, अस सोननुल कुबरा जिल्द 5 पेज 154 हदीस 8542, शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पेज 228 ख़ुतबा 37, अस सीरतुल हलबीया जिल्द 3 पेज 274

अल मोजमुल कबीर हदीस 8058

किताबुल मवातात, तबरी

अनसाबुल अशराफ़ तर्जुम ए अमीरूल मोमिनीन (अ) रक़्म 169

लिसानुल मीज़ान जिल्द 2 पेज 379



गवाही देने वाले हज़रात

दर्ज ज़ैल हज़रात ने रोज़े रहबा हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) के लिये हदीसे ग़दीर की गवाही दी है:
अबू ज़ैनब बिन औफ़ अंसारी अबू अमरा बिन अम्र बिन महसन अंसारी अबू फ़ज़ाल ए अँसारी अबू क़ुदाम ए अँसारी अबू लैला अंसारी अबू हुरैरा दूसी अबुल हैसम बिन तीहान साबित बिन वदीअ ए अँसारी हैश बिन जुनाद ए अंसारी अबू अय्यूब ख़ालिद अंसारी ख़ुज़ैमा बिन साबित अँसारी बू शरीह ख़ुवैलद बिन अम्र ख़ुज़ाई जै़द या यज़ीद बिन शराहिले अंसारी सहल बिन हनीफ़ बिन अंसारी वासी अबू सईद साद बिन मालिक ख़ुदरी अँसारी अबुल अब्बास सहल बिन साद अँसारी आमिर बिन लैला ग़फ़्फ़ारी अब्दुर्रहमान बिन अब्दे रब अँसारी अब्दुल्लाह बिन साबित अँसारी, ख़ादिमे रसूले अकरम (स) उबैद बिन आज़िब अँसारी अबू तुरैफ़ अदी बिन हातिम उक़बा बिन अम्र बिन जहनी नाजिया बिन अम्र ख़ुज़ाई नोमान बिन अजलान अंसारी हाफ़िज़ हैसमी ने सही सनद के साथ नक़्ल किया है कि जब हज़रत अली (अ) ने हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज किया तो उस मौक़े पर 30 लोग मौजूद थे।

मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 104

चूँकि यह ऐहतेजाज सन् 35 हिजरी में हुआ और हदीसे ग़दीर को बयान किये हुए 25 साल का अरसा गुज़र गया, ज़ाहिर सी बात है कि बहुत से वह असहाब जिन्होने हदीसे ग़दीर को सुना होगा लेकिन वह इस ऐहतेजाज के वक़्त दुनिया में नही होगें और बहुत असहाब जंगों में शहीद हो चुके थे औप बहुत से दीगर मुल्कों में मुतफ़र्रिक़ हो गये होगें और यह 30 अफ़राद वह थे जो कि कूफ़े के अलावा में और वह भी रहबा नामी मक़ाम पर हाज़िर थे हज़रत अली (अ) की ख़िलाफ़त व विलायत के लिये हदीसे ग़दीर की गवाही दी।

ल. जंगे जमल में ऐहतेजाज

जिन मक़ामात पर हज़रत अली (अ) ने हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज किया है उनमें से जंगे जमल में तलहा के सामने ऐहतेजाज भी है।

हाफ़िज़ नैशा पुरी अपनी सनद के साथ नज़ीर ज़ब्बी कूफ़ी ताबेई से नक़्ल करते हैं कि उन्होने कहा कि हम हज़रत अली (अ) के साथ जंगे जमल में थे, इमाम अली (अ) ने किसी को तलहा बिन उबैदुल्लाह के पास भेज कर उसको मुलाक़ात के बुलवाया, चुनाचे तलहा आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ, आपने तलहा से फ़रमाया: तुम्हे ख़ुदा की क़मस, क्या तुमने रसूलल्लाह (स) से नही सुना ......

तो उसने कहा, जी हाँ सुना है, इमाम अली (अ) ने फ़रमाया: तो फिर क्यो हमसे जंग करता है? उसने कहा: मेरे याद नही है और यह कहते ही वहाँ उठ खड़ा हुआ।

अल मुसतदरक अलल सहीहैन जिल्द 3 पेज 419 हदीस 5594, अल मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 182, तारिख़े दमिश्क़ जिल्द 8 पेज 568, तज़किरतुल ख़वास पेज 72, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 107, क़ंज़ुल उम्माल जिल्द 11 पेज 332 हदीस 31662

ह. कूफ़े में हदीसे सवारान

अहमद बिन हंबल ने अपनी सनद के साथ रियाह बिन हारिस से नक़्ल किया है कि कूफ़े में कुछ लोग हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की ख़िदमत में पहुच कर अर्ज़ करते हैं .... इमाम (अ) ने उनसे फ़रमाया: मैं किस तरह से तुम लोगों का मौला हूण जबकि तुम अरब के (ख़ास) कबीले से ताअल्लुक़ रखते हो? उन्होने जवाब में कहा: क्योकि हमने रसूलल्लाह (स) से रोज़े ग़दीर सुना है कि आपने फ़रमाया: .....

मुसनदे अहमद बिन हंबल जिल्द 6 पेज 583 हदीस 23051 से 23052, उसदुल ग़ाबा जिल्द 1 पेज 441 रक़्म 1038, रियाज़ुन नज़रा जिल्द 3 पेज 113, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 231 जिल्द 7 पेद 384 से 385, अल मोजमुल कबीर जिल्द 4 पेज 173 हदीस 4053, मुख़्तसरे तारीख़ जिल्द 17 पेज 354

ल. जंगे सिफ़्फ़ीन में ऐहतेजाज

सुलैम बिन क़ैस हेलाली, बुज़ुर्गे ताबेई अपनी किताब में नक़्ल करते हैं कि हज़रत अमीर मोमिनीन जंगे सिफ़्फ़ीन में अपने लश्कर के दरमियान मिम्बर पर गये और लोगों को अपने पास जमा किया, जो मुख़्तलिफ़ इलाक़ों से आये हुए थे जिनमें मुहाजिर व अंसार भी थे, सब के सामने ख़ुदावंदे आलम की हम्द व सना करने के बाद आपने फ़रमाया: ऐ जमाअत, बेशक मेरे मनाक़िब व फ़ज़ायल उससे कहीं ज़्यादा हैं जिनका शुमार किया जा सके।

इस हदीस में हज़रत अली (अ) ने तफ़सीली तौर पर अपने फज़ायल बयान किये जिनमें हदीस ग़दीर का भी ज़िक्र किया।

किताबे सुलैम बिन क़ैस जिल्द 2 पेज 757 हदीस 25